महाराजा जयचंद गद्दार नहीं एक सच्चे देश भक्त और महान योद्धा थे? पत्थरों पर लिखे मिलते हैं प्रमाण

भारत में इतिहास के अनेक नायकों और शासकों के प्रति भ्रांतियाँ और धारणाएँ समय के साथ बदलती रही हैं। ऐसा ही एक नाम है महाराजा जयचंद, जिन्हें आज भी कुछ अनपढ़ और गंवार लोग गद्दार के रूप में जानते हैं। पर क्या यह इतिहास का सटीक चित्रण है, या फिर एक गलतफहमी जो समय के साथ फैलती चली गई?

महाराजा जयचंद का योगदान

महाराजा जयचंद एक बौद्ध राजा थे, जो कन्नौज और वाराणसी के महत्वपूर्ण शहरों सहित गंगा के मैदानों में अंतर्वेदी देश पर शासन करते थे। उनके राज्य में वर्तमान पूर्वी उत्तर प्रदेश का अधिकांश हिस्सा और पश्चिमी बिहार के कुछ हिस्से शामिल थे। जयचंद, अपने वंश के अंतिम शक्तिशाली राजा माने जाते हैं और 1194 ईस्वी में मुहम्मद गौरी के नेतृत्व वाली ग़ोरी सेना के खिलाफ वीरगति को प्राप्त हुए थे।

इतिहास में उनके अंतिम युद्ध की गाथा उन्हें एक वीर योद्धा के रूप में प्रस्तुत करती है, जिन्होंने यमुना के पास युद्ध के मैदान में अपने सीने पर तलवार खाकर प्राणों की आहुति दी थी। लेकिन, उनके बौद्ध धर्म का पालन करने के कारण, कुछ लोगों ने उन्हें गद्दार बताना शुरू किया, जो इतिहास के साथ अन्याय है।

 

 ऐतिहासिक शिलालेखों की गवाही

महाराजा जयचंद का अपमान करने वाले लोगों में से कई इस तथ्य से अनजान हैं कि जयचंद की दादी का नाम कुमारदेवी था, और सारनाथ से जयचंद के दादा-दादी का एक महत्वपूर्ण शिलालेख प्राप्त हुआ है। इस शिलालेख की शुरुआत बौद्ध बोधिसत्व (नमों भगवते आर्य वसुधाराय) की आराधना से होती है, जो इस बात की गवाही देती है कि महाराजा का परिवार बौद्ध धर्म के प्रति निष्ठावान था।

इतिहास में उनके खिलाफ यह धारणा गढ़ी गई कि उन्होंने विदेशी आक्रमणकारियों का साथ दिया, परंतु इसका कोई ठोस प्रमाण नहीं मिलता। जबकि उनके बारे में प्रचलित कहानियाँ और गाथाएँ अक्सर बदलती रही हैं, उनके शिलालेख और इतिहासिक प्रमाण चीख-चीख कर उनके महान योगदान की गवाही देते हैं।

गद्दार कहने की मानसिकता

भारत में कुछ लोग अब भी महाराजा जयचंद को गद्दार के रूप में प्रस्तुत करते हैं, जबकि उनके योगदान को नज़रअंदाज़ करते हैं। यह मानसिकता उन शासकों को सही ढंग से न समझ पाने का नतीजा है, जिन्होंने देश की सभ्यता और संस्कृति के लिए अपने प्राणों की आहुति दी। ऐसे महान राजा को गद्दार जैसे शब्दों से अपमानित करना न केवल इतिहास का अपमान है, बल्कि उन आदर्शों का भी, जिनके लिए उन्होंने अपना जीवन बलिदान किया।

अपमान के खिलाफ कार्यवाही जरूरी

यदि लोग आज भी महाराजा जयचंद का अपमान करते हैं, तो उनके खिलाफ कानूनी और सामाजिक कार्यवाही होनी चाहिए। इतिहास को गलत तरीके से प्रस्तुत करने वालों को जवाबदेह ठहराया जाना चाहिए ताकि भविष्य की पीढ़ियों को सही जानकारी मिल सके और वे हमारे इतिहास के नायकों का सही सम्मान कर सकें। 

महाराजा जयचंद जैसे महान शासकों का जीवन और उनके बलिदान हमें साहस, न्याय और धैर्य की प्रेरणा देते हैं। उन्हें गद्दार कहना हमारे इतिहास और उसकी महानता के साथ अन्याय करना है।

Rangin Duniya

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