अगर मुस्लिम पुरुष का खतना न हो तो क्या होगा? सच जो सामने आया उसे जानकर रोंगटे खड़े हो जायेंगे

खतना या "सर्कम्सिशन" एक महत्वपूर्ण धार्मिक और सांस्कृतिक प्रथा है जिसे दुनिया भर में मुसलमानों द्वारा निभाया जाता है। इस प्रथा में शिशु या वयस्क पुरुष के लिंग की अग्र त्वचा (foreskin) को सर्जरी द्वारा हटा दिया जाता है। इस्लामिक परंपरा में खतना को अनिवार्य नहीं, बल्कि एक महत्वपूर्ण धार्मिक अभ्यास माना गया है, जिसे पैगंबर मुहम्मद द्वारा अनुशंसित किया गया था। हालांकि, खतना की प्रक्रिया के धार्मिक, स्वास्थ्य, और सामाजिक पहलुओं पर चर्चा होती रहती है। इस लेख में, हम जानने का प्रयास करेंगे कि अगर किसी मुस्लिम पुरुष का खतना नहीं होता है तो इसका क्या प्रभाव हो सकता है, और यह किन-किन क्षेत्रों में अहम है।

 1. धार्मिक दृष्टिकोण

इस्लाम में खतना को 'फितरा' का हिस्सा माना गया है, जिसका अर्थ है स्वाभाविक स्वच्छता। इस्लामी हदीसों के अनुसार, पैगंबर मुहम्मद ने खतना की सिफारिश की थी, लेकिन इसे अनिवार्य नहीं बताया गया। हालांकि, कई मुस्लिम समाजों में इसे एक धार्मिक कर्तव्य के रूप में देखा जाता है। कुछ मुस्लिम परिवारों और समुदायों में खतना के बिना व्यक्ति को संदेह की दृष्टि से देखा जा सकता है, और उसे धार्मिक परंपराओं का पालन न करने वाला समझा जा सकता है। अगर किसी पुरुष का खतना नहीं होता है, तो उसके धार्मिक जीवन और समुदाय में उसकी स्थिति प्रभावित हो सकती है। 

 2. स्वास्थ्य के दृष्टिकोण

खतना के समर्थन में कई चिकित्सकीय और स्वास्थ्य संबंधी तर्क दिए जाते हैं। स्वास्थ्य विशेषज्ञों का मानना है कि खतना किए गए पुरुषों को कुछ संक्रमणों, जैसे कि यूरिनरी ट्रैक्ट इंफेक्शन (UTI), HIV, और कुछ यौन संचारित रोगों (STDs) से बचने में मदद मिल सकती है। कई अध्ययनों के अनुसार, खतना के बाद लिंग की स्वच्छता बेहतर होती है, क्योंकि अग्र त्वचा हटाने से बैक्टीरिया और गंदगी के जमा होने की संभावना कम हो जाती है।

हालांकि, यह भी सच है कि बिना खतना किए पुरुष भी उचित स्वच्छता का ध्यान रखकर इन समस्याओं से बच सकते हैं। जो पुरुष खतना नहीं कराते, उन्हें नियमित रूप से सफाई पर ध्यान देना होता है, खासकर अग्र त्वचा के नीचे की सफाई पर, ताकि संक्रमण और गंदगी से बचा जा सके। इसलिए, अगर किसी मुस्लिम पुरुष का खतना नहीं होता, तो उसे खुद को स्वस्थ रखने के लिए अधिक सावधानी बरतनी होगी।

 3. सांस्कृतिक और सामाजिक प्रभाव

खतना एक सांस्कृतिक प्रथा भी है, जो कई मुस्लिम समुदायों में बच्चे के जन्म के बाद जल्दी की जाती है। कई समाजों में यह धार्मिक के साथ-साथ सामाजिक मान्यताओं से भी जुड़ा हुआ है। खतना न करने पर एक पुरुष को अपने समुदाय में अन्य पुरुषों की तुलना में अलग महसूस किया जा सकता है, खासकर अगर वह ऐसे समाज में रहता है जहां खतना की परंपरा अत्यधिक महत्वपूर्ण मानी जाती है। 

कुछ देशों और क्षेत्रों में खतना के बिना पुरुषों को शादी या सामाजिक संबंधों में मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है। कई महिलाओं के दृष्टिकोण से खतना को पुरुष की स्वच्छता और यौन स्वास्थ्य से जोड़ा जाता है, इसलिए कुछ मामलों में यह वैवाहिक जीवन और यौन संबंधों पर भी प्रभाव डाल सकता है।

 4. व्यक्तिगत निर्णय और अधिकार

हाल के समय में, कई देशों में खतना के अधिकार और इसे लेकर व्यक्तिगत स्वतंत्रता के मुद्दे पर चर्चा हो रही है। कई लोग मानते हैं कि खतना का निर्णय व्यक्तिगत होना चाहिए और इसे किसी भी धर्म या समाज पर अनिवार्य नहीं किया जाना चाहिए। कुछ मुस्लिम पुरुष, जो पश्चिमी देशों या गैर-मुस्लिम समाजों में रहते हैं, खतना नहीं कराते हैं और फिर भी अपने धर्म का पालन करते हैं।

यहां पर सवाल यह उठता है कि क्या खतना के बिना कोई व्यक्ति इस्लामी जीवनशैली का पालन कर सकता है? इस्लामिक विद्वानों के अनुसार, खतना के बिना भी एक व्यक्ति अपने अन्य धार्मिक कर्तव्यों को निभाकर इस्लाम का पालन कर सकता है। हालांकि, उसे समाज और धार्मिक परंपराओं के संदर्भ में कुछ आलोचनाओं का सामना करना पड़ सकता है।

 5. यौन और मानसिक स्वास्थ्य पर प्रभाव

खतना यौन स्वास्थ्य पर भी कुछ प्रभाव डाल सकता है। कुछ अध्ययनों में पाया गया है कि खतना के बाद पुरुषों की संवेदनशीलता में कमी आ सकती है, जबकि कुछ अन्य शोध इस बात की पुष्टि नहीं करते हैं। इस विषय पर चिकित्सीय अनुसंधान अभी भी जारी है। जो पुरुष खतना नहीं कराते हैं, उन्हें अपने यौन स्वास्थ्य के संबंध में कोई विशेष समस्या नहीं होती, जब तक वे सामान्य स्वच्छता और यौन स्वास्थ्य की देखभाल करते हैं।

मानसिक स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से, खतना न कराने पर एक मुस्लिम पुरुष को सामाजिक दबाव और धार्मिक सवालों का सामना करना पड़ सकता है। यह उसके आत्मविश्वास और मानसिक शांति को प्रभावित कर सकता है, खासकर अगर वह ऐसे समाज में रहता हो जहां खतना अत्यधिक आम है।

किसी मुस्लिम पुरुष का खतना न होने पर कई पहलुओं पर प्रभाव पड़ सकता है, जिसमें धार्मिक, सामाजिक, और स्वास्थ्य से जुड़े मुद्दे शामिल हैं। हालांकि, इस्लाम में खतना को अनिवार्य नहीं माना गया है, लेकिन कई मुस्लिम समाजों में इसे धार्मिक और सांस्कृतिक रूप से महत्वपूर्ण समझा जाता है। व्यक्तिगत स्वास्थ्य और स्वच्छता के दृष्टिकोण से, खतना करना या न करना एक व्यक्ति का निजी निर्णय होना चाहिए।

Rangin Duniya

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