दोहा, 7 अक्टूबर 2024 – अरब देशों ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण फैसला लिया है, जिसमें उन्होंने अपने ठिकानों का उपयोग ईरान के खिलाफ सैन्य हमलों के लिए करने से मना कर दिया है। यह कदम तब आया है जब क्षेत्र में तनाव बढ़ रहा है, और अमेरिका ने इस संदर्भ में अपनी सैन्य उपस्थिति को बढ़ाते हुए अपने अत्याधुनिक F-22 और F-35 लड़ाकू विमानों को मध्य पूर्व के एयरबेसों पर तैनात कर दिया है।
विशेषज्ञों के अनुसार, अरब देशों के इस फैसले के पीछे उनके अपने आंतरिक और क्षेत्रीय हित जुड़े हैं। ये देश नहीं चाहते कि उनके ठिकानों का इस्तेमाल ऐसे किसी संघर्ष के लिए हो, जो क्षेत्रीय स्थिरता को और नुकसान पहुंचा सकता है। ईरान और अमेरिका के बीच बढ़ते तनाव के बीच, यह फैसला अरब दुनिया की सावधानी भरी कूटनीति का संकेत है।
In Doha, Arab countries refused to use their bases against Iran
— Alok Kumar RTI (@alokactivist) October 5, 2024
But America has sent its F-22, F-35 fighter jets to its Middle East airbases
To protect Israel, America will destroy Israel in the same way it destroyed Ukraine by provoking it and pushing it into war #IranAttack pic.twitter.com/hJcwnfPrNq
दूसरी ओर, अमेरिका ने स्पष्ट कर दिया है कि उसकी यह सैन्य तैनाती इजराइल की सुरक्षा के लिए है। अमेरिकी अधिकारियों ने कहा है कि F-22 और F-35 विमानों की तैनाती इस क्षेत्र में उसके महत्वपूर्ण सहयोगियों की रक्षा के लिए की गई है, जिसमें इजराइल प्रमुख है।
इस पर राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि अमेरिका का यह कदम इजराइल की रक्षा के नाम पर किया जा रहा है, लेकिन इसके दीर्घकालिक प्रभाव गंभीर हो सकते हैं। कुछ का कहना है कि यह स्थिति उसी तरह से विकट हो सकती है, जैसा यूक्रेन के मामले में हुआ था। आलोचकों का दावा है कि जिस तरह अमेरिका ने यूक्रेन को रूस के खिलाफ संघर्ष के लिए उकसाया था और अंततः यूक्रेन को तबाही की ओर धकेला, उसी प्रकार अब इजराइल को इसी प्रकार के जाल में फंसाने की कोशिश की जा रही है।
इस बीच, इजराइल के पड़ोसी देशों और ईरान के बीच पहले से ही भारी तनाव है, और अमेरिकी सैन्य विमानों की तैनाती से इस क्षेत्र में तनाव और बढ़ सकता है।
क्षेत्रीय स्थिरता बनाए रखना अब अरब देशों, इजराइल और अन्य शक्तियों के हाथों में है, और आने वाले दिनों में स्थिति और भी जटिल हो सकती है।