भाई-भतीजावाद और विश्वासघात: कैसे झारखंड का 'सोरेन' परिवार सत्ता पर बनाए रखता चाहता है पकड़

झारखंड की राजनीति में पिछले पांच दशकों से सोरेन परिवार का गहरा प्रभाव रहा है। 1973 में झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) की स्थापना के साथ ही शिबू सोरेन इस आंदोलन के अग्रणी नेता के रूप में उभरे, जिन्होंने राज्य के गठन और आदिवासी समुदाय के हितों की रक्षा के लिए संघर्ष किया। आज, शिबू सोरेन और उनके परिवार के सदस्यों के खिलाफ आरोपों और सत्ता संघर्ष की चर्चा जोरों पर है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि सोरेन परिवार की पकड़ झारखंड की सत्ता पर कमजोर होती जा रही है और वे विवादों में घिरते जा रहे हैं। 

झारखंड में परिवारवाद और भाई-भतीजावाद के आरोप समय-समय पर उठते रहे हैं, विशेषकर तब जब सोरेन परिवार के सदस्य राज्य की सत्ता में प्रमुख पदों पर होते हैं। परिवारवाद के इस आरोप ने झारखंड मुक्ति मोर्चा के प्रति जनता के विश्वास को कमजोर किया है। इन आरोपों के बीच सबसे हालिया विवाद तब उभरा जब JMM के वरिष्ठ नेता और झारखंड राज्य गठन आंदोलन के प्रमुख चेहरों में से एक, चंपई सोरेन, को दरकिनार कर दिया गया। इससे यह सवाल उठने लगा कि क्या सोरेन परिवार अब झारखंड की भलाई से अधिक अपनी राजनीतिक विरासत बचाने पर ध्यान केंद्रित कर रहा है?

चंपई सोरेन: एक नजरअंदाज योद्धा

चंपई सोरेन का नाम झारखंड राज्य गठन आंदोलन से जुड़ा है। चार दशकों से अधिक समय तक वे इस आंदोलन का एक प्रमुख चेहरा रहे हैं। उन्होंने राज्य के गठन के लिए संघर्ष में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और स्वर्गीय बिनोद बिहारी महतो जैसे नेताओं के साथ मिलकर राज्य आंदोलन को मजबूत किया। उनके नेतृत्व और योगदान को देखते हुए उन्हें एक सशक्त नेता माना गया। लेकिन अब, जिस पार्टी के लिए उन्होंने अपना खून-पसीना बहाया, उसी ने उन्हें नजरअंदाज कर दिया है।

चंपई सोरेन ने झारखंड की सत्ता संभालने के दौरान गठबंधन सरकार का नेतृत्व किया और चार महीने तक राज्य को स्थिरता देने का प्रयास किया। उन्होंने राज्य के नागरिकों के जीवन को बेहतर बनाने के लिए कई कल्याणकारी योजनाओं की शुरुआत की। हालांकि, उनका कार्यकाल छोटा रहा, लेकिन उन्होंने एक मजबूत नेतृत्व का परिचय दिया। 

चंपई का यह संक्षिप्त कार्यकाल तब समाप्त हुआ जब शिबू सोरेन के बेटे हेमंत सोरेन जेल से वापस आए। उनके वापस आने के बाद चंपई से इस्तीफा मांगा गया और हेमंत को पुनः सत्ता में लाया गया। इस सत्ता परिवर्तन को कई लोगों ने एक विश्वासघात के रूप में देखा। खासकर उन लोगों ने, जिन्होंने चुनौतीपूर्ण समय में चंपई सोरेन को पार्टी का नेतृत्व करते हुए देखा था। इस घटना ने झारखंड में राजनीतिक असंतोष को और बढ़ावा दिया। खासकर कोल्हान क्षेत्र में, जहां लोगों के बीच यह सवाल उठने लगा है कि क्या चंपई सोरेन का दरकिनार किया जाना केवल इसलिए हुआ क्योंकि वे शिबू सोरेन के बेटे नहीं हैं?

