सांकेतिक चित्र
मुंबई: बॉम्बे हाईकोर्ट ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण फैसले में स्पष्ट किया है कि मुस्लिम पुरुष, जिन्हें उनके धार्मिक पर्सनल लॉ के तहत एक से अधिक विवाह करने की अनुमति है, वे अपने सभी विवाहों को रजिस्टर करा सकते हैं। जस्टिस बीपी कुलाबावाला की बेंच ने कहा कि महाराष्ट्र रेगुलेशन ऑफ मैरिज ब्यूरो एंड रजिस्ट्रेशन ऑफ मैरिज एक्ट, 1998 मुस्लिम पुरुषों को एक से अधिक विवाह रजिस्टर करने से नहीं रोकता है, क्योंकि इस्लामिक पर्सनल लॉ के तहत यह अधिकार प्राप्त है।
यह फैसला उस समय आया जब एक मामला हाईकोर्ट में इस मुद्दे को लेकर पहुंचा था कि क्या इस कानून के तहत मुस्लिम पुरुष एक से अधिक विवाह रजिस्टर करा सकते हैं। कोर्ट ने अपने फैसले में स्पष्ट किया कि पर्सनल लॉ के प्रावधानों का सम्मान करते हुए, मुस्लिम पुरुषों को इस संबंध में कानूनन बाध्यता का सामना नहीं करना पड़ेगा।
बॉम्बे हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में साफ किया है कि मुस्लिम पुरूष एक से अधिक विवाह को रेजिस्टर्ड करा सकता है.
— Kranti Kumar (@KraantiKumar) October 23, 2024
जस्टिस बीपी कुलाबावाला की बेंच ने कहा कि महाराष्ट्र रेगुलेशन ऑफ मैरिज ब्यूरो एंड रेजिस्ट्रेशन ऑफ मैरिज एक्ट 1998 मुस्लिम शख्स को एक से अधिक विवाह रेजिस्टर्ड करने… pic.twitter.com/5ZmVzrH1Vp
इस फैसले के बाद सोशल मीडिया पर प्रतिक्रियाओं का दौर भी शुरू हो गया है। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म 'X' (पूर्व में ट्विटर) पर क्रांति कुमार नामक एक यूज़र ने इस फैसले पर टिप्पणी करते हुए कहा, "यह कानून गुफाओं के दौर की याद दिलाता है। मुस्लिम समाज को खुद इस कानून को खत्म करने की पहल करनी चाहिए।"
उन्होंने आगे लिखा, "अशराफ मुस्लिम बुद्धिजीवी अक्सर RSS, हिंदुत्व और नक्सलवाद जैसे मुद्दों पर बहस करते हैं, लेकिन जिस पर्सनल लॉ के तहत मुस्लिम पुरुष चार शादियां करने के हकदार हैं, उस पर चर्चा शायद ही कभी होती है।"
क्रांति कुमार की इस टिप्पणी ने सोशल मीडिया पर बहस को और तेज कर दिया है, और कई लोग इस विषय पर विभिन्न दृष्टिकोण रख रहे हैं। कुछ लोग इसे मुस्लिम पर्सनल लॉ के अधिकारों के रूप में देखते हैं, तो कुछ का मानना है कि इस तरह के प्रावधानों पर पुनर्विचार की आवश्यकता है, विशेषकर समाज में समानता और समकालीन मुद्दों के परिप्रेक्ष्य में।
इस फैसले के बाद यह देखना दिलचस्प होगा कि मुस्लिम समाज और कानूनविद इस पर क्या प्रतिक्रिया देते हैं, और क्या कोई कानूनी या सामाजिक पहल इस संबंध में आगे बढ़ाई जाती है।