हाल ही में सोशल मीडिया प्लेटफार्म X (पूर्व में ट्विटर) पर एक पोस्ट ने चर्चा और विवाद को जन्म दिया है। यह पोस्ट साइंस जर्नी नामक अकाउंट द्वारा किया गया, जिसमें महिलाओं के प्रति प्राचीन भारतीय वेदों और ग्रंथों के कथनों का हवाला दिया गया। पोस्ट में यह कहा गया, "मोहतरमा को पता नहीं है कि इनके पुरखों ऋषियों ने इनके बारे में क्या कहा है। खैर, वेद पढ़ने का अधिकार ही नहीं था, तो जानेंगी कहाँ से? हम बता देते हैं। ऋग्वेद 8/33/17 में कहा गया है कि ‘स्त्रियों की बुद्धि छोटी होती है’ और ऋग्वेद 10/95/15 में कहा गया है कि ‘स्त्रियों का हृदय भेड़ियों के हृदय के समान होता है।’"
इस ट्वीट ने सोशल मीडिया पर बहस छेड़ दी, जिसमें कुछ लोग इसे प्राचीन ग्रंथों की गलत व्याख्या मान रहे हैं, जबकि अन्य इसे वेदों में निहित पितृसत्तात्मक दृष्टिकोण के प्रमाण के रूप में देख रहे हैं। पोस्ट में आगे लिखा गया, "स्मृतियों की बात नहीं, पीढ़ी दर पीढ़ी ढो कर लाए गए BrahminGenes में यह बात लिखी है। किसी को डाउट हो तो रिफरेंस टिकाकार और प्रकाशन सहित संलग्न है, खुद से पढ़ लेवे।"
मोहतरमा को पता नहीं है की इनके पुरखे ऋषियों ने इनके बारे में क्या कहा है खैर वेद पढ़ने का अधिकार ही नहीं था तो जानेगी कहाँ से हम बता देते है ।
— Science Journey (@ScienceJourney2) October 10, 2024
ऋग्वेद 8/33/17 में “ स्त्रियों की बुद्धि छोटी होती है”
ऋग्वेद 10/95/15 में “स्त्रियों का हृदय भेड़ियो के हृदय के समान होता है”
स्मृतियो… https://t.co/5ey82QmjbK pic.twitter.com/C6W0UAl30t
साइंस जर्नी के इस पोस्ट के बाद सोशल मीडिया पर तीखी प्रतिक्रियाएँ आईं। कई लोग इस पोस्ट को महिलाओं के प्रति अपमानजनक और भ्रामक बताकर इसकी निंदा कर रहे हैं। वहीं, कुछ ने सवाल उठाया कि क्या इस तरह के बयान आधुनिक समाज में प्रासंगिक हैं और क्या इन्हें संदर्भ से बाहर उद्धृत किया जा रहा है।
वहीं, दूसरी तरफ कुछ लोगों ने साइंस जर्नी के इस पोस्ट का समर्थन किया और कहा कि यह प्राचीन ग्रंथों में निहित सत्य को सामने लाने का प्रयास है। इस बहस ने भारतीय समाज में प्राचीन साहित्य और महिलाओं के अधिकारों के संदर्भ में एक नई चर्चा को जन्म दिया है।
कुछ विद्वानों का मानना है कि इस तरह के उद्धरण प्राचीन ग्रंथों की गलत व्याख्या हो सकते हैं। उनका कहना है कि वेद और अन्य शास्त्रों को समझने के लिए व्यापक संदर्भ और विशेषज्ञता की आवश्यकता होती है, और किसी भी श्लोक या कथन को उसकी मूल भावना और ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में देखा जाना चाहिए।
यह विवाद केवल एक सोशल मीडिया पोस्ट तक सीमित नहीं है, बल्कि यह सवाल खड़ा करता है कि प्राचीन ग्रंथों में महिलाओं के बारे में जो बातें लिखी गई हैं, वे आधुनिक समाज में किस हद तक मान्य और प्रासंगिक हैं। इस तरह के विवादों से यह भी स्पष्ट होता है कि कैसे सोशल मीडिया पर ऐतिहासिक और धार्मिक संदर्भों का उपयोग भावनाओं को भड़काने और चर्चा छेड़ने के लिए किया जा सकता है।