उज्जैन, 13 अक्टूबर 2024: दशहरे के मौके पर रावण दहन की परंपरा पर इस साल विवाद बढ़ता नजर आ रहा है, जहां ब्राह्मण और बौद्ध समुदायों ने रावण के पुतले जलाने पर अपनी आपत्ति जाहिर की है। अखिल भारतीय युवा ब्राह्मण समाज, उज्जैन ने मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री को एक पत्र लिखते हुए रावण दहन पर प्रतिबंध लगाने की मांग की है।
समाज का कहना है कि रावण का चरित्र और इतिहास गलत तरीके से प्रस्तुत किया जा रहा है। पत्र में लिखा गया है कि रावण ने माता सीता का हरण इसलिए किया था ताकि वह अपने कुल का भगवान श्रीराम के हाथों से उद्धार करवा सके। इसके बावजूद, रावण को ब्राह्मण होने के कारण बदनाम और अपमानित किया जा रहा है। संगठन का आरोप है कि त्रेतायुग से लेकर आज के कलियुग तक रावण दहन के जरिए ब्राह्मण समुदाय को निशाना बनाया जा रहा है।
अपने तो अपने ही होते है ध्रुव 😂😂😂😂😂😂
— Rationality 😎😎 (@rationalguy777) October 12, 2024
वेसे बाप बनाने की पुरानी आदत तुम्हारी रही है ।
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पत्र में आगे यह भी कहा गया है कि रावण ने सीता का हरण तो अवश्य किया, लेकिन उनके साथ कोई अमर्यादित आचरण नहीं किया। इसके बजाय, उन्होंने माता सीता को अशोक वाटिका में सुरक्षित रखने का प्रबंध किया, जिससे उनकी विवेकशीलता और ज्ञान का पता चलता है। संगठन ने मुख्यमंत्री से मांग की है कि रावण दहन पर रोक लगाई जाए ताकि ब्राह्मण समुदाय का अपमान न हो।
मनुवादी भी रावण की पूजा कर रहे और उधर मूलनिवासी भी दहन का विरोध कर रहे ,
— खुरपेंच (@khurpenchh) October 12, 2024
इससे एक बात तो तय है,
जैसे नीतीश सबके हैं वैसे रावण जी भी सबके हैं। pic.twitter.com/xXc0NT5K64
दूसरी ओर, देश के कई हिस्सों में ब्राह्मण समुदाय के कुछ सदस्यों ने रावण की पूजा अर्चना की और उसे ब्राह्मण जाति का हिस्सा बताते हुए सम्मान देने की मांग की। उनका कहना है कि रावण एक महान ज्ञानी और विद्वान थे, जिनकी विद्वत्ता को अनदेखा किया जा रहा है।
मत फूको भाई मत फूको यह रावण नही तथागत है। pic.twitter.com/etLngFZWId
— Nirdesh Singh (@didinirdeshsing) October 12, 2024
उधर, बौद्ध धर्म के अनुयायियों ने भी रावण के पुतले जलाने पर कड़ी आपत्ति जताई। उनका कहना है, "रावण नहीं, तथागत हैं।" बौद्ध अनुयायियों का मानना है कि रावण का चरित्र धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से गलत तरीके से प्रस्तुत किया जा रहा है, और इसे सुधारने की आवश्यकता है।
यह विवाद दशहरे पर रावण दहन की सदियों पुरानी परंपरा पर नए सिरे से बहस को जन्म दे रहा है, जहां एक ओर इसे धार्मिक आस्था और संस्कृति का प्रतीक माना जाता है, तो दूसरी ओर कुछ समुदाय इसे अपमानजनक और गलत धारणा फैलाने वाला मानते हैं।