नई दिल्ली: मुस्लिम महिलाओं के खतने (फीमेल जनिटल म्यूटिलेशन, FGM) पर दुनिया भर में बहस हो रही है। यह प्रथा, जो विभिन्न सांस्कृतिक और धार्मिक परंपराओं में पाई जाती है, ने स्वास्थ्य विशेषज्ञों, मानवाधिकार संगठनों और समाजशास्त्रियों का ध्यान आकर्षित किया है। लेकिन इस परंपरा के पीछे की सच्चाई और इसके स्वास्थ्य पर प्रभाव को समझना जरूरी है।
खतने का ऐतिहासिक और सांस्कृतिक संदर्भ
खतना, या Female Genital Mutilation (FGM), एक ऐसा प्रक्रिया है जिसमें महिलाओं के जननांगों के कुछ हिस्सों को काटा जाता है। यह प्रथा मुख्य रूप से अफ्रीकी, मध्य पूर्वी और कुछ दक्षिण एशियाई देशों में देखी जाती है। भारत में भी मुस्लिम समुदायों में यह प्रथा पाई जाती है, हालांकि इसकी व्यापकता भिन्न है। यह प्रथा विभिन्न कारणों से की जाती है, जिनमें धार्मिक विश्वास, सांस्कृतिक परंपराएं और सामाजिक मानक शामिल हैं।
खतना करने की प्रक्रिया
खतना की प्रक्रिया विभिन्न प्रकार की हो सकती है, जो कि पूरी तरह से चिकित्सा और सामाजिक दृष्टिकोण से अवैज्ञानिक है। सबसे आम प्रकार में, 'फीमेल जनिटल म्यूटिलेशन' के अंतर्गत क्लिटोरिस का कुछ हिस्सा, और कभी-कभी आसपास के ऊतकों को भी काट दिया जाता है। इस प्रक्रिया के दौरान किसी भी प्रकार की एनेस्थीसिया का उपयोग नहीं किया जाता, जिससे महिलाओं को अत्यधिक दर्द और अन्य स्वास्थ्य समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
स्वास्थ्य पर प्रभाव
खतना से जुड़े स्वास्थ्य प्रभाव गंभीर और दीर्घकालिक हो सकते हैं। तत्काल प्रभावों में गंभीर दर्द, रक्तस्राव और संक्रमण शामिल हैं। दीर्घकालिक प्रभावों में शामिल हैं जननांगों में स्थायी दर्द, मासिक धर्म की समस्याएं, प्रसव के दौरान कठिनाइयाँ और यौन स्वास्थ्य संबंधी समस्याएँ। इसके अलावा, यह प्रक्रिया मानसिक स्वास्थ्य पर भी बुरा प्रभाव डाल सकती है, जिससे चिंता और तनाव जैसे समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं।
धार्मिक और सांस्कृतिक मान्यता
कुछ समुदायों का मानना है कि खतना एक धार्मिक अनुष्ठान है जो पवित्रता और शुद्धता से जुड़ा है। हालांकि, विभिन्न धार्मिक विद्वानों का कहना है कि इस प्रक्रिया का धर्म से कोई लेना-देना नहीं है और यह केवल सांस्कृतिक परंपराओं का हिस्सा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) और कई अन्य मानवाधिकार संगठनों का कहना है कि यह प्रथा महिलाओं के स्वास्थ्य और मानवाधिकारों के खिलाफ है और इसे समाप्त किया जाना चाहिए।
वर्तमान स्थिति और प्रयास
भारत में, कई संगठनों और सक्रियताओं ने खतना के खिलाफ आवाज उठाई है और इसके स्वास्थ्य प्रभावों के बारे में जागरूकता फैलाने का प्रयास किया है। सरकार और स्वास्थ्य संस्थान इस प्रथा को समाप्त करने के लिए कानून और कार्यक्रमों को लागू कर रहे हैं। हालांकि, इस प्रथा की समाप्ति के लिए सांस्कृतिक संवेदनशीलता और शिक्षा का महत्वपूर्ण योगदान है।
मुस्लिम महिलाओं का खतना एक विवादित और समस्या से भरी प्रथा है जो न केवल स्वास्थ्य बल्कि मानवाधिकारों के खिलाफ भी है। इसके खिलाफ समाज के सभी हिस्सों को मिलकर काम करना होगा ताकि महिलाओं को स्वास्थ्य और सुरक्षा की सुनिश्चितता मिल सके। इस दिशा में उठाए गए कदम इस प्रथा के अंत की ओर एक महत्वपूर्ण बदलाव ला सकते हैं।