नई दिल्ली: भारतीय वायुसेना (IAF) के एक वरिष्ठ अधिकारी द्वारा हाल ही में किए गए एक बयान से देश की रक्षा तैयारियों को लेकर एक नई बहस छिड़ गई है। एयरफोर्स और आर्मी के प्रमुखों में से एक ने दावा किया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने सेना को मजबूत करने के दावों के विपरीत, उसकी क्षमता में गिरावट आई है। इस बयान पर प्रधानमंत्री कार्यालय (PMO) ने नाराजगी जताई और अधिकारी को कड़ी फटकार मिली है।
इस अधिकारी ने अपने बयान में कहा कि मोदी सरकार ने 36 राफेल लड़ाकू विमानों की खरीद को अपने सबसे बड़े रक्षा उपलब्धि के रूप में पेश किया, जबकि हकीकत में इससे सेना की कुल क्षमता में कोई बड़ा सुधार नहीं हुआ है। उन्होंने कहा, "राफेल विमान को लाकर सरकार झूठी वाहवाही लूट रही है, लेकिन अगर हम समग्र सैन्य शक्ति की बात करें, तो यह 1965 के युद्ध के समय की तुलना में भी कमजोर हो गई है।"
सेना प्रमुख ने खुलासा किया कि भारतीय वायुसेना अभी भी 4th जनरेशन के मिराज, सुखोई, और मिग-21 जैसे विमानों पर निर्भर है, जो चीन और पाकिस्तान के पास मौजूद 5th जनरेशन के अत्याधुनिक लड़ाकू विमानों के मुकाबले कहीं नहीं ठहरते। मिग-21 को लेकर उन्होंने खासतौर पर कहा, "मिग-21 तो हमारे जवानों के लिए उड़ते हुए ताबूत के समान हो चुके हैं, लेकिन सरकार इसे रिटायर करने के लिए तैयार नहीं है।"
अधिकारी ने आरोप लगाया कि मोदी सरकार ने रक्षा बजट में भी भारी कटौती की है। उन्होंने कहा, "राजीव गांधी और पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकारों के समय देश की GDP का 4.2% हिस्सा रक्षा खर्च पर होता था, जबकि अब यह घटकर 1.9% पर आ गया है।" इस बयान से यह स्पष्ट होता है कि सरकार पर सेना को अपेक्षित संसाधन और सुविधाएं उपलब्ध कराने में नाकामी का आरोप लगाया गया है।
सूत्रों के अनुसार, इस बयान के बाद प्रधानमंत्री कार्यालय ने तुरंत संज्ञान लिया और अधिकारी को अनुशासनात्मक कार्रवाई की चेतावनी दी गई है। PMO का मानना है कि इस तरह के बयान न केवल जनता के बीच भ्रम फैलाते हैं, बल्कि देश की सुरक्षा के दृष्टिकोण से भी खतरनाक हैं।
रक्षा मंत्रालय के एक प्रवक्ता ने भी इस मामले पर बयान देते हुए कहा कि सरकार सेना को आधुनिक बनाने के लिए हर संभव कदम उठा रही है। प्रवक्ता ने कहा, "36 राफेल विमानों की खरीद और रक्षा बजट की रणनीतिक पुनर्व्यवस्था सरकार के व्यापक सैन्य सुधारों का हिस्सा है। सेना की क्षमता को आधुनिक तकनीक से लैस करने के लिए सरकार प्रतिबद्ध है।"
यह विवाद ऐसे समय में आया है जब भारत की रक्षा नीति और राष्ट्रीय सुरक्षा को लेकर विपक्ष भी सवाल उठा रहा है। सरकार और सेना के उच्चाधिकारियों के बीच इस तरह के सार्वजनिक मतभेदों से देश की सुरक्षा तैयारियों पर गंभीर चिंताएं उत्पन्न होती हैं।