राजस्थान के पाली जिले में हाल ही में एक प्रेम विवाह विवादों के केंद्र में आ गया है, जब राजेन्द्र मेघवाल और कंचन चौधरी ने आपसी सहमति से विवाह किया। यह विवाह समाज के कुछ वर्गों द्वारा अस्वीकार्य माना गया क्योंकि युवक दलित समुदाय से और युवती अन्य जाति से है।
मामला तब गंभीर हो गया जब विवाह के बाद, परिवार के दबाव में आकर पुलिस ने गैर-संवैधानिक रवैया अपनाते हुए इस नवविवाहित जोड़े को थाने में बंद कर दिया। इस कार्रवाई ने एक बार फिर से कानून के तहत मौलिक अधिकारों के हनन पर सवाल खड़े कर दिए हैं।
शादीशुदा जोड़े को धमकियों का डर
राजेन्द्र मेघवाल, जो दलित समुदाय से आते हैं, के साथ किसी भी अनहोनी की आशंका जताई जा रही है। इस मामले ने जातिगत भेदभाव और सामाजिक असमानताओं को फिर से उजागर कर दिया है। चूंकि युवक दलित है और युवती दूसरी जाति से है, इस कारण से युवक पर किसी भी प्रकार का शारीरिक या मानसिक अत्याचार किया जा सकता है।
राजस्थान के पाली में राजेन्द्र मेघवाल व कंचन चौधरी ने स्वेच्छा से एक दूसरे से विवाह किया, परंतु परिवार के दवाब में आकर पुलिस ने गैर संवैधानिक रवैया अपनाते हुए शादीशुदा जोड़े को थाने में बंद कद दिया है।
— Priyanshu Kumar (@priyanshu__63) September 27, 2024
चूंकि युवक दलित व युवती अन्य समाज से है इसलिए युवक के साथ कोई भी अनहोनी हो… pic.twitter.com/RRJrDPoj0r
500 रुपये के स्टाम्प पेपर पर लिव-इन एग्रीमेंट
इस विवाह के समर्थन में राजेन्द्र और कंचन ने 500 रुपये के स्टाम्प पेपर पर एक इकरारनामा भी लिखा है, जिसमें उन्होंने स्वेच्छा से लिव-इन रिलेशनशिप में रहने का निर्णय लिया है। इस इकरारनामे में दोनों ने कहा है कि वे बालिग हैं और समझदार हैं, और इस संबंध में किसी भी सामाजिक या कानूनी अड़चन से दूर रहना चाहते हैं।
इकरारनामे के अनुसार, राजेन्द्र जयपाल और कंचन चौधरी ने यह स्पष्ट किया है कि वे किसी एक ही रक्त संबंधी श्रेणी में नहीं आते हैं और वे दोनों एक-दूसरे को अच्छी तरह से जानते और पहचानते हैं।
मामले पर पुलिस की भूमिका
यह घटना पुलिस की भूमिका पर सवाल खड़े करती है, क्योंकि इस प्रकार की कार्रवाई संविधान द्वारा दिए गए अधिकारों के विपरीत मानी जा रही है। आम जनता और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने राजस्थान पुलिस से अपील की है कि वे जल्द से जल्द इस मामले का संज्ञान लें और इस प्रकार की असंवैधानिक गतिविधियों पर रोक लगाएं।
यह मामला यह भी दिखाता है कि आज भी कई क्षेत्रों में अंतरजातीय विवाह सामाजिक स्वीकृति से दूर हैं। पुलिस और प्रशासन को ऐसे मामलों में लोगों के मौलिक अधिकारों की रक्षा करनी चाहिए और उन्हें जातिगत भेदभाव से बचाना चाहिए।