जम्मू-कश्मीर में 10 साल बाद हो रहे विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। जम्मू क्षेत्र, जहाँ पार्टी अपेक्षाकृत बेहतर प्रदर्शन की उम्मीद कर रही है, वहां पार्टी के अंदर असंतोष की खबरें सामने आई हैं। दूसरी ओर, कश्मीर घाटी की 47 सीटों में से बीजेपी ने केवल 19 सीटों पर ही उम्मीदवार उतारे हैं, जबकि 28 सीटों पर उसने कोई उम्मीदवार नहीं खड़ा किया। इस स्थिति ने यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या बीजेपी इस क्षेत्र में अलोकप्रिय हो गई है?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह ने दावा किया था कि अनुच्छेद 370 हटने के बाद कश्मीर में शांति स्थापित हुई है और घाटी के लोगों का सरकार में भरोसा बढ़ा है। लेकिन लोकसभा चुनावों के दौरान कश्मीर में उम्मीदवार न उतारने और अब विधानसभा चुनाव में आधी से भी कम सीटों पर प्रत्याशी खड़ा करने से पार्टी की स्थिति पर सवाल उठने लगे हैं।
दक्षिण कश्मीर के अनंतनाग में बीजेपी उम्मीदवार रफ़ीक़ वानी अपनी चुनावी रणनीति बनाने में जुटे हुए हैं। सख्त सुरक्षा घेरे के बीच वह चुनाव प्रचार के लिए निकलते हैं, लेकिन उनके प्रचार में केवल 300 लोग ही शामिल होते हैं, जो पार्टी की कठिनाइयों को दर्शाता है।
बीजेपी के एक वरिष्ठ नेता ने स्वीकार किया कि पार्टी ने उन सीटों पर उम्मीदवार खड़ा न करने का फैसला किया, जहाँ जीतने की संभावना कम थी। 2019 के लोकसभा चुनाव में भी कश्मीर घाटी में बीजेपी ने कोई उम्मीदवार नहीं उतारा था, जबकि जम्मू की दोनों सीटों पर उसे जीत मिली थी। अनुच्छेद 370 हटाने के बाद घाटी में विरोध प्रदर्शन और हिंसा का दौर देखा गया था।
वरिष्ठ पत्रकार तारिक बट के अनुसार, कश्मीर में बीजेपी का मुकाबला उन क्षेत्रीय पार्टियों से है, जिन्होंने दशकों से यहाँ अपनी पकड़ बनाई है। उनके मुताबिक, बीजेपी ने अनुच्छेद 370 हटाकर देश के बाकी हिस्सों में एक नैरेटिव जरूर सेट किया, लेकिन कश्मीर में इसका उतना प्रभाव नहीं पड़ा। कांग्रेस और नेशनल कॉन्फ्रेंस के गठबंधन ने भी बीजेपी की मुश्किलें बढ़ा दी हैं, जिससे पार्टी के खिलाफ एक विरोधी लहर पैदा हो गई है।
बीजेपी के प्रवक्ता अल्ताफ ठाकुर ने कहा कि पार्टी के कम उम्मीदवार उतारने का कारण उसकी मजबूरी नहीं, बल्कि रणनीति है। उन्होंने यह भी दावा किया कि पार्टी कश्मीर में कम से कम सात सीटें जीत सकती है। ठाकुर ने यह भी संकेत दिया कि यदि पार्टी को बहुमत नहीं मिलता, तो वह समान विचारधारा वाले दलों के साथ गठबंधन कर सकती है।
जम्मू-कश्मीर की 90 विधानसभा सीटों में से 43 सीटें जम्मू में हैं, जहाँ बीजेपी का प्रमुख वोट बैंक है। हालांकि, इस बार पार्टी ने पीरपंजाल जैसे मुस्लिम बहुल इलाकों में भी मुस्लिम उम्मीदवार उतारे हैं। पत्रकार हारुन रेशी ने कहा कि बीजेपी ने 2019 के बाद से शांति की स्थिति का नैरेटिव बनाया था, लेकिन जम्मू के कई इलाकों में चरमपंथी हमलों की बढ़ोतरी से उसकी स्थिति पर सवाल खड़े हुए हैं।
हाल ही में जम्मू क्षेत्र के लिए बीजेपी की पहली सूची जारी होते ही पार्टी मुख्यालय पर विरोध प्रदर्शन हुए और उम्मीदवारों की सूची को बदलना पड़ा। इसके बाद कई सीनियर नेताओं ने पार्टी से इस्तीफा दे दिया, जिससे पार्टी के अंदर का असंतोष भी उजागर हुआ है।
2014 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने 25 सीटें जीती थीं और पीपल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (PDP) के साथ गठबंधन कर सरकार बनाई थी। हालांकि, 2018 में यह गठबंधन टूट गया, जिसके बाद से जम्मू-कश्मीर में कोई चुनी हुई सरकार नहीं रही है।