रांची: कांग्रेस के वरिष्ठ नेता राहुल गांधी ने शनिवार को रांची में आयोजित एक संविधान सम्मेलन में अपने संबोधन के दौरान एक बड़ा बयान दिया। उन्होंने कहा कि वर्तमान भारत में "दो पुस्तकों के बीच संघर्ष चल रहा है" – एक ओर संविधान है, जिसे डॉ. भीमराव आंबेडकर ने लिखा था, और दूसरी ओर मनुस्मृति, जिसे उन्होंने 'अलगाववादी' पुस्तक करार दिया, जिसका लेखन मनु महाराज ने किया था।
राहुल गांधी ने अपने संबोधन में स्पष्ट रूप से कहा कि यह संघर्ष सिर्फ पुस्तकों का नहीं, बल्कि विचारधाराओं का है। "संविधान, जो समानता, स्वतंत्रता और न्याय के सिद्धांतों पर आधारित है, का संघर्ष मनुस्मृति से हो रहा है, जो विभाजनकारी और जाति आधारित सोच को बढ़ावा देती है," उन्होंने कहा।
राहुल गांधी ने अपने बयान में कांग्रेस के शासनकाल के दौरान राजस्थान हाई कोर्ट परिसर में स्थापित मनु महाराज की मूर्ति का जिक्र किया। उन्होंने स्वीकार किया कि कांग्रेस सरकार के दौरान यह मूर्ति स्थापित की गई थी, लेकिन आज तक इसे हटाने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए। "यह हमारे लिए एक चिंतन का विषय है," उन्होंने कहा। "कांग्रेस को इस मुद्दे पर आत्ममंथन करना चाहिए और भविष्य में ऐसे विभाजनकारी प्रतीकों के खिलाफ कदम उठाने चाहिए।"
राहुल गांधी ने संविधान की महत्ता पर जोर देते हुए कहा कि यह देश के हर नागरिक को समानता का अधिकार देता है, चाहे वह किसी भी जाति, धर्म या पृष्ठभूमि का हो। उन्होंने बाबा साहेब डॉ. भीमराव आंबेडकर के योगदान को याद किया और कहा कि संविधान हमारे समाज की नींव है, जिसे कमजोर करने की कोशिशें की जा रही हैं।
उन्होंने कहा कि इस वक्त जरूरत है कि संविधान के सिद्धांतों को मजबूत किया जाए और देश को विभाजित करने वाली ताकतों का विरोध किया जाए। "संविधान हमारी आत्मा है, और इसे किसी भी कीमत पर बचाना हमारा कर्तव्य है," राहुल ने कहा।
राहुल गांधी के इस बयान ने राजनीतिक हलकों में एक नई बहस को जन्म दे दिया है। उनके इस बयान को मौजूदा सरकार और समाज में हो रहे परिवर्तनों के संदर्भ में देखा जा रहा है। इससे यह स्पष्ट है कि राहुल गांधी आने वाले समय में संविधान और मनुस्मृति के मुद्दे को लेकर एक नई राजनीतिक धारा स्थापित करने की कोशिश कर रहे हैं।
इस सम्मेलन में कई प्रमुख नेता और समाजसेवी उपस्थित थे, जिन्होंने संविधान की रक्षा और विभाजनकारी नीतियों का विरोध करने की प्रतिज्ञा ली। राहुल गांधी के इस बयान से यह संकेत मिलता है कि वह आने वाले चुनावों में संविधान और सामाजिक न्याय के मुद्दों को प्रमुखता से उठाने की तैयारी कर रहे हैं।
राहुल गांधी का यह बयान एक महत्वपूर्ण राजनीतिक वक्तव्य के रूप में देखा जा रहा है। यह भविष्य की राजनीति में संविधान और मनुस्मृति के बीच संघर्ष को एक केंद्रीय मुद्दा बना सकता है। कांग्रेस की दिशा और राहुल गांधी की सोच को देखते हुए यह साफ है कि वह सामाजिक न्याय और समानता के लिए लड़ाई लड़ने को तैयार हैं, और इस लड़ाई में संविधान उनकी प्रमुख हथियार बनेगी।