घेघोली, राजस्थान - राजकुमारी सड़क किनारे खड़ी हैं, ग्राहक का इंतज़ार कर रही हैं। उनके ऊपर अपने बच्चों और परिवार का पालन-पोषण करने की ज़िम्मेदारी है। लेकिन आज कोई ग्राहक नहीं मिला। राजकुमारी उन लाखों महिलाओं में से एक हैं, जो भारत में संस्थागत वेश्यावृत्ति का हिस्सा हैं। यह समस्या सदियों पुरानी जाति व्यवस्था से जुड़ी है।
दिल्ली से महज़ तीन घंटे की दूरी पर बसे राजस्थान के अलवर ज़िले के घेघोली गांव में सेक्स वर्कर का जीवन एक कड़वी सच्चाई है। यहां की महिलाएं अपने परिवार को बचाने के लिए वेश्यावृत्ति को अपनाने पर मजबूर हैं। अंकिता (बदला हुआ नाम) एक ऐसी ही महिला हैं, जिन्होंने तीन साल पहले यह पेशा अपनाया। वे बताती हैं कि गरीबी और परिवार की ज़रूरतों ने उन्हें इस काम में धकेला। अंकिता का कहना है, "पैसे कमाने के अलावा कोई और रास्ता नहीं था। मैंने अपने परिवार का 10 लाख रुपये का कर्ज उतार दिया।"
अलवर जैसे इलाकों में बैंक सेक्स वर्क को काम नहीं मानते, इसलिए यहां के लोग उधार लेने के लिए स्थानीय साहूकारों पर निर्भर हैं। ऊंची ब्याज दरों के कारण ये लोग गरीबी के दलदल में फंसते जाते हैं। रचना (बदला हुआ नाम), जो अपने परिवार में सबसे बड़ी हैं, बताती हैं कि गरीबी ने उन्हें भी इस पेशे में धकेला। उन्होंने कहा, "हम छोटे भाई-बहनों के साथ भीख मांगकर गुज़ारा करते थे। मां भी मुंबई जाकर यही काम करती थीं, और फिर मैं भी इसमें शामिल हो गई।"
भारत में लगभग 30 लाख सेक्स वर्कर हैं, जिनमें से ज़्यादातर महिलाएं शोषण और अत्याचार का सामना करती हैं। वेश्यावृत्ति वैध है, लेकिन दलाली और मानव तस्करी गैरकानूनी हैं, फिर भी यह धंधा चलता रहता है। रचना कहती हैं कि उन्हें शारीरिक और मानसिक शोषण का शिकार होना पड़ा, जब उन्हें दलालों ने एक बड़े नेटवर्क में शामिल किया।
जातिगत भेदभाव और रोजगार के अवसरों की कमी
नट, बेड़िया, बंछड़ा और कंजर जैसी जातियों से आने वाली ये महिलाएं पारंपरिक रूप से कलाकार होती थीं। लेकिन ब्रिटिश शासन ने इन्हें "आपराधिक जातियां" घोषित कर दिया, जिससे इनकी आर्थिक और सामाजिक स्थिति और बदतर हो गई। समाज आज भी इन समुदायों को हेय दृष्टि से देखता है, जिसके कारण उनके लिए किसी और रोजगार का रास्ता बंद हो जाता है। यहां के पुरुष कहते हैं कि अगर उन्हें नौकरी मिले, तो वे इस पेशे में नहीं आएंगे।
एक गांव के व्यक्ति ने कहा, "पहले तो हमें कोई अपने पास खड़ा भी नहीं होने देता था। स्कूल में भी लोग हमें दूर बिठाते थे। अब थोड़ी स्थिति बदली है, लेकिन समाज में अभी भी हमारे लिए बराबरी की स्थिति नहीं है।"
हालांकि, इन गांवों में कुछ सकारात्मक बदलाव भी हो रहे हैं। गुड्डू नागर, जो खुद इन्हीं जनजातियों से हैं, ने शिक्षा के ज़रिए इस चक्र को तोड़ने का संकल्प लिया। वे आज अध्यापक हैं और एक एनजीओ की मदद से गांव के बच्चों को शिक्षित कर रहे हैं। वे मानते हैं कि शिक्षा ही इन महिलाओं को एक सुरक्षित भविष्य दे सकती है।
गुड्डू नागर बताते हैं, "कुछ परिवार ऐसे हैं, जिन्होंने शिक्षा के ज़रिए अपनी जिंदगी बदली है। एक लड़की जयपुर में जेल पुलिस में काम करती है, एक लड़का सीआरपीएफ में है। इसी तरह शिक्षा ने कई परिवारों का भविष्य संवार दिया है।"
इन गांवों की महिलाएं अब बदलाव की ओर देख रही हैं। अंकिता और रचना जैसे कई महिलाओं का सपना है कि वे इस पेशे से बाहर निकलें और अपने बच्चों को बेहतर भविष्य दें। नैन्सी, जो बी.ए. फर्स्ट ईयर की छात्रा हैं, एयर होस्टेस बनना चाहती हैं। उनके सपने इन महिलाओं के जीवन में उम्मीद की किरण लाते हैं।
इस काले अतीत के बीच शिक्षा और जागरूकता धीरे-धीरे इन महिलाओं को एक नई राह दिखा रही है। शायद एक दिन ये महिलाएं इस दलदल से बाहर निकलकर एक नए भविष्य की ओर कदम बढ़ा सकेंगी।
राजस्थान के सेक्स वर्कर गांवों की यह कहानी एक गंभीर सामाजिक और आर्थिक समस्या की ओर इशारा करती है। जातिगत भेदभाव और गरीबी ने इन्हें इस स्थिति में डाल दिया, लेकिन शिक्षा और रोजगार के अवसर इनकी पीढ़ियों के लिए आशा की किरण बन सकते हैं। सरकार और समाज को इनकी मदद के लिए ठोस कदम उठाने की ज़रूरत है, ताकि ये महिलाएं सम्मान से जी सकें और अपने परिवारों को एक सुरक्षित भविष्य दे सकें।