नई दिल्ली— भारत के जाने-माने लेखक और विचारक क्रांति कुमार ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X (पूर्व में ट्विटर) पर कौटिल्य, जिसे चाणक्य के नाम से भी जाना जाता है, के संबंध में विवादास्पद विचार साझा किए हैं। उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा है कि कौटिल्य का कोई पुरातात्विक प्रमाण नहीं मिलता, और यह कि चाणक्य एक काल्पनिक चरित्र हैं।
कुमार ने अपने पोस्ट में कहा, “कुछ मित्र मुझसे सवाल कर रहे हैं कि अगर कौटिल्य का पुरातात्विक साक्ष्य नहीं मिलता, तो चंद्रगुप्त मौर्य और बिंदुसार का क्या?” उन्होंने इस पर जवाब देते हुए कहा कि चंद्रगुप्त मौर्य का पुरातात्विक प्रमाण जूनागढ़ शिलालेख पर और बिंदुसार का प्रमाण सांची के अभिलेख में मिलता है।
मैंने लिखा कौटिल्य यानी चाणक्य का पुरातात्विक सबूत नही मिलता. मैंने मुखर होकर लिखा चाणक्य काल्पनिक चरित्र है.
— Kranti Kumar (@KraantiKumar) October 6, 2024
कुछ मित्र मैसेज कर सवाल पूछ रहे हैं कौटिल्य का पुरातात्विक सबूत नही मिलता तो चंद्रगुप्त मौर्य और बिंदुसार के कौन से पुरातात्विक सबूत मिलते हैं ?
मैं पूरे देश को बताना… pic.twitter.com/yPNHYO93Ki
कुमार ने आगे बताया कि चाणक्य के राजनीतिक सिद्धांत जाति और वर्ण व्यवस्था पर आधारित हैं, जबकि भारत की प्राचीन सभ्यता में, सिंधु घाटी सभ्यता से लेकर मौर्य वंश तक, जाति और वर्ण की व्यवस्था नहीं थी। उन्होंने जोर देकर कहा कि जाति और वर्ण व्यवस्था की अवधारणा ईसा बाद की है।
उनका यह विचार देश के इतिहासकारों और विद्वानों के बीच चर्चा का विषय बन गया है। कई लोग इस बात से सहमत हैं कि ऐतिहासिक आंकड़ों के बिना किसी भी चरित्र को काल्पनिक ठहराना मुश्किल हो सकता है, वहीं कुछ अन्य इस दृष्टिकोण को चुनौती भी दे रहे हैं।
कुमार के इस बयान ने एक नई बहस को जन्म दिया है, जिसमें पुरातात्विक साक्ष्य, ऐतिहासिक वास्तविकता, और भारतीय समाज की प्राचीन संरचना पर विचार विमर्श हो रहा है। उनके द्वारा उठाए गए सवालों का जवाब देने के लिए अनेक विद्वानों और इतिहासकारों ने भी अपने विचार प्रस्तुत करने की तैयारी कर ली है।
यह देखना दिलचस्प होगा कि इस बहस के आगे बढ़ने पर भारतीय इतिहास की व्याख्या कैसे प्रभावित होगी और क्या नई शोधों में कौटिल्य के संदर्भ में कोई परिवर्तन आएगा।