बेंगलुरु: कर्नाटक के ग्रामीण विकास और पंचायती राज मंत्री प्रियांक खड़गे ने हाल ही में अनुसूचित जातियों (SC) के लिए आंतरिक आरक्षण के मुद्दे पर महत्वपूर्ण बयान दिया है। उन्होंने कहा कि आंतरिक आरक्षण एक महत्वपूर्ण विषय है जिसे राज्य को सौंपा गया है, लेकिन इसके लिए अनुभवजन्य डेटा की आवश्यकता है।
प्रियांक खड़गे ने इस मुद्दे पर बोलते हुए कहा, "आंतरिक आरक्षण एक ऐसी चीज है जिसे राज्य को यह कहते हुए सौंप दिया गया है कि इसके लिए अनुभवजन्य डेटा होना चाहिए। हम यह पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं कि हमारे पास जनगणना के आंकड़े उपलब्ध हुए बिना हम अनुभवजन्य डेटा कैसे प्राप्त करेंगे।"
#WATCH | On internal quota among SCs, Karnataka Minister Priyank Kharge says, "...Internal reservation is something that has been passed on to the state saying that there has to be empirical data. We are trying to figure out how we will get empirical data without census numbers… pic.twitter.com/EBUxCzAgAQ
— ANI (@ANI) October 22, 2024
उन्होंने यह भी कहा कि यह मुद्दा कांग्रेस के चुनावी घोषणापत्र का हिस्सा है, इसलिए सरकार इससे पीछे हटने का कोई इरादा नहीं रखती। उन्होंने स्पष्ट किया कि जो भी कदम उठाए जाएंगे, वे संविधान और कानून की कसौटी पर खरे उतरने चाहिए।
खड़गे ने जनगणना के आंकड़ों की कमी का उल्लेख करते हुए कहा कि यह राज्य सरकार के लिए एक चुनौती है कि बिना जनगणना के डेटा के, SC समुदायों के लिए सटीक आरक्षण को लागू कैसे किया जाए। हाल ही में, राज्य के कई दलित संगठनों ने अनुसूचित जातियों के बीच आंतरिक आरक्षण की मांग उठाई थी, और सरकार पर दबाव बनाया है कि इसे लागू किया जाए।
यह बयान ऐसे समय में आया है जब राज्य में जातिगत जनगणना और आरक्षण पर बहस तेज हो रही है, और सरकार को इस दिशा में ठोस कदम उठाने की आवश्यकता महसूस की जा रही है। खड़गे के इस बयान से यह स्पष्ट है कि राज्य सरकार आंतरिक आरक्षण के मामले में गंभीर है और इसके कार्यान्वयन की दिशा में हर संभव प्रयास करेगी।
अनुसूचित जातियों के भीतर आंतरिक आरक्षण की मांग लंबे समय से की जा रही है, खासकर दलित समुदाय के भीतर सामाजिक और आर्थिक असमानताओं को ध्यान में रखते हुए। विभिन्न दलित संगठनों का कहना है कि आरक्षण का लाभ समाज के हर वर्ग तक समान रूप से पहुंचना चाहिए और इसके लिए आंतरिक आरक्षण का प्रावधान होना जरूरी है।
अब यह देखना होगा कि कर्नाटक सरकार इस संवेदनशील मुद्दे को कैसे संभालती है और आंतरिक आरक्षण के लिए अनुभवजन्य डेटा जुटाने की दिशा में क्या कदम उठाती है।