भुवनेश्वर, 6 सितंबर 2024 – हाल ही में एक महत्वपूर्ण आरटीआई (सूचना का अधिकार) से खुलासा हुआ है कि आईआईटी भुवनेश्वर में अनुसूचित जाति (एससी), अनुसूचित जनजाति (एसटी) और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के संकाय सदस्यों का प्रतिनिधित्व बेहद कम है। यह जानकारी एआईओबीसीएसए (ऑल इंडिया ओबीसी स्टूडेंट्स एसोसिएशन) के राष्ट्रीय अध्यक्ष गौड़ किरण द्वारा दायर आरटीआई के माध्यम से सामने आई है।
आरटीआई के अनुसार, आईआईटी भुवनेश्वर में कुल 213 संकाय सदस्यों में से:
- सामान्य वर्ग के 80.28% सदस्य हैं।
- ओबीसी वर्ग के 12.96% सदस्य हैं।
- एससी वर्ग के केवल 5.63% सदस्य हैं।
- एसटी वर्ग के प्रतिनिधित्व का प्रतिशत लगभग 0.4% है, जो शून्य के करीब माना जा सकता है।
- ईडब्ल्यूएस (आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग) का भी प्रतिनिधित्व मात्र 0.4% है।
यह आंकड़े भारत के प्रमुख इंजीनियरिंग संस्थान में सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों के लिए शैक्षणिक अवसरों की विषमता को उजागर करते हैं। विशेष रूप से एसटी वर्ग का प्रतिनिधित्व, जो लगभग शून्य के बराबर है, गंभीर चिंता का विषय है।
An RTI filed by AIOBCSA National President @gowdkiran reveals the dismal representation of SC, ST, and OBC faculty members at IIT Bhubaneswar. Out of 213 faculty members:
— All India OBC Students Association (AIOBCSA) (@aiobcsa) September 6, 2024
- General: 80.28%
- OBC: 12.96%
- SC: 5.63%
- ST: 0.4%
- EWS: 0.4% @EduMinOfIndia pic.twitter.com/CY0BpgG2k3
गौड़ किरण की प्रतिक्रिया:
आरटीआई के खुलासे के बाद, एआईओबीसीएसए के अध्यक्ष गौड़ किरण ने कहा, "यह स्थिति अत्यंत चिंताजनक है और देश के प्रमुख शैक्षणिक संस्थानों में सामाजिक न्याय और समान अवसरों के सिद्धांतों का उल्लंघन करती है। इतने बड़े संस्थान में एसटी वर्ग के संकाय सदस्यों की लगभग गैर-मौजूदगी सरकार द्वारा तय किए गए आरक्षण नीतियों और विविधता सुनिश्चित करने के प्रयासों पर सवाल उठाती है।"
आरक्षण नीति और वास्तविकता में अंतर:
भारत में सरकारी और सार्वजनिक संस्थानों में एससी, एसटी और ओबीसी के लिए आरक्षण नीतियां लागू हैं, जिनका उद्देश्य हाशिए पर रहने वाले वर्गों को समान अवसर प्रदान करना है। लेकिन इस आरटीआई से स्पष्ट होता है कि आईआईटी भुवनेश्वर जैसे प्रतिष्ठित संस्थान में इन नीतियों का प्रभाव सीमित है, और आरक्षण के बावजूद इन वर्गों का प्रतिनिधित्व बेहद कम है।
आगे की दिशा:
यह खुलासा न केवल आईआईटी भुवनेश्वर के प्रशासन के लिए, बल्कि पूरे उच्च शिक्षा क्षेत्र के लिए एक बड़ा सवाल खड़ा करता है। कई विशेषज्ञों का मानना है कि इस तरह की विसंगतियों को दूर करने के लिए सरकार और शैक्षणिक संस्थानों को ठोस कदम उठाने होंगे। साथ ही, सामाजिक न्याय को सशक्त बनाने के लिए संस्थानों में एससी, एसटी और ओबीसी वर्ग के संकाय सदस्यों की भर्ती प्रक्रिया को और अधिक पारदर्शी और सुसंगठित करने की आवश्यकता है।
इस मुद्दे पर देशभर में बहस तेज हो सकती है, और यह देखना दिलचस्प होगा कि आईआईटी भुवनेश्वर या सरकार इस दिशा में क्या कदम उठाते हैं।