हाल ही में बिहार के सीवान जिले के गोर या कोठी नारायण महाविद्यालय में राजनीति शास्त्र के असिस्टेंट प्रोफेसर खुर्शीद आलम के एक सोशल मीडिया पोस्ट ने भारी विवाद खड़ा कर दिया। इस पोस्ट में उन्होंने मुस्लिम समुदाय के लिए अलग देश की मांग उठाई थी, जिससे समाज के विभिन्न वर्गों में आक्रोश फैल गया। प्रोफेसर आलम के इस बयान को लेकर विश्वविद्यालय परिसर में विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए और स्थिति इतनी गंभीर हो गई कि छात्रों ने उनके खिलाफ कड़ी कार्रवाई की मांग की।
प्रोफेसर खुर्शीद आलम के पोस्ट के बाद छात्रों और स्थानीय नागरिकों में नाराजगी बढ़ गई। विश्वविद्यालय परिसर में छात्राओं ने प्रदर्शन करते हुए प्रोफेसर का पुतला जलाया और उनके खिलाफ त्वरित कार्रवाई की मांग की। प्रदर्शनकारियों का कहना था कि जब तक प्रोफेसर आलम के खिलाफ कार्रवाई नहीं की जाती, वे शिक्षण कार्य का बहिष्कार करेंगे।
प्रोफेसर का बचाव
इस पूरे मामले पर प्रतिक्रिया देते हुए प्रोफेसर खुर्शीद आलम ने अपने सोशल मीडिया पोस्ट को अभिव्यक्ति की आजादी करार दिया। उनका कहना था, "मैंने कुछ भी गलत नहीं कहा है। यह मेरा व्यक्तिगत विचार था और मैं अब भी अपने बयान पर कायम हूं।" उन्होंने यह भी कहा कि यह उनके विचारों की स्वतंत्रता का हिस्सा है, जिसे संविधान में सुनिश्चित किया गया है।
बढ़ता दबाव और इस्तीफा
हालांकि, विश्वविद्यालय और समाज के विभिन्न वर्गों से बढ़ते दबाव के चलते स्थिति नियंत्रण से बाहर हो गई। मामले को शांत करने के लिए प्रशासन ने प्रोफेसर को शो-कॉज नोटिस जारी किया था, जिसके बाद अंततः प्रोफेसर खुर्शीद आलम को अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा।
इस घटना ने स्थानीय और राज्य स्तर पर काफी हलचल मचाई है। कई राजनीतिक और सामाजिक संगठनों ने इस मामले को लेकर बयान जारी किए हैं, जहां कुछ लोगों ने इसे विचारों की स्वतंत्रता पर हमला बताया, वहीं कुछ लोगों ने प्रोफेसर की पोस्ट को समाज में अशांति फैलाने वाला कदम करार दिया।
मामला फिलहाल शांत होता नजर आ रहा है, लेकिन इससे जुड़े मुद्दों पर बहस अभी भी जारी है। यह घटना एक बार फिर से देश में अभिव्यक्ति की आजादी और सामाजिक जिम्मेदारियों के बीच संतुलन को लेकर नए सवाल खड़े कर रही है।