हाल ही में एक सोशल मीडिया पोस्ट ने चन्द्रशेखर आज़ाद, जो भीम आर्मी और आज़ाद समाज पार्टी के संस्थापक हैं, की राजनीतिक और सामाजिक रणनीतियों पर सवाल खड़े कर दिए हैं। इस लेख में चन्द्रशेखर पर उनके करीबी कहे जाने वाले बहुजन समाज के नेताओं और घटनाओं पर उनके रुख की आलोचना की गई है, विशेष रूप से बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की नेता मायावती के प्रति उनके व्यवहार को लेकर।
मायावती के प्रति व्यवहार
लेख में चन्द्रशेखर पर आरोप लगाया गया है कि उन्होंने बहन कुमारी मायावती के माता-पिता के परिनिर्वाण पर कोई शोक संवेदना प्रकट नहीं की, जबकि उन्होंने अन्य नेताओं जैसे मुलायम सिंह यादव के निधन के बाद अखिलेश यादव से जाकर मुलाकात की। यह सवाल उठता है कि अगर चन्द्रशेखर सच में बहनजी का "सम्मान" करते हैं, जैसा कि उन्होंने दावा किया है, तो उन्होंने उनके परिवार के दुखद अवसरों पर क्यों दूरी बनाए रखी।
कांशीराम के सिद्धांतों के विपरीत
आलोचना का एक और महत्वपूर्ण पहलू यह है कि चन्द्रशेखर कांशीराम को अपना आदर्श मानते हैं, लेकिन उनके काम कांशीराम के सिद्धांतों के विपरीत बताए जाते हैं। लेख में यह कहा गया है कि कांशीराम का लक्ष्य था कि बहुजन समाज को सत्ता में स्थापित करना, जबकि चन्द्रशेखर के कई कदम बहुजन समाज के हितों के खिलाफ दिखाई देते हैं। खासकर उत्तर प्रदेश के 2022 विधानसभा चुनाव में, जहां चन्द्रशेखर ने अपने उम्मीदवार वहां खड़े किए, जहां बसपा की स्थिति मजबूत थी। इस कदम को बसपा के खिलाफ एक सोची-समझी रणनीति के रूप में देखा गया।
मेरा इस लेख को लिखने का उद्देश्य श्री चन्द्रशेखर जी के चाहने वालों को दुःख पहुँचाना नहीं है,न ही उनकी भावनाओं को आहत करना है!
— पवन (@Voiceofpavan) October 12, 2024
चन्द्रशेखर न तो बहनजी के पिता के परिनिर्वाण पर गए और न ही उनकी माता के परिनिर्वाण पर,जबकि मुलायम सिंह यादव के देहावसान के बाद अखिलेश यादव से मिलने उनके… pic.twitter.com/UhoN8qfw38
समाज में ध्रुवीकरण और युवाओं का भविष्य
लेख में यह भी कहा गया है कि चन्द्रशेखर के आंदोलनों से समाज के कई शिक्षित युवाओं का भविष्य खतरे में पड़ जाता है। उदाहरण के तौर पर 2017 की सहारनपुर हिंसा के बाद जेल जाने वाले युवाओं का जिक्र किया गया है, जिनके भविष्य की ओर चन्द्रशेखर ने ध्यान नहीं दिया। आंदोलन के दौरान समाज के कई पढ़े-लिखे युवा फंस जाते हैं, लेकिन उनके भविष्य की चिंता करने वाला कोई नहीं रहता।
दूसरे नेताओं से मेल-जोल, पर मायावती से दूरी
लेख में चन्द्रशेखर के अन्य दलों के नेताओं से मिलने-जुलने की बात भी कही गई है। चाहे वह अखिलेश यादव, पप्पू यादव, असदुद्दीन ओवैसी या अन्य क्षेत्रीय नेता हों, चन्द्रशेखर उनसे मिलने में कोई संकोच नहीं करते। लेकिन जब बात बहन मायावती की आती है, तो वह हमेशा दूरी बनाए रखते हैं। लेख के अनुसार, उन्होंने कभी भी मायावती से मिलने की कोशिश नहीं की, और यह आरोप लगाया कि मायावती उनसे मिलना नहीं चाहतीं।
इस लेख के माध्यम से बहुजन समाज के भीतर चन्द्रशेखर की राजनीतिक दिशा और निर्णयों पर सवाल खड़े किए गए हैं। लेख का उद्देश्य चन्द्रशेखर के समर्थकों की भावनाओं को ठेस पहुंचाना नहीं है, बल्कि उनके कदमों का आलोचनात्मक विश्लेषण करना है। यह बहस इस बात पर केंद्रित है कि क्या चन्द्रशेखर के निर्णय और रणनीतियां वास्तव में बहुजन समाज के हित में हैं या नहीं।