नई दिल्ली: जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) में नजीब अहमद की गुमशुदगी के आठ साल बीत चुके हैं, लेकिन आज भी उसकी मां और हाशिए पर खड़े समाजों के लोग न्याय की लड़ाई में डटे हुए हैं। इस घटना ने देशभर के अल्पसंख्यक, दलित, आदिवासी और महिलाओं को एकजुट किया है, जो अपनी पहचान और अधिकारों के लिए निरंतर संघर्ष कर रहे हैं।
इस मार्च में नजीब की मां के संघर्ष को सलाम किया गया, जो पिछले आठ वर्षों से अपने बेटे की तलाश कर रही हैं। उनकी दृढ़ता और हौसले की सराहना की गई, जिन्होंने कभी हार नहीं मानी और हर साल जेएनयू आकर यह यकीन जताया कि उनका बेटा नजीब वापस आएगा। उनकी लड़ाई केवल अपने बेटे के लिए नहीं, बल्कि हर उस मां के लिए है, जिसका बेटा अन्याय का शिकार हुआ है।
मार्च में वक्ताओं ने यह बात मजबूती से रखी कि इस देश में मुसलमानों, दलितों, आदिवासियों और महिलाओं को उनकी पहचान के आधार पर निशाना बनाया जा रहा है। वक्ताओं ने कहा कि समाज में नफरत और भेदभाव को बढ़ावा देने वाले तंत्र से हमें हर दिन लड़ना पड़ता है। उनके मुताबिक, सत्ता और व्यवस्था से जुड़े कुछ लोग अपने पद और प्रभाव का इस्तेमाल करके दबे-कुचले समाजों की आवाज़ को दबाने का काम कर रहे हैं।
नजीब की गुमशुदगी पर सवाल उठाते हुए, वक्ताओं ने एबीवीपी, जेएनयू प्रशासन, दिल्ली पुलिस और सीबीआई पर गंभीर आरोप लगाए। उनका कहना था कि नजीब को गायब करने की साजिश में कई संस्थाएँ शामिल हैं, और उन्होंने उन सभी को ज़िम्मेदार ठहराने की मांग की। वक्ताओं ने नजीब को मानसिक रूप से अस्थिर घोषित करने के प्रयासों की भी आलोचना की और इसे न्याय से भटकाने का एक कुत्सित प्रयास करार दिया।
वक्ताओं ने हाल ही में देश के विभिन्न हिस्सों में हो रहे अन्याय की घटनाओं का जिक्र भी किया, जिसमें मुसलमानों की बस्तियों में दंगे और उनके घरों को रेलवे प्रॉपर्टी के नाम पर खाली कराने के आदेश शामिल हैं। उन्होंने यह सवाल उठाया कि विकास के नाम पर मस्जिदें तोड़ी जा रही हैं, जबकि मंदिरों को कोई नुकसान नहीं पहुँचाया जा रहा। यह भेदभावपूर्ण नीति और धार्मिक असहिष्णुता पर भी कड़ा विरोध जताया गया।
वक्ताओं ने ब्राह्मणवादी और मनुवादी विचारधारा के खिलाफ भी कड़ा संदेश दिया, जो उनके अनुसार देश के तंत्र को जिंदा रखे हुए है। उन्होंने सभी को चुनौती दी कि वे इन अन्यायपूर्ण व्यवस्थाओं के खिलाफ आवाज़ उठाएं और न्याय की मांग करें।
मार्च के अंत में, नजीब की मां को एकजुटता का संदेश देते हुए यह वादा किया गया कि उनकी लड़ाई में पूरा समाज उनके साथ खड़ा रहेगा।