सोरेन परिवार पर भाई-भतीजावाद के आरोप

झारखंड मुक्ति मोर्चा में सोरेन परिवार की सत्ता पर एकाधिकार की भावना ने पार्टी के भीतर और बाहर दोनों जगहों पर असंतोष को जन्म दिया है। शिबू सोरेन और हेमंत सोरेन दोनों पर भ्रष्टाचार के आरोप लग चुके हैं, जिससे पार्टी की छवि को धक्का लगा है। लोगों का मानना है कि सोरेन परिवार अब झारखंड के कल्याण की बजाय अपने हितों को प्राथमिकता दे रहा है। 

हेमंत सोरेन की जेल से वापसी के बाद जिस तरह से सत्ता में उनकी वापसी हुई, वह यह दर्शाता है कि पार्टी में गठबंधन और समर्थन के लिए कोई सम्मान नहीं है। चंपई सोरेन जैसे नेता, जिन्होंने पार्टी को बिखरने से बचाया था, उन्हें अपमानित महसूस करवाया गया। यह स्थिति न केवल JMM के भीतर बल्कि झारखंड की जनता के बीच भी निराशा और अविश्वास की भावना को बढ़ावा दे रही है।

सोरेन परिवार की एकाधिकारवादी नीतियों ने झारखंड मुक्ति मोर्चा के भीतर अन्य प्रमुख नेताओं को हाशिए पर डाल दिया है। इससे पार्टी की आंतरिक विविधता को भी नुकसान पहुंचा है। पार्टी में सत्ता अब केवल एक परिवार तक सीमित होकर रह गई है, जिससे झारखंड की जनता का मोहभंग हो रहा है। जनता अब ऐसे नेतृत्व की मांग कर रही है जो व्यक्तिगत लाभ से ऊपर उठकर राज्य के विकास पर ध्यान दे।

 JMM के भविष्य पर सवाल

झारखंड की जनता JMM के भीतर चल रहे सत्ता संघर्ष को देख रही है, जिससे उनकी हताशा बढ़ती जा रही है। जनता का विश्वास टूटता जा रहा है और वे यह सोचने पर मजबूर हो रहे हैं कि क्या सोरेन परिवार राज्य की भलाई से ज्यादा अपनी राजनीतिक विरासत को बनाए रखने में रुचि रखता है?

चंपई सोरेन जैसे सक्षम नेताओं को दरकिनार करना न केवल आंतरिक सत्ता संघर्ष को दर्शाता है, बल्कि यह भी दिखाता है कि JMM के भीतर विचारों और नेतृत्व की विविधता को कैसे कुचल दिया जा रहा है। पार्टी के भीतर भाई-भतीजावाद और सत्ता के खेल से जनता अब ऊब चुकी है। 

हेमंत सोरेन और उनके परिवार के खिलाफ भ्रष्टाचार और भाई-भतीजावाद के आरोपों के बीच, झारखंड की जनता अब यह सवाल पूछ रही है कि क्या सोरेन परिवार भविष्य में झारखंड का नेतृत्व करने के लिए उपयुक्त है? क्या वे राज्य के हितों को प्राथमिकता देंगे, या उनकी विरासत में केवल सत्ता और धन की होड़ ही बचेगी?

झारखंड के लिए भविष्य की राह

झारखंड राज्य, जोकि संघर्ष और बलिदान के साथ बना है, आज एक ऐसी स्थिति में पहुंच गया है जहां जनता को नए नेतृत्व की तलाश है। चंपई सोरेन जैसे नेता, जिन्होंने राज्य के गठन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, को पार्टी में उनकी सही जगह नहीं मिल रही है। इससे जनता के बीच यह धारणा बन रही है कि JMM अब केवल सोरेन परिवार की पार्टी बनकर रह गई है, जिसमें अन्य नेताओं के लिए कोई स्थान नहीं है।

राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि झारखंड में बदलाव की आवश्यकता है। जनता अब उन नेताओं से थक चुकी है जो सत्ता में बने रहने के लिए हर संभव प्रयास करते हैं, चाहे इसके लिए उन्हें अपने पुराने साथियों को ही क्यों न दरकिनार करना पड़े। 

आने वाले चुनावों में झारखंड की जनता का निर्णय इस बात का खुलासा करेगा कि क्या वे सोरेन परिवार के नेतृत्व को स्वीकार करेंगे या किसी नए विकल्प की तलाश करेंगे। झारखंड की राजनीति में सोरेन परिवार का दबदबा लंबे समय से रहा है, लेकिन अब यह स्पष्ट हो रहा है कि उनकी सत्ता पर पकड़ लगातार कमजोर हो रही है। 

अंततः यह सवाल बना हुआ है: क्या सोरेन परिवार झारखंड के लोगों की सेवा करने के लिए तैयार हैं, या उनकी प्राथमिकता केवल सत्ता और शक्ति को बनाए रखना है? झारखंड की जनता के हाथों में इस सवाल का जवाब है, और आने वाले चुनाव ही तय करेंगे कि राज्य की राजनीति किस दिशा में जाएगी।

Rangin Duniya

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