नई दिल्ली: सोशल मीडिया पर हाल ही में एक पोस्ट ने राजनीतिक गलियारों में हलचल मचा दी है। परवेज अहमद ने X (पूर्व में ट्विटर) पर एक दिलचस्प संवाद साझा किया, जिसमें उन्होंने भाजपा, सपा और बसपा के राजनीतिक समीकरण पर चर्चा की। अहमद ने लिखा कि उन्हें एक संघ के बुजुर्ग पूर्व दायित्वधारी से मुलाकात का अवसर मिला, जहां भाजपा की रणनीति और विपक्षी दलों के प्रति उसके दृष्टिकोण पर गहन बातचीत हुई।
अहमद के अनुसार, उन्होंने संघ के अधिकारी से यह सवाल किया कि भाजपा हमेशा समाजवादी पार्टी (सपा) को अपना मुख्य प्रतिद्वंदी क्यों बताती है, जबकि बहुजन समाज पार्टी (बसपा) को नहीं? इस पर अधिकारी ने एक लंबी सांस लेते हुए जवाब दिया कि भाजपा जब चाहे सपा को समाप्त कर सकती है, इसलिए वह सपा को मुख्य प्रतिद्वंदी के रूप में पेश करती है। उनका तर्क था कि सपा के पास स्पष्ट विचारधारा नहीं है, और समाजवादी विचारक डॉ. राम मनोहर लोहिया हमेशा जनसंघ के करीब रहे थे। वर्तमान समय में, सपा मुख्य रूप से 90% मुसलमानों और 60-70% यादवों का समूह है। अधिकारी ने बताया कि आज का मुसलमान भाजपा-विरोध में राजनीतिक शून्यता का सामना कर रहा है, जबकि सपा के शेष समर्थक सिर्फ राजनीतिक लाभ की लालसा में जुड़े हैं, जिन्हें किसी भी समय अलग किया जा सकता है।
आज संघ के एक बुजुर्ग पूर्व दायित्वधारी मिले.संवाद के दौरान हमने पूछा कि आखिर भाजपा हमेशा सपा को अपना मुख्य प्रतिदव्न्दी क्यों बताती है , बसपा को क्यों नहीं ??
— Parvez Ahmad (@parvezahmadj) October 24, 2024
लम्बी सांस लेकर वह बोले-भाजपा जब चाहेगी, सपा को ख़त्म कर देगी, इसलिए वह सपा को मुख्य प्रतिद्व्न्दी बताती है ?
हमने कहा…
संघ के पूर्व अधिकारी के मुताबिक, सपा कुछ सीटें भले ही जीत सकती है, लेकिन सत्ता में आने की संभावना नहीं है। इसके विपरीत, बसपा एक विचारधारा आधारित पार्टी है, जिसके पीछे अंबेडकर, कांशीराम और मायावती की मजबूत विरासत है। अगर भाजपा बसपा को अपना मुख्य प्रतिद्वंदी बताने लगे, तो दलित समुदाय एकजुट हो जाएगा, और साथ ही मुसलमान, सत्ता-विरोधी तथा सत्ता की चाह रखने वाले लोग बसपा के पक्ष में आ सकते हैं, जिससे भाजपा को बड़ा नुकसान उठाना पड़ सकता है।
अधिकारी ने यह भी कहा कि भाजपा का प्रयास यही रहता है कि बसपा पर भाजपा की 'बी' टीम होने का आरोप कभी खत्म न हो, ताकि बसपा को कमजोर रखा जा सके। इसके अलावा, मायावती की बढ़ती उम्र और जन संवाद से दूरी भी भाजपा को फायदा पहुंचा रही है।
परवेज अहमद की इस पोस्ट के बाद राजनीतिक पंडितों के बीच चर्चा का बाजार गर्म हो गया है। जहां कुछ लोग इसे भाजपा की गहरी रणनीति का हिस्सा मान रहे हैं, वहीं अन्य इसे विपक्षी दलों के लिए चेतावनी के तौर पर देख रहे हैं। इस पोस्ट ने यह सवाल भी खड़ा कर दिया है कि क्या सपा और बसपा को अपनी रणनीतियों में बदलाव की आवश्यकता है, ताकि वे भाजपा के खिलाफ मजबूती से खड़ी हो सकें?
इस खुलासे के बाद यह देखना दिलचस्प होगा कि विपक्षी दल किस तरह से अपनी रणनीति बनाते हैं और भाजपा की इस संभावित रणनीति का मुकाबला करने के लिए क्या कदम उठाते हैं।