हाल ही में सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर बहुजन समाज के बुद्धिजीवी क्रांति कुमार द्वारा साझा किए गए एक पोस्ट ने नई चर्चा छेड़ दी है। इस पोस्ट में उन्होंने एक न्यूज चैनल की डिबेट का उल्लेख किया, जिसमें जाने-माने ब्राह्मण चिंतक और प्रोफेसर विवेक कुमार ने राजनीतिक आरक्षण और सवर्ण समाज की भूमिका पर अपनी राय रखी।
प्रोफेसर विवेक कुमार ने डिबेट के दौरान कहा कि "राजनीतिक आरक्षण शुरू में 10 साल के लिए था, लेकिन SC/ST समुदायों ने इसके विस्तार के लिए कोई आंदोलन नहीं किया। इसके बावजूद, सवर्ण समाज बहुल्य दल हर 10 साल में राजनीतिक आरक्षण को अपने आप बढ़ाते चले जा रहे हैं।" उन्होंने यह भी कहा कि "आरक्षण की चर्चा के दौरान SC/ST समुदाय को अक्सर कमतर दिखाया जाता है, जबकि सच्चाई यह है कि SC को 15% और ST को 7.5% यानी कुल मिलाकर 22.5% आरक्षण मिला हुआ है।"
इस पर बहस के दौरान, हर्षवर्धन त्रिपाठी नामक एक अन्य पैनलिस्ट ने जब "सवर्ण" की जगह "संसद" शब्द का इस्तेमाल करने का सुझाव दिया, तो प्रोफेसर कुमार ने जोर देते हुए कहा, "78% सवर्ण समाज के लोग संसद में बैठे हैं। ऐसे में 22.5% वाले लोग 78% वालों को कैसे हरा सकते हैं?"
बहुजन समाज के बुद्धिजीवी और ब्राह्मण चिंतक प्रोफेसर विवेक कुमार ने एक न्यूज चैनल डिबेट में कहा पोलिटिकल रिज़र्वेशन 10 साल के लिए था,
— Kranti Kumar (@KraantiKumar) September 30, 2024
SC ST तो इसके लिए आंदोलन भी नही करता. लेकिन सवर्ण समाज बाहुल्य वाले जितने दल हैं वो अपने आप 10 वर्ष पॉलिटिकल रिज़र्वेशन को बढ़ा देते हैं.
सवर्ण… pic.twitter.com/HeipYiC6vj
प्रोफेसर विवेक कुमार ने अपनी बात को और स्पष्ट करते हुए कहा कि अब समय आ गया है कि आरक्षण को आबादी के अनुपात में बढ़ाया जाए। "SC की आबादी अब 22% हो चुकी है और आदिवासी 12% के आसपास हैं, इसलिए SC/ST आरक्षण को बढ़ाकर 34% और OBC आरक्षण को 55% किया जाना चाहिए।"
यह टिप्पणी न केवल आरक्षण पर नई बहस को जन्म देती है, बल्कि सामाजिक और राजनीतिक संरचनाओं पर भी सवाल उठाती है। प्रोफेसर कुमार की इस बात से कई लोग सहमत हैं कि आरक्षण का सिस्टम वर्तमान आबादी के अनुपात के अनुसार होना चाहिए।
क्रांति कुमार द्वारा यह पोस्ट वायरल हो गई है और सोशल मीडिया पर इस पर व्यापक प्रतिक्रिया हो रही है। बहस इस बात पर केंद्रित हो गई है कि क्या आरक्षण व्यवस्था को वर्तमान सामाजिक और जनसांख्यिकी वास्तविकताओं के अनुसार फिर से परिभाषित किया जाना चाहिए।
विचारों और बहसों के इस दौर में यह देखना दिलचस्प होगा कि भविष्य में इस मुद्दे पर क्या कदम उठाए जाते हैं और क्या सचमुच आरक्षण की व्यवस्था में कोई बड़ा बदलाव होगा।