तुमने मूर्तियों को दूध पिलाया, हमें पानी तक नहीं पीने दिया, हमारी 90% आबादी को पढ़ने तक नहीं दिया': कामो मेघवाल की पोस्ट पर उठे सवाल

राजस्थान के जाने-माने अंबेडकरवादी कार्यकर्ता कामो मेघवाल ने हाल ही में अपने सोशल मीडिया अकाउंट 'X' पर एक पोस्ट साझा की, जिससे राज्यभर में चर्चा का विषय बन गया है। इस पोस्ट में उन्होंने बौद्ध धर्म के आदर्शों और दलित समाज के प्रति सदियों से हो रहे भेदभाव पर तीखा प्रहार किया है।

 पोस्ट में क्या कहा?

कामो मेघवाल ने अपनी पोस्ट में लिखा, "कल हमारे आदर्श बुद्ध का अपमान किया गया, इसलिए पूरी रात मैं सोचती रही कि आज भी ये लोग हमें अपमानित कर रहे हैं।" उन्होंने सत्ता में बैठे और उच्च जाति के लोगों पर हमला बोलते हुए कहा कि "घर-घर जाकर चुनाव के लिए वोट मांगने वाले और मंदिर के दान पर निर्भर रहने वाले लोग अब हमें यह सिखा रहे हैं कि सब कुछ मेहनत से मिलता है।"

मेघवाल ने सवाल उठाते हुए कहा, "जो लोग कहते हैं कि हम आरक्षण के सहारे जी रहे हैं, वे यह भूल जाते हैं कि हमने उनके खेत जोते, उनके मेले ढोए, उनके पशुओं को चराया, उनके मंदिर बनाए। लेकिन उन्होंने क्या किया? उन्होंने केवल पाखंड और अंधविश्वास का सहारा लेकर लोगों को डराया और 90% आबादी को पढ़ाई से वंचित रखा।"

 वर्ण व्यवस्था पर सीधा वार

कामो मेघवाल ने सीधे तौर पर वर्ण व्यवस्था पर भी निशाना साधा। उन्होंने कहा, "तुमने अपनी सर्वोच्चता के लिए चार वर्ण बनाए ताकि तुम सर्वोच्च रहो। तुम्हें पता था कि कोई व्यक्ति मुख, पेट, जांघ या पैर से पैदा नहीं होते, फिर भी तुमने यह नाटक रचा।"

उनका यह बयान उन लोगों पर भी सवाल उठाता है जिन्होंने धार्मिक संस्थानों और मूर्ति पूजा को महत्व दिया लेकिन दलितों के प्रति अन्याय को अनदेखा किया। मेघवाल ने लिखा, "तुमने मूर्तियों को दूध पिलाया, लेकिन हमारे लोगों को पानी तक नहीं पिलाया। तुमने हमेशा शोषण किया, जिसकी सजा तुम्हें इसी जन्म में मिलेगी।"

 बहुजन क्रांति का आह्वान

कामो मेघवाल ने पोस्ट के अंत में बहुजन क्रांति की बात की और कहा, "इतना शोषण करने के बाद भी तुम्हारे भगवान ने तुम्हें कुछ नहीं कहा, तो वह भगवान नहीं है, वह सिर्फ एक मूर्ति है जो न बोलती है और न सुनती है। पाखंड की मियाद खत्म होने वाली है और इसके बाद एक बहुजन क्रांति होगी। सत्ता बहुजन के हाथ में होगी। जय भीम, जय जोहार, जय संविधान।"

 राजनीतिक हलचल

कामो मेघवाल की इस पोस्ट के बाद राजनीतिक और सामाजिक हलकों में बवाल मच गया है। एक ओर जहां दलित और बहुजन समाज के लोग उनके विचारों का समर्थन कर रहे हैं, वहीं दूसरी ओर कुछ धार्मिक संगठनों और उच्च जाति के नेताओं ने इसे धर्म और परंपराओं पर हमला करार दिया है। 

कामो मेघवाल की यह पोस्ट सामाजिक असमानता और जातिगत भेदभाव पर गंभीर सवाल खड़े करती है। उनके शब्दों में एक गहरी नाराजगी और बदलाव की मांग झलकती है, जो बहुजन समाज की वर्तमान स्थिति को उजागर करती है। आगे यह देखना दिलचस्प होगा कि उनकी इस पोस्ट पर समाज और राजनीति के अन्य घटक क्या प्रतिक्रिया देते हैं। 

Rangin Duniya

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