नई दिल्ली: "निकाह मुताह" या "मुताह विवाह" एक अस्थायी विवाह है, जो इस्लामी न्यायशास्त्र के कुछ सम्प्रदायों द्वारा मान्य है। यह विवाह का एक ऐसा स्वरूप है, जिसमें दोनों पक्ष एक निश्चित समय अवधि के लिए शादी के संबंध में बंधते हैं और समय पूरा होने पर विवाह स्वतः समाप्त हो जाता है। निकाह मुताह का अधिकतर प्रचलन शिया मुस्लिम समुदाय में देखने को मिलता है, जबकि सुन्नी समुदाय में इसे अमान्य माना गया है।
निकाह मुताह का मूल उद्देश्य अस्थायी विवाह द्वारा दो व्यक्तियों के लिए एक वैध संबंध बनाना है, जो दोनों की सहमति पर आधारित होता है। इस प्रकार के विवाह में संपत्ति, समय अवधि और अन्य शर्तों को विवाह से पहले तय कर लिया जाता है। हालाँकि इस विवाह में संपत्ति का अधिकार (मीरास) नहीं होता और विवाह समाप्त होते ही दोनों व्यक्ति एक-दूसरे से अलग हो सकते हैं।
मुताह का ऐतिहासिक और धार्मिक संदर्भ
इस्लामी परंपराओं में मुताह का उल्लेख पैगंबर मोहम्मद के समय से मिलता है। माना जाता है कि युद्ध और अस्थिर सामाजिक स्थितियों में, मुताह विवाह ने व्यक्तिगत संबंधों को सुरक्षित और पवित्र बनाए रखने में योगदान दिया। लेकिन बाद में इसे विभिन्न इस्लामी विचारधाराओं ने अलग-अलग रूप से अपनाया।
सुन्नी इस्लाम में, दुसरे खलीफा उमर इब्न अल-खत्ताब द्वारा मुताह विवाह पर प्रतिबंध लगाया गया था, जबकि शिया समुदाय इसे मान्यता देता रहा। इसके कारण निकाह मुताह में विवादास्पदता बनी हुई है, क्योंकि दोनों ही सम्प्रदाय इसे अलग दृष्टिकोण से देखते हैं।
विवाद और आलोचनाएं
निकाह मुताह की आलोचना इसके अस्थायी स्वरूप के कारण होती है। कई लोग इसे केवल एक अस्थायी सहूलियत मानते हैं, जो विवाह की दीर्घकालिकता और परिवार की भावना का अभाव दर्शाता है। आलोचकों का कहना है कि मुताह का दुरुपयोग कर इसे अनुचित तरीके से उपयोग किया जा सकता है। इसके बावजूद, इस्लामी न्यायशास्त्र में इसे दोनों पक्षों की सहमति के आधार पर वैध माना गया है।
वर्तमान समय में मुताह का प्रचलन
वर्तमान समय में मुताह विवाह का प्रचलन कम है, लेकिन कुछ मुस्लिम देशों में इसे विशेष स्थिति में स्वीकार किया जाता है। भारत में, मुताह के कानूनी मान्यता का मुद्दा जटिल है और यहां इसे व्यक्तिगत और धार्मिक स्वतंत्रता के नजरिये से देखा जाता है। इस पर विभिन्न सामाजिक और धार्मिक संगठनों के विचार विभाजित हैं।
निकाह मुताह का उद्देश्य एक ऐसा कानूनी ढांचा प्रस्तुत करना है, जो एक सीमित समय के लिए दो व्यक्तियों के बीच एक वैध संबंध को संभव बनाता है। यह अस्थायी विवाह इस्लामी कानून का एक हिस्सा है, लेकिन इसके अस्थायी स्वरूप, संभावित दुरुपयोग, और समाज में इसके प्रभावों को लेकर कई प्रश्न खड़े करता है।