बिहार के सिवान जिले का चांद पाली मौजा गांव एक अनूठा उदाहरण प्रस्तुत करता है। इस गांव में मुसलमानों की बड़ी आबादी है, जबकि हिंदुओं के घर केवल 10 से 12 ही हैं। इस छोटे से गांव के हर घर से एक या दो पुरुष खाड़ी के इस्लामिक देशों में नौकरी करते हैं। गांव के लोगों का कहना है कि चांद पाली मौजा के कम से कम 500 लोग खाड़ी के देशों में काम कर रहे हैं। इस्लामिक देशों की कमाई से इस गांव में तरक्की भी साफ दिखाई देती है।
इसी गांव के राजन शर्मा और मोहम्मद वसीम पिछले नौ सालों से कतर में रह रहे हैं। चांद पाली में भी राजन और वसीम के बीच बहुत दूरियां नहीं थीं, लेकिन कतर के दोहा में तो दोनों एक छत के नीचे रहने लगे। दोनों के साथ कमरे में तीन और लोग रहते हैं, लेकिन राजन इकलौते हिंदू हैं। राजन के मुस्लिम दोस्तों ने उनके लिए कमरे में ही एक छोटा मंदिर बनवा दिया है, जहां वे पूजा करते हैं और बाकी के मुस्लिम दोस्त नमाज अदा करते हैं।
राजन बताते हैं, "हमने छोटा सा मंदिर बनाया था, जिसमें मैं पूजा करता था और बाकी दोस्त नमाज पढ़ते थे। हम साथ में त्योहार भी मनाते थे।" लेकिन जब राजन कुछ महीने पहले अपने भाई की शादी में शामिल होने के लिए कतर से अपने गांव लौटे, तो गांव के माहौल को लेकर वह निराश हो गए। राजन ने कहा, "अयोध्या में राम मंदिर उद्घाटन के दौरान जब गांव में जुलूस निकला, तो कुछ लोगों की हरकतें देखकर मुझे तकलीफ हुई। श्रीराम तो राजा थे, वह कभी भी किसी को बांटते नहीं थे।"
राजन की यह शिकायत अकेले नहीं है। इसी गांव के मोहम्मद नसीम, जो सऊदी अरब में काम करते हैं, कहते हैं, "हमारे रूम मेट उपेंद्र राम हैं, जो पास के ही गांव दरवेशपुर के रहने वाले हैं। वहां किसी भी धर्म के लोगों पर कोई दबाव नहीं है। हम नमाज पढ़ते हैं और उपेंद्र अपने तरीके से पूजा करते हैं।"
बिहार से खाड़ी देशों में श्रम का पलायन कोई नई बात नहीं है, लेकिन पिछले कुछ वर्षों में इस प्रवृत्ति में बदलाव आया है। पहले यह पलायन देश के भीतर होता था, लेकिन अब खाड़ी के देशों में भी बड़ी संख्या में लोग काम की तलाश में जा रहे हैं। पटना के पासपोर्ट सेवा केंद्र के बाहर बड़ी संख्या में लोग पासपोर्ट बनवाने और रिन्यू करवाने के लिए जमा होते हैं, जो खाड़ी देशों में काम करने की तैयारी कर रहे होते हैं।
खाड़ी के इस्लामिक देशों में रह रहे भारतीय हिंदू इस बात की प्रशंसा करते हैं कि उन्होंने धर्म के आधार पर कभी भेदभाव होते नहीं देखा। औरंगाबाद की इला शर्मा, जिनके पति श्याम दुबई में प्रोजेक्ट मैनेजर हैं, कहती हैं, "वहां हर त्योहार मनाने की सुविधा है, छठ पूजा भी हम वहां करते हैं, कोई समस्या नहीं होती।"
जून 2022 में बीजेपी की प्रवक्ता नुपुर शर्मा की पैगंबर मोहम्मद पर विवादित टिप्पणी के कारण गल्फ में रह रहे भारतीयों के भविष्य पर सवाल उठने लगे थे। हालांकि, वहां के स्थानीय अरब समाज ने भारतीयों को अपने बराबर नहीं माना, लेकिन उनके धार्मिक पहचान पर कोई विशेषाधिकार भी नहीं दिया। वहां रह रहे भारतीय मुसलमानों और हिंदुओं की यही इच्छा है कि भारत में भी धर्म के आधार पर भेदभाव न हो।
खाड़ी के देशों में रहने के अनुभव से भारतीयों की सोच में बदलाव आ रहा है। वहां की मिली-जुली संस्कृति और सहअस्तित्व के माहौल ने उन्हें सिखाया है कि धार्मिक विभाजन से परे एक साझा जीवन संभव है। यही सोच भारत में भी स्थापित हो, यही उनकी कामना है।