वाराणसी, 23 सितम्बर 2024: शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने एक विशेष धार्मिक आयोजन के दौरान चर्बी वाले लड्डू खाने के प्राश्चित के रूप में पंचगव्य के सेवन को सुझाव दिया है। उन्होंने कहा कि "यदि किसी ने अनजाने में चर्बी वाले लड्डू खा लिए हैं, तो उसका शुद्धिकरण पंचगव्य के सेवन से किया जा सकता है।" पराशरस्मृति के अनुसार, पंचगव्य गाय के गोबर, गोमूत्र, घी, दूध और दही के मिश्रण से तैयार किया जाता है, जो शास्त्रों में एक शुद्धिकरण प्रक्रिया मानी गई है।
धार्मिक पृष्ठभूमि में पंचगव्य की महत्ता
पंचगव्य को हिंदू धर्म में विशेष पवित्रता प्रदान की गई है। शंकराचार्य ने बताया कि प्राचीन शास्त्रों में पंचगव्य का उल्लेख आत्मा और शरीर की शुद्धि के लिए किया गया है। यह किसी भी अशुद्ध भोजन या कर्म के बाद मनुष्य के शरीर और आत्मा को पवित्र करने का तरीका माना जाता है।
चर्बी वाला लड्डू खाने का प्राश्चित है पंचगव्य यानी पंचगव्य खा कर ख़ुद को शुद्ध कर लेवे -शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद
— Science Journey (@ScienceJourney2) September 23, 2024
पंचगव्य- गोबर, गोमूत्र, घी, दूध और दही के मिश्रण को कहते है । https://t.co/CzbQJdAd8j pic.twitter.com/HWDPjybNJ1
चर्बी वाले लड्डू के सेवन का संदर्भ
चर्बी वाले लड्डू का उल्लेख हाल ही में धार्मिक और सामाजिक चर्चाओं में आया है, जिसमें कई धार्मिक नेताओं ने इसके खिलाफ चिंता जताई है। शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद ने इस मुद्दे पर स्पष्ट किया कि "अनजाने में" यदि किसी ने ऐसे लड्डू खा लिए हैं, तो उनके पास प्राश्चित का उपाय उपलब्ध है, जो पंचगव्य के माध्यम से संभव है।
धार्मिक समाज में प्रतिक्रिया
शंकराचार्य के इस बयान पर विभिन्न धार्मिक और सामाजिक संगठनों ने प्रतिक्रिया दी है। कुछ ने इसे परंपराओं के पुनर्जीवन की दृष्टि से महत्वपूर्ण बताया है, तो कुछ अन्य इसे अतिवादी दृष्टिकोण मानते हैं।
शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद के इस बयान ने धार्मिक समुदाय में चर्चा को और गहरा कर दिया है। पंचगव्य का महत्व हिंदू धर्म में सदियों से कायम है और इस पर आगे भी बहस और चर्चा होने की संभावना है।