यूपी में खाने-पीने की दुकानों पर दुकानदार का नाम लिखने से मुस्लिमों से ज्यादा SC, ST और OBC रेस्टोरेंट दुकानदार होंगे प्रभावित: क्रांति कुमार

लखनऊ: उत्तर प्रदेश में एक नया सरकारी आदेश सोशल मीडिया पर चर्चा का विषय बन गया है। क्रांति कुमार नामक एक सोशल मीडिया उपयोगकर्ता ने X (पूर्व में ट्विटर) पर एक पोस्ट साझा करते हुए दावा किया कि राज्य में अब खाने-पीने की दुकानों पर नेमप्लेट लगाना अनिवार्य कर दिया गया है, जिससे दुकानदार का नाम सामने आएगा। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की अध्यक्षता में हुई एक हाई-लेवल मीटिंग के बाद यह आदेश जारी हुआ है। पोस्ट में आगे दावा किया गया है कि इस कदम से खासकर मुस्लिम रेस्टोरेंट मालिकों पर निशाना साधा जा सकता है, लेकिन इस आदेश का असर OBC, SC और ST समुदाय के दुकानदारों और कर्मचारियों पर भी पड़ेगा।

जाति और धर्म के आधार पर भेदभाव का खतरा

क्रांति कुमार के अनुसार, नेमप्लेट लगाने से ग्राहकों को सीधे-सीधे ढाबा या रेस्टोरेंट के मालिक की जाति और धर्म के बारे में जानकारी मिल जाएगी। इससे यह संभावना जताई जा रही है कि ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य समुदाय के रेस्टोरेंट मालिकों पर तो इसका कोई नकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ेगा, लेकिन अनुसूचित जाति (SC), अनुसूचित जनजाति (ST) और अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) से जुड़े रेस्टोरेंट मालिकों को जातीय भेदभाव का सामना करना पड़ सकता है। 

कुमार का कहना है कि भारत में भोजन सिर्फ खाने की जरूरत नहीं है, बल्कि यह जाति और धार्मिक पहचान से भी जुड़ा है। कई समुदाय अपने से निचली जातियों के लोगों के बनाए भोजन को खाने से परहेज करते हैं, और यहां तक कि उनके घर में पानी भी नहीं पीते। अगर कोई निचली जाति का व्यक्ति अगड़ी जाति के घर आ जाए, तो उसे अलग गिलास में पानी दिया जाता है। ऐसे में, जब ढाबा या रेस्टोरेंट के बाहर मालिक का नाम और पहचान स्पष्ट होगी, तो क्या लोग इन रेस्टोरेंटों में खाना खाने जाएंगे?

 मुस्लिम और अन्य समुदायों पर असर

मुस्लिम रेस्टोरेंट मालिकों पर शिकंजा कसने की आशंका भी जताई जा रही है, लेकिन क्रांति कुमार के अनुसार, इस तुगलकी फरमान से मुसलमानों से ज्यादा OBC, SC और ST जातियों के रेस्टोरेंट मालिक प्रभावित होंगे। मुकेश जाटव, गौतम खटीक, रत्न केवट और अनिल पासवान जैसे छोटे ढाबा और रेस्टोरेंट मालिकों के लिए यह आदेश आर्थिक रूप से हानिकारक साबित हो सकता है। लोगों की जातिवादी मानसिकता से ग्रस्त समाज में, निचली जातियों के लोगों द्वारा संचालित व्यवसायों के प्रति भेदभाव बढ़ सकता है।

 रेस्टोरेंट के कर्मचारी भी होंगे प्रभावित

यह भी सवाल उठता है कि जिन रेस्टोरेंटों के मालिक तो ब्राह्मण, अग्रवाल या क्षत्रिय समुदाय से हैं, लेकिन किचन में काम करने वाले लोग OBC, SC और ST समुदाय से आते हैं, वहां भी भेदभाव की संभावना है। इससे कार्यस्थल पर जाति के आधार पर भेदभाव की घटनाएं बढ़ सकती हैं।

उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा जारी यह आदेश एक नए विवाद को जन्म दे सकता है। यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि इस आदेश का असल मकसद क्या है और इसके प्रभाव क्या होंगे। क्रांति कुमार की पोस्ट से यह साफ होता है कि इस फैसले को लेकर विभिन्न समुदायों में असंतोष और चिंता की लहर है। जाति और धर्म के आधार पर भेदभाव को रोकने के बजाय, यह आदेश कहीं इसे और बढ़ावा न दे दे, इस पर गहन विचार की आवश्यकता है। 

इस आदेश के लागू होने के बाद इसका सामाजिक और आर्थिक प्रभाव क्या होगा, यह आने वाले समय में ही स्पष्ट हो सकेगा।

Rangin Duniya

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