हमारा उद्देश्य किसी भी महिला, जाति, या धर्म को ठेस पहुँचाना नहीं है। इस लेख में हम आपको इस्लाम धर्म में चली आ रही "खतना" की प्रथा से जुड़े तथ्य और जानकारी प्रस्तुत करेंगे। विशेषकर, हम "फीमेल जेनिटल म्यूटेशन" या महिलाओं के खतना के मुद्दे पर चर्चा करेंगे। यह विषय गंभीर है और इसे समझना बेहद आवश्यक है ताकि महिलाओं के स्वास्थ्य और उनके अधिकारों को सुरक्षित रखने के प्रयास किए जा सकें।
क्या है खतना?
खतना का अर्थ है शरीर के कुछ हिस्सों को धार्मिक, सांस्कृतिक, या स्वास्थ्य संबंधी कारणों से हटाना। मुस्लिम समाज में पुरुषों के खतना की परंपरा लंबे समय से चली आ रही है। इसे "सर्कम्सिशन" भी कहा जाता है और इसे सामान्यतः एक धार्मिक अनुष्ठान के रूप में देखा जाता है। परंतु, बहुत कम लोग जानते हैं कि महिलाओं के लिए भी खतना की परंपरा कुछ क्षेत्रों और समुदायों में प्रचलित है।
महिला खतना का इतिहास और प्रक्रिया
महिला खतना को अंग्रेज़ी में "फीमेल जेनिटल म्यूटेशन" (FGM) कहते हैं। यह प्रक्रिया बहुत ही दर्दनाक होती है और इसमें महिला के जननांग के कुछ हिस्सों को काटा जाता है। विभिन्न समुदायों में इसकी प्रक्रिया अलग-अलग हो सकती है, लेकिन इसका उद्देश्य और इसका कारण अक्सर धार्मिक या सांस्कृतिक मान्यताओं में ही निहित होता है। खासकर अफ्रीका, मध्य पूर्व, और एशिया के कुछ हिस्सों में, FGM का पालन आज भी किया जाता है।
विश्व में महिला खतना के प्रभाव
महिला खतना की यह प्रथा कई स्वास्थ्य समस्याओं को जन्म देती है। संक्रमण, शारीरिक और मानसिक आघात, प्रसव के दौरान जटिलताएँ और यौन स्वास्थ्य पर इसके प्रभाव इस प्रथा से जुड़ी कुछ प्रमुख समस्याएं हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, फीमेल जेनिटल म्यूटेशन मानवाधिकारों का हनन है, और यह महिलाओं और लड़कियों के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को हानि पहुंचाता है। 6 फरवरी को "इंटरनेशनल डे ऑफ जीरो टोलरेंस अगेंस्ट फीमेल जेनिटल म्यूटेशन" के रूप में मनाया जाता है, ताकि इस प्रथा को रोकने के प्रति जागरूकता बढ़ाई जा सके।
बोहरा समुदाय और भारत में महिला खतना
भारत में भी, कुछ मुस्लिम समुदायों में महिलाओं के खतना की प्रथा प्रचलित है। विशेष रूप से दाऊदी बोहरा समुदाय में यह प्रथा पाई जाती है। हालाँकि, यह समुदाय एक छोटा समुदाय है, लेकिन महिला खतना की इस प्रथा को लेकर चिंता बढ़ रही है।
भारत में इस मुद्दे को गंभीरता से लेते हुए 2008 में FGM पर पूर्ण रूप से प्रतिबंध लगाने की मांग उठी। इसके बावजूद, भारत में इसके रोकथाम के लिए अभी और प्रभावी कदम उठाने की आवश्यकता है। बोहरा समुदाय के कई लोग इस प्रथा के खिलाफ आवाज उठा रहे हैं और इसे समाप्त करने की दिशा में कदम उठा रहे हैं।
क्या कहता है अंतरराष्ट्रीय समुदाय?
महिला खतना को लेकर विभिन्न अंतरराष्ट्रीय संगठन और देश इस पर प्रतिबंध लगाने का आह्वान कर चुके हैं। यूनाइटेड नेशंस (UN) और WHO ने इसे गंभीर समस्या मानते हुए इसे पूरी तरह से समाप्त करने के प्रयास किए हैं। 2030 तक वैश्विक स्तर पर FGM का अंत करने का संकल्प लिया गया है।
अफ्रीकी देशों में भी इस पर कानूनी प्रतिबंध लगाए गए हैं। मिस्र जैसे देश में 2008 में FGM पर प्रतिबंध लगाया गया था, लेकिन फिर भी इसे पूरी तरह से समाप्त नहीं किया जा सका है। कुछ क्षेत्रों में अभी भी महिलाएं और बच्चियां इस अमानवीय प्रथा का सामना कर रही हैं।
महिला खतना को रोकने के लिए कदम
इस कुप्रथा को समाप्त करने के लिए निम्नलिखित कदम उठाए जा सकते हैं:
1. शिक्षा और जागरूकता: समुदायों में महिला खतना से होने वाली समस्याओं के बारे में जागरूकता बढ़ाना आवश्यक है। इसके साथ ही इस प्रथा के धार्मिक और सांस्कृतिक कारणों की वास्तविकता को समझना और समाज में इसके बारे में सही जानकारी देना महत्वपूर्ण है।
2. कानूनी कार्रवाई: सभी देशों में महिला खतना को रोकने के लिए कड़े कानून बनाए जाने चाहिए और उनका सख्ती से पालन होना चाहिए।
3. स्वास्थ्य सेवाओं का विस्तार: स्वास्थ्य सेवाओं के माध्यम से महिला खतना से पीड़ित महिलाओं को मदद और परामर्श उपलब्ध कराना चाहिए।
महिला खतना की प्रथा न केवल महिलाओं के स्वास्थ्य के लिए घातक है, बल्कि यह उनकी स्वतंत्रता और अधिकारों का भी उल्लंघन है। इस प्रथा को समाप्त करना, महिलाओं के अधिकारों की रक्षा करना और समाज में उन्हें सम्मान और स्वास्थ्य प्रदान करना अत्यंत आवश्यक है।
इस गंभीर मुद्दे पर आपकी क्या राय है? क्या इस प्रथा को पूरी तरह से बंद कर देना चाहिए? अपनी राय कमेंट में जरूर साझा करें, ताकि एक स्वस्थ चर्चा हो सके।