भैया दूज का पर्व भारतीय संस्कृति में भाई-बहन के अटूट रिश्ते का प्रतीक है। यह पर्व हर साल कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को मनाया जाता है। 2024 में यह शुभ अवसर 1 नवंबर को मनाया जाएगा। इस दिन बहनें अपने भाइयों के माथे पर तिलक लगाकर उनकी लंबी उम्र और सुख-समृद्धि की कामना करती हैं, जबकि भाई अपनी बहनों की सुरक्षा और खुशियों का वचन देते हैं।
यमुना माता की आरती का महत्व
भैया दूज का त्योहार यमराज और उनकी बहन यमुना के पौराणिक संबंध से जुड़ा हुआ है। कहा जाता है कि इस दिन यमराज अपनी बहन यमुना से मिलने आए थे, और यमुना ने उनके स्वागत में पूजा-अर्चना की। यमराज ने बहन को वचन दिया कि इस दिन जो भी भाई अपनी बहन के साथ यमुना स्नान करेगा या यमुना माता की आरती करेगा, उसे मृत्यु का भय नहीं होगा। इस पौराणिक कथा के चलते, यमुना माता की आरती का महत्व और भी बढ़ जाता है।
यमुना माता की आरती कैसे करें
भैया दूज पर यमुना माता की आरती का आयोजन विशेष रूप से किया जाता है। इसके लिए सुबह-शाम यमुना माता के चित्र या मूर्ति के सामने दीप जलाकर आरती की जाती है। आरती करते समय बहनें यह प्रार्थना करती हैं कि उनके भाइयों का जीवन सुखमय और सुरक्षित रहे। आरती के बोल कुछ इस प्रकार होते हैं:
"जय यमुना माता, जय यमुना माता।
जो नर तुम्हें ध्याता, मनवांछित फल पाता।
जय यमुना माता, जय यमुना माता।"
इस आरती के बाद भाई-बहन एक-दूसरे को प्रसाद अर्पित करते हैं और पर्व की पवित्रता को बनाए रखते हैं।
इस दिन का महत्व और भावना
भैया दूज का पर्व भाई-बहन के बीच प्रेम और सम्मान को मजबूत करता है। यह दिन सिर्फ पारिवारिक रिश्तों को मनाने का अवसर नहीं है, बल्कि यह एक भावनात्मक और सांस्कृतिक जुड़ाव को भी प्रतिबिंबित करता है। इस पर्व के माध्यम से भाई-बहन अपने रिश्ते को और गहराई से समझते हैं और जीवनभर एक-दूसरे के साथ खड़े रहने का वचन देते हैं।
खास सुझाव
विशेषज्ञों का कहना है कि इस पर्व पर पारंपरिक रीति-रिवाजों के साथ-साथ भाई-बहन को एक-दूसरे के प्रति अपने प्रेम और सम्मान को शब्दों और कर्मों से भी जताना चाहिए।