आजकल धर्म और दर्शन पर सवाल-जवाब आम होते जा रहे हैं, और इन मुद्दों पर अधिक समझ हासिल करने के प्रयास को स्वागतयोग्य माना जा सकता है। हाल ही में, शशीकांत पाटिल जी ने एक महत्वपूर्ण सवाल उठाया: "अल्लाह और परब्रह्म का क्या मतलब है और इन दोनों में क्या अंतर है?"
अल्लाह: एक अरबी शब्द
सबसे पहले, अल्लाह शब्द को समझने के लिए इसकी व्युत्पत्ति और मूल को देखना होगा। यह शब्द अरबी भाषा से आया है, जिसमें "अल" का अर्थ होता है "the" और "इलाह" का अर्थ है "भगवान" या "ईश्वर"। अरबी भाषा में यह एक अद्वितीय सत्ता को दर्शाता है, जिसे मुसलमान ईश्वर के रूप में पूजते हैं। इस्लाम के अनुयायियों के अनुसार, अल्लाह वह शक्ति है जिसने पूरे ब्रह्मांड की सृष्टि की और इसे संचालित करता है। इस अवधारणा के अनुसार, अल्लाह का कोई रूप, साथी, या संतान नहीं है। वह अकेला है और सर्वशक्तिमान है।
इस्लामिक परपरा में, अल्लाह के नाम और गुणों का एक बड़ा महत्व है। उदाहरण के लिए, अल्लाह को "दयालु" और "कृपालु" कहा जाता है, और हर कार्य की शुरुआत इन गुणों को ध्यान में रखते हुए की जाती है। यह विश्वास किया जाता है कि अल्लाह सर्वज्ञ है, और वह इस दुनिया का न केवल निर्माता है, बल्कि इसे चलाने वाला और अंततः समाप्त करने वाला भी है।
परब्रह्म: भारतीय दर्शन में सर्वोच्च सत्ता
अब आइए परब्रह्म की बात करें। यह शब्द भारतीय दर्शन और वेदांत के विचारों से जुड़ा है। परब्रह्म का शाब्दिक अर्थ है "सर्वोच्च ब्रह्म," जो सर्वश्रेष्ठ और असीम सत्ता को दर्शाता है। भारतीय मनीषा में, ब्रह्म को अनंत, निराकार, और सत्य-स्वरूप माना जाता है। इसे सच्चिदानंद के रूप में वर्णित किया जाता है - सत्य, ज्ञान और आनंद का स्वरूप।
परब्रह्म एक ऐसी सत्ता है, जो न केवल संसार की सृष्टि, स्थिति और संहार करती है, बल्कि यह सत्ता स्वयं नित्य और अनंत है। वेदांत के अनुसार, संसार केवल एक भ्रम है, और इस भ्रम के पार वही एकमात्र सत्य सत्ता है जिसे परब्रह्म कहा जाता है। यह साकार और निराकार दोनों रूपों में मौजूद हो सकता है, परंतु इसका वास्तविक स्वरूप निराकार और निर्गुण है।
अल्लाह और परब्रह्म के बीच अंतर
अल्लाह और परब्रह्म दोनों ही अवधारणाएं सर्वोच्च सत्ता को दर्शाती हैं, लेकिन इनकी व्याख्याएं और समझ के तरीके अलग-अलग हैं। अल्लाह इस्लाम में एक व्यक्तिगत ईश्वर है, जिसे मुसलमान पूजते हैं, जबकि परब्रह्म भारतीय दर्शन में एक निराकार और असीम सत्ता है, जो हर जगह व्याप्त है। अल्लाह का कोई रूप नहीं होता, और उसे किसी भी अन्य के साथ नहीं जोड़ा जा सकता, जबकि परब्रह्म निर्गुण और सगुण दोनों हो सकता है - यानी वह निराकार भी हो सकता है और माया के कारण साकार भी दिख सकता है।
अल्लाह और परब्रह्म की अवधारणाएं अलग-अलग धर्मों और संस्कृतियों में उत्पन्न हुई हैं, लेकिन दोनों का उद्देश्य एक ही है - सर्वोच्च सत्ता की खोज। शशीकांत पाटिल जी के सवाल का उत्तर इस दिशा में जाता है कि दोनों ही सत्ता के अद्वितीय रूप हैं, लेकिन उनकी परिभाषा और धारणा की गहराई में अंतर है।