होटल के तंदूर में जल रहा था शव... पुलिस पहुंची तो किचन के फर्श पर अधजली पड़ी थी लाश...दरिंदे पति ने गोली...एक महिला की होश उड़ा देने वाली सच्ची कहानी

1995 के चर्चित तंदूर कांड के दोषी सुशील शर्मा को 22 दिसंबर 2018 को शुक्रवार रात 8:30 बजे तिहाड़ जेल से रिहा कर दिया गया। दिल्ली हाईकोर्ट ने दिन में ही सजा माफी बोर्ड (एसआरबी) की सिफारिशों को खारिज करते हुए सुशील शर्मा की तत्काल रिहाई का आदेश दिया था। कोर्ट के आदेश के बाद, सुशील के वकील अमित साहनी उनके साथ मौजूद थे।  

जस्टिस सिद्धार्थ मृदुल और जस्टिस संगीता ढींगरा सहगल की खंडपीठ ने कहा कि सुशील शर्मा ने अपनी सजा पूरी कर ली है और उसे अब जेल में रखने का कोई औचित्य नहीं है। कोर्ट ने दिल्ली सरकार के एसआरबी के 4 अक्टूबर, 2018 के फैसले को खारिज करते हुए केवल दो पन्नों का एक संक्षिप्त निर्णय दिया। कोर्ट का विस्तृत निर्णय बाद में आएगा। इससे पहले सुनवाई के दौरान कोर्ट ने पूछा था कि क्या किसी व्यक्ति को 23 साल से अधिक जेल में रखना उसके मानवाधिकारों का उल्लंघन नहीं है, जबकि वह अपनी सजा पूरी कर चुका है?

कोर्ट की फटकार

कोर्ट ने सुशील शर्मा की रिहाई पर आपत्ति जताने वाले एसआरबी को भी कड़ी फटकार लगाई। एसआरबी की 4 अक्टूबर की सिफारिशों के आधार पर उपराज्यपाल ने सुशील की जल्द रिहाई का आदेश नहीं दिया था। एसआरबी की रिपोर्ट में कहा गया था कि सुशील को रिहा करने से समाज को कोई खतरा नहीं होगा। सुशील के वकील ने तर्क दिया कि उनके मुवक्किल ने 23 साल 6 महीने की सजा काट ली है, जबकि उन्हें 20 साल की सजा के बाद रिहा किया जाना चाहिए था।

 तंदूर कांड की पृष्ठभूमि

3 जुलाई, 1995 की रात एक भयानक घटना घटी। दिल्ली पुलिस के तत्कालीन अतिरिक्त आयुक्त मैक्सवेल परेरा को सूचना मिली कि अशोक यात्री निवास होटल के तंदूर में एक शव जलाने की कोशिश की गई है। जब परेरा मौके पर पहुंचे, तो उन्होंने देखा कि नैना साहनी की बुरी तरह से जली हुई लाश बगिया रेस्तरां के किचन के फर्श पर पड़ी हुई थी, जिसे एक कपड़े से ढका गया था।  

नैना साहनी का शरीर बुरी तरह जल चुका था, और केवल उनका जूड़ा ही था जो पूरी तरह से नहीं जला था। आग की गर्मी से उनकी आतें पेट से बाहर आ गई थीं। अगर लाश को आधे घंटे और जलाया जाता, तो कुछ भी शेष नहीं रहता और मामले की जांच और मुश्किल हो जाती। तंदूर के अंदर लाश को जलाने के प्रयास में विफल होने के बाद सुशील ने रेस्तरां के मैनेजर केशव कुमार को मक्खन के स्लैब लाने के लिए भेजा, ताकि लाश को पूरी तरह जलाया जा सके।

 कांस्टेबल की मुस्तैदी

कांस्टेबल कुंजू, जो उस रात जनपथ पर गश्त कर रहे थे, को होटल के प्रांगण से आग और धुआं उठता दिखाई दिया। आग का स्रोत जानने के लिए वह बगिया रेस्तरां पहुंचे, जहां सुशील शर्मा गेट के पास खड़े थे और गेट को एक कनात से ढक रखा था। जब कांस्टेबल ने आग के बारे में पूछा, तो केशव ने जवाब दिया कि वे पुराने पोस्टर जला रहे थे। लेकिन कुंजू को शक हुआ और वह दीवार फांदकर तंदूर के पास पहुंचे, जहां उन्होंने एक महिला की जली हुई लाश देखी। केशव ने कांस्टेबल से कहा कि वे बकरा भून रहे हैं, लेकिन जब कांस्टेबल ने बल्ली से लाश को छुआ तो पता चला कि यह एक महिला की लाश थी।

 नैना की हत्या की वजह

सुशील शर्मा को नैना साहनी पर शक था कि वह उसे धोखा दे रही है। शक के चलते सुशील ने नैना को गोली मार दी और फिर उसकी लाश को रेस्तरां में जलाने का फैसला किया। दरअसल, सुशील नैना की लाश को यमुना नदी में फेंकना चाहता था, लेकिन डर के मारे उसने अपनी ही रेस्तरां में लाश जलाने का सोचा।  

सुशील शर्मा और नैना साहनी दोनों मंदिर मार्ग के फ्लैट में पति-पत्नी की तरह रहते थे, लेकिन उन्होंने अपनी शादी को सार्वजनिक नहीं किया था। नैना सुशील पर दबाव डाल रही थी कि वह इस शादी को सार्वजनिक रूप से स्वीकार करे, लेकिन सुशील इससे बचना चाह रहा था। इसी कारण दोनों के बीच मनमुटाव बढ़ने लगे और अंततः यह दर्दनाक घटना घटी।

जांच में तकनीकी पहलू

यह तंदूर कांड भारत के पहले कुछ ऐसे मामलों में से एक था, जिसमें डीएनए टेस्ट और स्कल इमेजिंग तकनीक का इस्तेमाल किया गया था। इन तकनीकों की मदद से नैना साहनी के शव की पहचान की गई। तंदूर कांड ने पूरे देश को हिला दिया था और इसके बाद सुशील शर्मा को दोषी करार दिया गया।

 जेल में बदल गया सुशील

जेल में अपने 23 साल के कारावास के दौरान सुशील शर्मा ने काफी बदलाव किया। वह जेल में एक पुजारी के रूप में काम करता था और उसकी जीवनशैली पूरी तरह से बदल गई थी। कई कैदी और जेल अधिकारी उसके व्यवहार में आए इस परिवर्तन की सराहना करते थे।  

हालांकि, कानून और अदालत के समक्ष उसकी दोषसिद्धि और उसके द्वारा किए गए अपराध को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता था। सुशील की रिहाई पर कई लोग आक्रोशित भी हैं, लेकिन अदालत का निर्णय कानूनी आधारों पर है और इसमें किसी भी तरह की त्रुटि नहीं है।

 न्यायपालिका का रुख

दिल्ली हाईकोर्ट ने अपने आदेश में स्पष्ट किया कि किसी भी व्यक्ति को, चाहे वह कितना भी बड़ा अपराधी क्यों न हो, उसके मानवाधिकारों का हनन नहीं किया जा सकता। सुशील ने अपनी सजा पूरी कर ली है, और उसे और अधिक जेल में रखना गलत है। हालांकि यह मामला अपने आप में जटिल और संवेदनशील था, लेकिन न्यायपालिका ने इसके सभी पहलुओं का गहन अध्ययन कर निर्णय लिया। 

तंदूर कांड हमेशा भारतीय न्याय व्यवस्था के इतिहास में एक काले अध्याय के रूप में याद किया जाएगा।

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