श्रीनगर: कश्मीर घाटी में राजनीतिक और सांस्कृतिक मुद्दों पर चर्चाएं तेज़ हैं, और ऐसे ही एक संवाद में एक जागरूक मुस्लिम नागरिक ने अपनी भावनाएं व्यक्त कीं। उनके बयान ने क्षेत्र की मौजूदा परिस्थितियों और धारा 370 को लेकर व्याप्त असंतोष को उजागर किया।
उन्होंने भारत सरकार से धारा 370 की बहाली की मांग की, जो 2019 में निरस्त कर दी गई थी। उनका मानना है कि यह कश्मीर की पहचान और स्वायत्तता के लिए महत्वपूर्ण था। "यह हमारी जमीन है, और हमें यह अधिकार है कि हमारी विशिष्ट स्थिति बनी रहे," उन्होंने कहा। वे इस बात से आक्रोशित थे कि भारत सरकार ने इस धारा को समाप्त कर दिया और इस फैसले से उन्हें और उनके समुदाय को गहरा धक्का पहुंचा है।
इस संवाद में उन्होंने कहा कि कश्मीर एक मुस्लिम बहुल क्षेत्र है, और यहाँ हिंदू बसावट के प्रयासों पर उनका विरोध था। उनका मानना था कि धारा 370 का निरस्त होना सिर्फ एक कानूनी मसला नहीं, बल्कि सांस्कृतिक और धार्मिक पहचान से भी जुड़ा हुआ है। "यहाँ हिंदू राज्य नहीं चलेगा," उन्होंने जोर देकर कहा, इस बात को स्पष्ट करते हुए कि कश्मीर की मुस्लिम पहचान उनके लिए सर्वोपरि है।
प्रधानमंत्री मोदी और केंद्र सरकार पर नाराज़गी
उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्र सरकार की नीतियों पर भी सवाल उठाए। "मोदी ने क्यों धारा 370 तोड़ी?" उन्होंने यह सवाल उठाया और बताया कि कश्मीरी जनता इस फैसले से नाखुश है। उनकी नज़र में, इस धारा के निरस्त होने से कश्मीर की शांति और न्याय व्यवस्था प्रभावित हुई है।
उन्होंने अफजल गुरु की फांसी का मुद्दा भी उठाया और कहा, "अफजल गुरु को फांसी क्यों लगी?" साथ ही, उन्होंने बलात्कार के कुछ पुराने मामलों का हवाला देते हुए न्याय की मांग की, खासकर नीलोफर के साथ हुए अपराध को लेकर।
उनका कहना था कि कश्मीर में शांति के लिए कोई भी बाहरी शक्ति, चाहे वह भारत, पाकिस्तान या अमेरिका हो, प्रभावी साबित नहीं हुई है। उन्होंने कहा कि कश्मीर के लोग सिर्फ अल्लाह पर भरोसा करते हैं और उन्हें न्याय की उम्मीद है।
कश्मीर का यह स्वर असंतोष, पहचान, और न्याय की मांग के प्रतीक के रूप में उभर रहा है। धारा 370 को लेकर क्षेत्र में अब भी गहरी भावनाएं हैं और यह मुद्दा निकट भविष्य में भी राजनीतिक और सामाजिक चर्चा का केंद्र बना रहेगा।