नई दिल्ली: लेखक क्रांति कुमार ने हाल ही में अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर एक विवादास्पद पोस्ट साझा किया, जिसमें उन्होंने इजराइल के इतिहास को लेकर कुछ अत्यंत संवेदनशील और नकारात्मक टिप्पणियाँ की हैं। उनके अनुसार, “देव भूमि इजराइल में जंगलराज था। आंख के बदले आंख निकालने का कानून था। महिलाओं को वस्तु समझा जाता था, और बलात्कार करने पर कुछ सोने सिक्के दंड के रूप में चुकाकर छूटने की संस्कृति थी।”
कुमार ने यह भी उल्लेख किया कि यहूदी धर्म का अपमान करने पर मौत की सजा सुनाई जाती थी, और इसका जश्न मनाया जाता था। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा, “जीसस की हत्या के कई वर्ष बाद देव भूमि इजराइल में सेंट स्टीफेन की मौत का जश्न मनाया गया।”
सेंट स्टीफेन के जीवन के बारे में चर्चा करते हुए, उन्होंने कहा कि उनका जन्म 5 AD में ग्रीस में हुआ था। सेंट स्टीफेन एक हेलेनिस्टिक यहूदी थे और जीसस क्राइस्ट के विचारों से प्रभावित होकर ईसाई धर्म स्वीकार किया। ग्रीस के ईसाइयों ने उन्हें जेरूसलम भेजा, जहाँ उन्होंने ईसाईयत का प्रचार शुरू किया।
देव भूमि इजराइल में जंगलराज था. आंख के बदले आंख निकालने का कानून था. महिलाओं को वस्तु समझा जाता था, बलात्कार करने पर कुछ सोने सिक्के दंड के रूप में चुकाकर छूटने की संस्कृति थी.
— Kranti Kumar (@KraantiKumar) October 4, 2024
लेकिन यहूदी धर्म का अपमान करने पर मौत की सज़ा सुनाई जाती. मौत का जश्न मनाया जाता. जीसस की हत्या के कई… pic.twitter.com/bizzoXmws4
कुमार के अनुसार, यहूदियों के कट्टरपंथी पंथ, फरीसियों, ने सेंट स्टीफेन को चुनौती दी। उन्होंने यहूदी धर्म और पैगंबर मूसा का अपमान करने का आरोप लगाया और ईशनिंदा कानून के तहत उन्हें यहूदियों के 'Kangaroo Court' या राबानीत न्यायालय में पेश किया गया। अंततः, सेंट स्टीफेन को पत्थरों से मारकर मौत की सजा दी गई।
कुमार ने सेंट स्टीफेन के अंतिम शब्दों का उल्लेख करते हुए कहा, "हे प्रभु पिता परमेश्वर, इन्हें माफ करना। इन्हें नहीं पता ये लोग क्या कर रहे हैं।" उन्होंने अपने विवादास्पद पोस्ट में यह भी जोड़ा कि “1900 साल बाद, सेंट स्टीफेन ने एडोल्फ हिटलर के रूप में दुबारा जन्म लिया और अपने बाप, दादा और जीसस सबका बदला लिया।”
क्रांति कुमार का यह बयान सोशल मीडिया पर चर्चा का विषय बन गया है, जिससे विभिन्न समुदायों में नाराजगी और असहमति उत्पन्न हुई है। धार्मिक और ऐतिहासिक संदर्भों को लेकर इस तरह की टिप्पणियाँ अक्सर विवादास्पद होती हैं, और विशेषज्ञों का मानना है कि इससे सामाजिक सद्भाव को नुकसान पहुंच सकता है।
इस बयान पर विभिन्न धार्मिक नेताओं और विद्वानों ने आलोचना की है, जिन्होंने इसे एकतरफा और ऐतिहासिक तथ्यों से परे बताया है। वे इस बात पर जोर दे रहे हैं कि इस तरह की टिप्पणियों से नफरत और विभाजन को बढ़ावा मिलता है।
यह घटना एक बार फिर यह स्पष्ट करती है कि सोशल मीडिया पर व्यक्त विचारों का असर कितना दूरगामी हो सकता है, और इसके लिए जिम्मेदारी और संवेदनशीलता की आवश्यकता है।