ब्राह्मण, बनिया, राजपूत और कायस्थ अपनी नवजात बेटियों को जन्म लेते ही क्यों मार देते है? जाने ऐसा सच जो अंदर तक हिलाकर रख देगा, वीडियो जरूर देखें

हाल ही में BBC पर प्रकाशित एक डॉक्यूमेंट्री ने एक बार फिर से भारत में नवजात बच्चियों की हत्या और लिंगभेद की गंभीर समस्या को उजागर किया है। यह डॉक्यूमेंट्री, जिसे अमिताभ पराशर ने तैयार किया है, समाज के उन वर्गों पर प्रकाश डालती है जहां बेटियों की हत्या का चलन अब भी जारी है। ब्राह्मण, बनिया, राजपूत और कायस्थ जैसे कथित ऊँची जातियों में नवजात बेटियों को केवल इसलिए मारा जा रहा है क्योंकि उनके विवाह में भारी दहेज देना पड़ता है। वहीं, तथाकथित 'नीची जातियों' के लोग अपनी आर्थिक तंगी और मुसीबतों के बावजूद बेटियों को पाल रहे हैं।

 बेटियों की हत्या का कारण: पितृसत्ता और दहेज का दबाव

इस डॉक्यूमेंट्री में दिखाया गया है कि कैसे पितृसत्ता और दहेज प्रथा की वजह से इन परिवारों में बेटियों को बोझ समझा जाता है। जब बेटी का जन्म होता है, तो उसे जन्म से पहले ही मारने का षड्यंत्र रच दिया जाता है। यह समस्या केवल बिहार के कटिहार जिले तक सीमित नहीं है, बल्कि पूरे देश में यह प्रथा व्याप्त है।

अमिताभ पराशर द्वारा प्रस्तुत यह डॉक्यूमेंट्री स्पष्ट रूप से दिखाती है कि कैसे ब्राह्मणवादी पितृसत्ता महिलाओं के खिलाफ है। ऐसे समाज में, जहां बेटियों को जन्म देने पर माताओं को भी दोषी माना जाता है, महिलाओं के प्रति यह दमनकारी रवैया पीढ़ी दर पीढ़ी चलता आ रहा है।

 

 समाज के तथाकथित 'ऊँची जातियों' और 'नीची जातियों' के बीच फर्क

इस डॉक्यूमेंट्री का एक महत्वपूर्ण हिस्सा यह भी है कि तथाकथित नीची जातियों में, लाख मुसीबतों के बावजूद, बेटियों को पालने की प्रथा देखी जाती है। ये परिवार आर्थिक रूप से कमजोर होते हुए भी बेटियों को मारने का विकल्प नहीं चुनते। दूसरी ओर, समाज के तथाकथित उच्च वर्गों में दहेज के बोझ और सामाजिक प्रतिष्ठा के कारण नवजात बेटियों की हत्या की जाती है।

 नारीवाद और जातिवाद: एक गहरा संबंध

यह डॉक्यूमेंट्री इस बात पर भी प्रकाश डालती है कि क्यों नारीवादी विमर्श में जातिवाद की बात की जाती है। भारत में जाति व्यवस्था और पितृसत्ता का गहरा संबंध है। विशेष रूप से ऊँची जातियों में महिलाओं को दमन और शोषण का शिकार होना पड़ता है। इसलिए, नारीवाद और जाति को एक साथ समझना महत्वपूर्ण है, क्योंकि दोनों का आपसी संबंध समाज में व्याप्त भेदभाव और अन्याय की जड़ों तक जाता है।

 दाईयों की भूमिका और एनजीओ का हस्तक्षेप

पहले के समय में दाईयां, जो घरों में बच्चों की देखभाल करती थीं, सामाजिक दबाव और डर के कारण नवजात बच्चियों को मारने के लिए मजबूर थीं। लेकिन अब, आधुनिक समय में चोरी-छुपे कुछ एनजीओ द्वारा नवजात बच्चियों को सुरक्षित स्थानों तक पहुँचाया जा रहा है। यह एक नई आशा की किरण है, लेकिन समस्या की जड़ें अभी भी गहरी हैं और इसे समाप्त करने के लिए व्यापक सामाजिक बदलाव की जरूरत है।

अमिताभ पराशर द्वारा तैयार की गई यह डॉक्यूमेंट्री समाज के उन अंधेरे कोनों को उजागर करती है, जहां नवजात बच्चियों की हत्या एक गंभीर समस्या बनी हुई है। इसे खत्म करने के लिए पितृसत्ता और जातिवाद के खिलाफ कड़ा संघर्ष करना होगा। इसके साथ ही, समाज में दहेज प्रथा और महिलाओं के प्रति भेदभाव को खत्म करने के लिए जागरूकता फैलानी होगी। महिलाओं के अधिकारों के लिए लड़ाई तब तक पूरी नहीं हो सकती जब तक जाति, पितृसत्ता और लिंगभेद की जंजीरों को पूरी तरह से तोड़ा नहीं जाता। 

यह रिपोर्ट BBC पर प्रकाशित डॉक्यूमेंट्री के आधार पर लिखी गई है, जिसे अमिताभ पराशर ने तैयार किया है।

Rangin Duniya

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