कृष्ण शब्द का शाब्दिक अर्थ "काला" या "अंधकारमय" होता है, और यह प्राचीन भारतीय संस्कृति में एक महत्वपूर्ण नाम रहा है। वैदिक काल से ही कृष्ण नाम का उल्लेख कई ऐतिहासिक और पौराणिक व्यक्तियों से जुड़ा है, जो भारतीय इतिहास और धर्मशास्त्र में गहरे अर्थ रखते हैं।
कई कृष्ण नाम के व्यक्तित्वों का उल्लेख वैदिक साहित्य और महाकाव्यों में किया गया है। महाभारत के रचयिता व्यास, जिन्हें कृष्ण द्वैपायन व्यास कहा जाता था, उनका नाम भी कृष्ण था। महाभारत की प्रमुख पात्र, रानी द्रौपदी, का नाम कृष्णा था, जो उनकी सुंदर काली त्वचा की सराहना करता है। इसके अलावा, कृष्णा नदी की देवी, वैदिक संत श्री कृष्ण निवावारी, और प्राचीन राजा हविर्धन और रानी धीषाना के पुत्र कृष्ण जैसे व्यक्तित्व इस नाम की व्यापकता को दर्शाते हैं।
ऋग्वेद, जो प्राचीनतम वैदिक ग्रंथों में से एक है, में भी कृष्ण नाम का उल्लेख मिलता है। एक प्रसंग में एक तेज गति वाले कृष्ण का वर्णन किया गया है, जो दस हजार राक्षसों के साथ अंशुमती नदी के पास खड़े थे। इंद्र ने अपनी शक्ति का प्रयोग कर उन्हें पराजित किया और उनके अनुयायियों को मार डाला। इस वर्णन में इंद्र और उनके मरुत साथी, तेज गति वाले कृष्ण से युद्ध करते हैं, जो बादल में छिपे होते हैं।
यह प्रसंग, ऋग्वेद संहिता (8.96.13–17) में वर्णित है, और यह भगवान कृष्ण से भिन्न है, जिन्हें हम महाभारत और पुराणों में जानते हैं। ऋग्वेद में उल्लिखित कृष्ण को "शुष्ण" के रूप में भी जाना जाता है, जो दुष्ट शक्तियों से जुड़ा हुआ है। यह उल्लेख महत्वपूर्ण है क्योंकि इससे स्पष्ट होता है कि इस कृष्ण का भगवान कृष्ण से कोई सीधा संबंध नहीं है, और यह नाम वैदिक काल में सामान्यतः उपयोग किया जाता था।
हालांकि, ऋग्वेद में इस कृष्ण को असुर या दैत्य के रूप में सीधे तौर पर नहीं बताया गया है, परंतु बाद के टीकाकार, जैसे सायण, ने इसे इस प्रकार व्याख्या किया है। इससे यह स्पष्ट होता है कि भगवान कृष्ण का इस वैदिक कृष्ण से कोई संबंध नहीं है, और दोनों का इतिहास और पौराणिक कथा में अलग-अलग स्थान है।
कृष्ण नाम का यह प्राचीन और विविध उपयोग भारतीय सांस्कृतिक और धार्मिक इतिहास की गहराई और समृद्धता को दर्शाता है, जहां नाम के विभिन्न संदर्भ और प्रसंगों के माध्यम से विविध रूपों और व्यक्तित्वों को अभिव्यक्ति मिली है।
-पूर्ण व्याख्या महाराज उमाशंकर मिश्रा जी द्वारा