नेपाल सरकार के पूर्व मंत्री डॉ. केशव मान शाक्य ने हाल ही में एक बयान दिया, जिसने न केवल नेपाल में बल्कि भारत और अन्य पड़ोसी देशों में भी राजनीतिक हलचल मचा दी है। उन्होंने हिंदू राष्ट्र की अवधारणा पर तीखा प्रहार करते हुए कहा कि हिंदू राष्ट्र की स्थापना से शांति नहीं आएगी, बल्कि इससे हिंसा और असमानता को बढ़ावा मिलेगा। उनके इस बयान ने विभिन्न राजनीतिक और सामाजिक संगठनों के बीच बहस को जन्म दिया है।
हिंदू राष्ट्र और जाति व्यवस्था पर टिप्पणियाँ
डॉ. शाक्य ने अपने भाषण में कहा, "हिंदू राष्ट्र की कोई ठोस अवधारणा नहीं होती है। अगर आप हिंदू धर्म के शास्त्रों को पढ़ेंगे, तो पाएंगे कि जाति व्यवस्था के बिना हिंदू धर्म की कल्पना नहीं की जा सकती। जाति व्यवस्था के बिना हिंदू धर्म अस्तित्व में नहीं रह सकता। इसलिए, हम उन पुरानी धारणाओं को छोड़ने के लिए मजबूर हुए।"
उन्होंने आगे कहा, "हमने नेपाल में हिंदू राष्ट्र की अवधारणा को फेंक दिया, और इसके लिए हमें राजा को भी सत्ता से हटाना पड़ा। अब हम जाति व्यवस्था को खत्म करने की कोशिश कर रहे हैं, क्योंकि यह सामाजिक पुनर्निर्माण के लिए आवश्यक है।"
नेपाल का अनुभव और भारत की स्थिति पर चेतावनी
नेपाल के इतिहास का हवाला देते हुए डॉ. शाक्य ने कहा कि नेपाल में हिंदू राज्य के कारण देश का विकास रुक गया और वहां की जनता उत्पीड़न का सामना कर रही थी। उन्होंने कहा, "नेपाल हिंदू राष्ट्र होने के कारण बहुत पीछे चला गया। आर्थिक विकास रुक गया और देश गरीबी में फंस गया। इससे मुक्ति पाने के लिए हमें पुरानी व्यवस्था को उखाड़ फेंकना पड़ा।"
भारत के संदर्भ में उन्होंने कहा, "अगर भारत हिंदू राष्ट्र बनने की दिशा में चला जाता है, तो इसका परिणाम हिंसा और असंतोष के रूप में होगा।" उन्होंने चेतावनी दी कि हिंदू राष्ट्र बनने से समाज में असमानता और उत्पीड़न बढ़ेगा, और ऐसे समाज में शांति स्थापित नहीं की जा सकती।
बीजेपी और राजनीतिक दिशा पर आलोचना
डॉ. शाक्य ने भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) पर भी निशाना साधा और कहा कि वर्तमान में बीजेपी जो कदम उठा रही है, वह "उल्टी दिशा" में जा रहा है। उन्होंने सवाल उठाया कि क्या भारत को सच में हिंदू राष्ट्र की आवश्यकता है। "मुझे ताज्जुब हो रहा है कि अगर भारत हिंदू राष्ट्र बनता है, तो वहां शांति नहीं होगी, बल्कि अशांति और हिंसा बढ़ेगी। कुछ लोग दूसरों को दमन करेंगे, और आज के समय में कोई भी व्यक्ति उत्पीड़न सहने के लिए तैयार नहीं है।"
उन्होंने भारत के संविधान की सराहना करते हुए कहा कि वर्तमान संविधान, जो बाबा साहब अंबेडकर के मार्गदर्शन में बनाया गया था, समानता, शिक्षा और लोकतंत्र की नींव पर आधारित है। "भारत आज शिक्षा, रोजगार और विकास के क्षेत्र में बहुत आगे बढ़ रहा है, और यह लोकतांत्रिक व्यवस्था के कारण संभव हुआ है। अगर भारत हिंदू राष्ट्र बनता है, तो यह उसकी प्रगति को रोक देगा।"
नेपाल की यात्रा और भविष्य की उम्मीदें
डॉ. शाक्य ने यह भी कहा कि नेपाल ने हिंदू राष्ट्र की अवधारणा को छोड़कर धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक गणराज्य की स्थापना की है। उन्होंने कहा, "हमने नेपाल में लोकतांत्रिक व्यवस्था अपनाई है, जो भारत के संविधान से प्रेरित है। नेपाल के लोग अब एक नए युग की ओर बढ़ रहे हैं, जहां समानता और स्वतंत्रता की भावना को महत्व दिया जा रहा है।"
उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि भारत में भी धर्मनिरपेक्षता और लोकतंत्र को मजबूत बनाए रखने की आवश्यकता है। उनका मानना है कि अगर भारत हिंदू राष्ट्र की ओर बढ़ता है, तो इससे देश में आंतरिक संघर्ष बढ़ेगा और इसका परिणाम विभाजनकारी होगा।
भारत के हिंदू राष्ट्र बनने पर सवाल
डॉ. शाक्य ने अंत में यह सवाल उठाया कि हिंदू राष्ट्र बनने से भारत को क्या लाभ होगा। उन्होंने कहा, "क्या हिंदू राष्ट्र बनना भारत के लिए फायदेमंद होगा? मेरा मानना है कि इससे देश को केवल नुकसान होगा। भारत एक बहुसांस्कृतिक और बहुधार्मिक देश है, और अगर इसे हिंदू राष्ट्र बनाने की कोशिश की जाती है, तो इससे देश का विभाजन हो सकता है।"
समाज में असमानता के खिलाफ संघर्ष की अपील
उन्होंने अपने वक्तव्य में जाति आधारित भेदभाव और असमानता पर भी विशेष रूप से ध्यान केंद्रित किया। "आज के समय में कोई भी व्यक्ति उत्पीड़ित होकर चुप नहीं बैठेगा। विश्व अब लोकतांत्रिक मूल्यों की ओर बढ़ रहा है, जहां हर किसी को समानता का अधिकार है।"
डॉ. शाक्य के इस बयान ने न केवल नेपाल बल्कि भारत में भी एक बड़ी बहस को जन्म दिया है। जहां एक ओर हिंदू राष्ट्र की समर्थक विचारधाराएँ इसे धार्मिक पहचान के पुनर्निर्माण के रूप में देखती हैं, वहीं दूसरी ओर आलोचक इसे सामाजिक और राजनीतिक असमानताओं को बढ़ावा देने वाला मानते हैं।
डॉ. केशव मान शाक्य का यह बयान भारत और नेपाल दोनों के लिए एक चेतावनी के रूप में देखा जा रहा है। उन्होंने हिंदू राष्ट्र की अवधारणा को एक असफल सामाजिक मॉडल बताया और भारत को इसे अपनाने से बचने की सलाह दी। उनका कहना है कि भारत को अपने संविधान और लोकतांत्रिक मूल्यों पर गर्व करना चाहिए और इनकी रक्षा करनी चाहिए, ताकि देश एकता, शांति और विकास के पथ पर आगे बढ़ता रहे।