नई दिल्ली: सामाजिक कार्यकर्ता और आदिवासी नेता हंसराज मीणा ने हाल ही में अपने X (पूर्व में ट्विटर) हैंडल पर हसदेव अरण्य के विवादित मुद्दे पर सरकार पर कड़ा प्रहार किया है। मीणा ने अपने पोस्ट में लिखा, "हसदेव जंगल अब युद्धभूमि बन चुका है। एक ओर हमारे वंचित तबकों के जवान खड़े हैं, जबकि दूसरी ओर गरीब आदिवासी अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं। नरेंद्र मोदी अदानी के खनन हितों के लिए सब हद पार कर चुके हैं। क्या यह तानाशाही नहीं है?"
मीणा का यह बयान हसदेव अरण्य में चल रहे खनन परियोजनाओं के खिलाफ आदिवासी समुदायों के संघर्ष के संदर्भ में आया है। हसदेव अरण्य, जो छत्तीसगढ़ में स्थित है, एक घना जंगल और समृद्ध जैव विविधता का केंद्र है। इस क्षेत्र में कोयला खनन को लेकर विवाद लंबे समय से चल रहा है। स्थानीय आदिवासी समुदाय और पर्यावरणविद इस खनन का विरोध कर रहे हैं, क्योंकि इससे जंगल की जैव विविधता को नुकसान पहुंचने का खतरा है, साथ ही यह क्षेत्र आदिवासियों की आजीविका और सांस्कृतिक पहचान से गहराई से जुड़ा हुआ है।
हसदेव जंगल अब युद्धभूमि बन चुका है। एक ओर हमारे वंचित तबकों के जवान खड़े हैं, जबकि दूसरी ओर गरीब आदिवासी अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं। नरेंद्र मोदी अदानी के खनन हितों के लिए नीचता की हद पार कर चुके हैं। क्या यह तानाशाही नहीं है? #SaveHasdeo pic.twitter.com/h1IQhR11Ak
— Hansraj Meena (@HansrajMeena) October 18, 2024
हंसराज मीणा का यह बयान इस संघर्ष को एक नया राजनीतिक आयाम देता है। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उद्योगपति गौतम अदानी पर आरोप लगाया कि वे खनन हितों को प्राथमिकता दे रहे हैं और इसके चलते आदिवासियों के अधिकारों को नजरअंदाज किया जा रहा है। मीणा का यह आरोप भारतीय राजनीति में उभरते पर्यावरण और विकास के बीच संघर्ष को भी रेखांकित करता है।
इस बीच, हसदेव अरण्य का मुद्दा राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा का विषय बनता जा रहा है। जहां सरकार इस खनन परियोजना को आर्थिक विकास और ऊर्जा सुरक्षा के दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण मानती है, वहीं स्थानीय समुदाय और पर्यावरण संगठनों का कहना है कि यह उनके अस्तित्व और पर्यावरण के लिए खतरा है।
मीणा ने अपने पोस्ट में जिस "तानाशाही" की बात की है, वह आदिवासियों और वंचित तबकों की आवाज को दबाने के संदर्भ में है। उनका मानना है कि सरकार केवल कॉर्पोरेट हितों को ध्यान में रखते हुए नीतियां बना रही है, जिससे वंचित तबकों के हकों की अनदेखी हो रही है।
यह देखा जाना बाकी है कि हसदेव अरण्य के मुद्दे पर सरकार का अगला कदम क्या होगा, लेकिन हंसराज मीणा जैसे नेताओं की आवाज इस संघर्ष को और तेज कर सकती है।