बिहार की राजनीति में चर्चित प्रशांत किशोर की पदयात्रा और उनके उद्देश्यों पर उनके ही कार्यकर्ताओं ने गंभीर आरोप लगाए हैं। एक दलित कार्यकर्ता ने खुलासा किया कि तीन महीने तक प्रशांत किशोर के साथ यात्रा करने के बाद उन्होंने इसे छोड़ दिया क्योंकि प्रशांत किशोर का वास्तविक चरित्र उनके सामने उजागर हो गया।
कार्यकर्ता का कहना है कि शुरूआती दिनों में दलित समाज के कई लोग प्रशांत किशोर के साथ जुड़े थे, लेकिन अब वे सभी उन्हें छोड़ चुके हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि जब कार्यकर्ताओं ने जाति से जुड़े सवाल उठाने शुरू किए, तब पता चला कि प्रशांत किशोर पांडे जी के नेतृत्व को उनका समाज स्वीकार नहीं कर पा रहा था। उनका कहना है कि पदयात्रा का उद्देश्य केवल दिखावा था और इसका असली मकसद राजनीति में व्यक्तिगत लाभ उठाना था।
तीन महीना प्रशांत किशोर पांडे के साथ यात्रा किए, लेकिन देखे कि उसके पास केवल उसके ही जाति वाला है।
— Nitesh Kartiken (@EngineerNitesh_) September 23, 2024
कार्यकर्ता को जमीन पर और खुद एसी में बैठते थे पीके।
यही भेदभाव को देखकर संस्थापक सदस्य होते हुए भी मैं छोड़ दिया।
“ टूटेंगे सारे भरम धीरे धीरे
मोहब्बत के सारे सितम धीरे धीरे ”
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कार्यकर्ता ने यह भी आरोप लगाया कि यात्रा के दौरान प्रशांत किशोर केवल तस्वीरें खिंचवाने और "प्रशांत किशोर जिंदाबाद" के नारे लगाने पर ध्यान केंद्रित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि जब भी गाँव पहुँचते थे, वह गाड़ी से उतरते, कुछ तस्वीरें खिंचवाते, और फिर वापस गाड़ी में बैठ जाते। उनके अनुसार, प्रशांत किशोर के लिए पदयात्रा केवल एक राजनीतिक स्टंट थी, और वह केवल अपनी पत्नी को राजनीति में स्थापित करने की कोशिश कर रहे थे।
कार्यकर्ता का आरोप है कि प्रशांत किशोर का असली मकसद सत्ता में किसी भी तरह से 25-40 सीटों पर जीत हासिल कर नीतीश कुमार को भाजपा के साथ मिलकर रिप्लेस करना है। उन्होंने कहा कि प्रशांत किशोर ने अभियान शुरू करने से पहले ही अपनी पार्टी का रजिस्ट्रेशन करा लिया था, और उनका 'जन स्वराज' अभियान केवल एक दिखावा था।
दलित कार्यकर्ता ने यह भी आरोप लगाया कि प्रशांत किशोर ने दलित समुदाय को राजनीति में आगे बढ़ाने के नाम पर उन्हें बेवकूफ बनाया और चुनावी टिकट केवल अपने वफादार लोगों को देने की योजना बनाई थी। उन्होंने कहा कि यात्रा के दौरान कार्यकर्ताओं को केवल प्रशांत किशोर के नाम का प्रचार करने के लिए इस्तेमाल किया गया।
यह आरोप प्रशांत किशोर के लिए एक बड़ा झटका हो सकता है, जो खुद को बिहार के राजनीतिक परिदृश्य में गांधीवादी आदर्शों पर चलने वाले नेता के रूप में पेश करते रहे हैं।