जयपुर में हाल ही में हुए एक विवाद ने सोशल मीडिया और कुछ चैनलों पर खूब सुर्खियाँ बटोरीं। RSS (राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ) के कुछ कार्यकर्ताओं के साथ मारपीट की खबर ने पहले पहल एक समुदाय विशेष को लेकर गलतफहमी पैदा कर दी थी। लेकिन, जैसे-जैसे घटना की पूरी सच्चाई सामने आई, तथ्यों ने इस विवाद को नया रूप दे दिया।
कृष्ण कान्त ने अपने सोशल मीडिया X (पूर्व में ट्विटर) हैंडल पर लिखा कि RSS के कुछ लोग जयपुर में पीटे गए, और आरोप नसीब चौधरी नामक व्यक्ति पर लगाया गया। इसके बाद, मीडिया के कुछ चैनलों ने नसीब पर बिना तथ्यों की पुष्टि किए कार्यक्रम करना शुरू कर दिया, जैसे "नसीब को RSS से नफरत क्यों?"। इन कार्यक्रमों में नसीब को "विशेष समुदाय" का सदस्य बताया गया, जिससे विवाद और बढ़ गया।
हालांकि, असली कहानी कुछ और ही है। नसीब सिंह चौधरी उर्फ नसीब पहलवान, जो इस घटना में प्रमुख व्यक्ति हैं, वह एक हिंदू हैं। उनकी पत्नी का नाम निर्मला और बेटे का नाम भीष्म है। नसीब पहलवान का परिवार उस मंदिर की देखभाल करता है, जहाँ यह घटना घटी। राजस्थान जाट महासभा के अध्यक्ष कुलदीप ढेवा के अनुसार, "मंदिर में रात 10 बजे तक डीजे बज रहा था। नसीब पहलवान की पत्नी ने इस पर आपत्ति जताई, जिसके बाद RSS के कुछ लोगों ने उनके साथ दुर्व्यवहार किया। इसके बाद, भीड़ ने नसीब के घर पर पत्थरबाजी की और हिंसा भड़क गई।"
जयपुर में RSS के कुछ लोग पीटे गए। आरोप नसीब चौधरी पर लगा। जहरीले मीडिया ने "नसीब को RSS से नफरत क्यों" टाइप कार्यक्रम भी कर लिया।
— Krishna Kant (@kkjourno) October 18, 2024
अब असली कहानी सुनिए।
नसीब सिंह चौधरी उर्फ नसीब पहलवान हिंदू हैं। पत्नी का नाम निर्मला और बेटे का नाम भीष्म है। राजस्थान जाट महासभा के अध्यक्ष… pic.twitter.com/bauOWiVncJ
इस झगड़े में दोनों पक्षों के लोग घायल हुए, लेकिन मामला सिर्फ़ मारपीट तक सीमित नहीं रहा। कुछ जहरीले मीडिया चैनलों ने इस घटना को सांप्रदायिक रंग देने की कोशिश की। बिना सही जानकारी के, सिर्फ नाम "नसीब" के आधार पर उसे "मुसलमान" और "जिहादी" के रूप में चित्रित किया गया। जबकि सच्चाई यह थी कि नसीब सिंह चौधरी एक हिंदू हैं, और उनकी आस्था और कर्मकांड उस मंदिर से जुड़े हुए हैं जहाँ यह घटना हुई।
यह घटना उस खतरनाक प्रवृत्ति को उजागर करती है जहाँ नाम और धर्म के आधार पर लोगों की पहचान की जा रही है। नसीब नाम सुनते ही, कुछ मीडिया चैनलों ने उसे गलत ढंग से मुस्लिम बताकर अफवाहें फैलानी शुरू कर दीं। तथ्य और सच्चाई से इनका कोई लेना-देना नहीं था।
कृष्ण कान्त ने इस घटना के जरिये एक अहम सवाल उठाया है: हिंदू तभी तक RSS की नजर में हिंदू रहता है जब तक वह उनके नियमों और विचारधारा का अनुसरण करता है। अन्यथा, उसे देशद्रोही, पाकिस्तानी, खालिस्तानी या आतंकवादी करार दे दिया जाता है।
आज के समय में, जिस तरह से नाम और कपड़ों के आधार पर पहचान की नफरत भरी राजनीति की जा रही है, वह समाज के लिए खतरनाक संकेत है। नसीब सिंह चौधरी की घटना यह बताती है कि यह नफरत सिर्फ़ मुसलमानों तक सीमित नहीं रहेगी। अगर यह प्रवृत्ति जारी रही, तो भविष्य में और भी निर्दोष लोग इसका शिकार बनेंगे।
इस तरह की घटनाएँ मंटो की मशहूर कहानी "मिश्टेक हो गया" की याद दिलाती हैं, जहाँ एक नाम या पहचान को लेकर एक गलती से बड़ी त्रासदी खड़ी हो जाती है। यह गलती नफरत के इस व्यापार का अभिन्न हिस्सा है।
अंत में, यह घटना हमें आगाह करती है कि अगर नफरत की यह आग और फैली, तो कोई भी इससे अछूता नहीं रहेगा। "लगेगी आग तो आएंगे कई घर जद में..."—यह पंक्ति हमें इस बात का एहसास दिलाती है कि अगर समाज में नफरत की आग जलती रही, तो उसका दुष्प्रभाव सभी पर पड़ेगा।