जम्मू, 30 सितम्बर 2024 - महाराजा हरि सिंह की 130वीं जयंती ने जम्मू और कश्मीर में उत्साह की एक नई लहर पैदा कर दी है। यह दिन डोगरा और राजपूत समुदायों के लिए केवल एक साधारण उत्सव नहीं था, बल्कि अपनी खोई हुई पहचान और गौरव को पुनः स्थापित करने का एक महत्त्वपूर्ण अवसर भी बना।
लंबे समय तक अनुच्छेद 370 के कारण महाराजा हरि सिंह की विरासत का उत्सव सार्वजनिक रूप से नहीं मनाया जा सका था। महाराजा हरि सिंह, जिन्होंने 1947 में भारत के साथ जम्मू और कश्मीर के विलय का ऐतिहासिक फैसला लिया, को राज्य की पहचान का अभिन्न अंग माना जाता है। उनके निर्णय ने न केवल जम्मू-कश्मीर को भारतीय संघ का हिस्सा बनाया, बल्कि राज्य की सांस्कृतिक धरोहर को भी मजबूती प्रदान की।
2022 से पहले, महाराजा हरि सिंह की जयंती का जश्न बड़े पैमाने पर मनाना कठिन था। लेकिन अब, क्षेत्र के हर वर्ग से लोग इस उत्सव में शामिल होकर अपने पूर्वजों के योगदान को सम्मानित कर रहे हैं। इस साल, डोगरा और राजपूत समुदाय के लोग पारंपरिक वेशभूषा में सड़कों पर उतर आए, जिससे यह साफ हो गया कि महाराजा की विरासत को अब सार्वजनिक रूप से मान्यता प्राप्त हो चुकी है।
डोगरा समाज के वरिष्ठ नेता रमेश सिंह ने इस अवसर पर कहा, "महाराजा हरि सिंह ने सामाजिक सुधारों की नींव रखी। उनका जन्मदिन मनाना हमारी पहचान और गर्व का प्रतीक है।" युवा राजपूत सभा ने इस मौके पर भव्य रैली का आयोजन किया, जिसमें सैकड़ों लोग शामिल हुए। मोटर रैली के दौरान महाराजा की प्रतिमा पर माल्यार्पण किया गया और मिठाइयाँ बांटी गईं।
हालांकि, डोगरा और राजपूत समुदाय के संघर्ष अभी समाप्त नहीं हुए हैं। अनुच्छेद 370 की बहाली पर हो रही चर्चाओं ने समुदाय में चिंता पैदा कर दी है। अखिल भारतीय डोगरा महासभा के सदस्य महेश कौल ने कहा, "यदि अनुच्छेद 370 फिर से लागू किया जाता है, तो यह हमारी अब तक की प्रगति को पीछे ले जाएगा।"
यह उत्सव केवल अतीत के संघर्षों की याद नहीं दिलाता, बल्कि भविष्य की चुनौतियों की भी ओर इशारा करता है। कई वर्षों की सीमित सभाओं से आज के भव्य उत्सवों तक, डोगरा और राजपूत समुदाय ने अपनी आवाज़ को बुलंद करने के लिए एक लंबी यात्रा तय की है।
जयंती के इस मौके पर जम्मू में केंद्र सरकार द्वारा मंदिरों के पुनर्निर्माण पर भी विशेष ध्यान दिया जा रहा है। यह कार्य हिंदू विरासत को पुनः स्थापित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है। स्थानीय पुजारी पंडित हरिकृष्ण कहते हैं, "हमारे मंदिरों का पुनर्निर्माण हमारे लिए नई उम्मीद का प्रतीक है।" वहीं, स्थानीय निवासी देवेंद्र ठाकुर ने कहा, "मंदिरों का पुनर्निर्माण हमें हमारी सांस्कृतिक पहचान को पुनः प्राप्त करने में मदद कर रहा है।"
यह स्पष्ट है कि महाराजा हरि सिंह की विरासत अब पहले से कहीं अधिक प्रासंगिक और जीवंत है। दशकों बाद हिंदू गौरव को पुनः स्थापित किया जा रहा है, जो जम्मू की सच्ची पहचान और यहां की सांस्कृतिक जड़ों का प्रतीक है।
जैसे-जैसे उत्सव आगे बढ़ रहा है, जम्मू के लोग अपनी समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर और दृढ़ आत्मा का जश्न मना रहे हैं। जम्मू एक बार फिर विश्वभर के हिंदुओं के लिए 'मंदिरों के शहर' के रूप में अपनी पहचान प्राप्त कर रहा है।