नई दिल्ली/ब्रसेल्स - भारत में मानवाधिकारों के प्रति बिगड़ती स्थिति और धार्मिक अल्पसंख्यकों के खिलाफ हिंसा पर यूरोपीय संसद ने चिंता जताई है। यूरोपीय संसद में कल इस गंभीर मुद्दे पर एक प्रस्ताव पर मतदान होने वाला है। इस प्रस्ताव का उद्देश्य भारत में धार्मिक और जातीय हिंसा को समाप्त करने के लिए भारतीय सरकार पर दबाव डालना है।
यूरोपीय सांसदों का कहना है कि 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सत्ता में आने के बाद से भारत में हिंदू राष्ट्रवादी नीतियों का बोलबाला बढ़ गया है, जिसका असर पत्रकारों, धार्मिक अल्पसंख्यकों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं पर पड़ रहा है। भारत में मुसलमानों और ईसाइयों की स्थिति विशेष रूप से खराब है, जहां वे हर दिन अपने मौलिक अधिकारों का हनन महसूस कर रहे हैं।
"यह एक नाटकीय स्थिति है, और हमें इस हिंसा को समाप्त करने के लिए हर संभव प्रयास करना होगा," एक यूरोपीय सांसद ने कहा। उन्होंने चेताया कि अगर हालात इसी तरह बिगड़ते रहे, तो यूरोपीय संघ के साथ भारत के व्यापार समझौते पर सवाल खड़ा हो सकता है।
सांसदों का कहना है कि भारत में प्रेस की स्वतंत्रता सीमित हो गई है, पत्रकारों और कार्यकर्ताओं को झूठे आरोपों में गिरफ्तार किया जा रहा है। इस दौरान धार्मिक असहिष्णुता और नफरत के मामलों में भी बढ़ोतरी हुई है। एक सांसद ने कहा, "मैंने खुद भारत की यात्रा के दौरान इस गंभीर स्थिति को देखा। यह दुखद है कि एक महत्वपूर्ण साझेदार होने के बावजूद भारत में मानवाधिकारों का यह हाल है।"
देखो अंधभक्तों,
— Deep Aggarwal (@DeepAggarwalinc) October 24, 2024
विदेशों में विषगुरु का कितना डंका बजता हैं।
📢 भारतीय प्रधानमंत्री पर इतनी कठोर आलोचना कभी नहीं देखी गयी।
📢 भारत की छवि अब एक धार्मिक कट्टरपंथी, उत्पीड़क और असहिष्णु राष्ट्र के रूप में बन गयी है।#ModiDisasterForIndia#EVM_हटाओ_लोकतंत्र_बचाओ… pic.twitter.com/rFwGp71Zcy
यूरोपीय सांसदों ने एक संयुक्त प्रस्ताव में भारतीय अधिकारियों से अपील की है कि वे धार्मिक और जातीय हिंसा को समाप्त करने के लिए ठोस कदम उठाएं और दोषियों को सजा दें। प्रस्ताव में प्रधानमंत्री मोदी की सरकार से अपील की गई है कि वे किसी भी कट्टरपंथी विचारधारा को बढ़ावा न दें और एक निष्पक्ष माहौल में शांति स्थापित करें।
इस प्रस्ताव के अनुसार, ईयू-भारत साझेदारी में मानवाधिकारों को शामिल करने पर विशेष ध्यान दिया गया है। सांसदों का कहना है कि अगर यूरोप में हम विभिन्न धर्मों और पहचानों का सम्मान कर सकते हैं, तो हमें अपने साझेदारों से भी ऐसा ही करने की उम्मीद करनी चाहिए। यूरोपीय विशेष दूत की भारत यात्रा का सुझाव दिया गया है ताकि धार्मिक स्वतंत्रता के मुद्दे पर स्थिति का जायजा लिया जा सके।
भारत को दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के रूप में जाना जाता है, लेकिन धार्मिक अल्पसंख्यकों के प्रति असहिष्णुता और हिंसा इस छवि को धूमिल कर रहे हैं। यूरोपीय सांसदों का कहना है कि ईसाइयों के खिलाफ हिंसा के ये मामले अकेले नहीं हैं, बल्कि ये संगठित हमले हैं, जिनसे विनाश और पीड़ा बढ़ रही है।
इस प्रस्ताव के माध्यम से यूरोपीय संसद भारत से आह्वान कर रही है कि वह अपने संविधान के दायित्वों का पालन करे और मणिपुर सहित सभी क्षेत्रों में धार्मिक स्वतंत्रता को बनाए रखे।