27 मार्च 1527 को खानवा गांव, जो वर्तमान में भरतपुर जिले का हिस्सा है, में एक महत्वपूर्ण युद्ध हुआ। इस समय बाबर की विशाल मुगल सेना सामने थी, जबकि दूसरी ओर मेवाड़ के राजा राणा संगा के लगभग एक लाख सैनिक थे। बाबर ने एक साल पहले पानीपत की पहली लड़ाई में इब्राहीम लोदी की सेना को हराकर दिल्ली पर मुगल शासन की स्थापना की थी। लेकिन इन दोनों सेनाओं के बीच एक प्रमुख बाधा खड़ी थी: राजा हसन खान मेवाती। हसन खान, जो राजपुताना रक्त से जुड़ा था लेकिन इस्लाम धर्म को मानता था, बाबर को एक कदम भी आगे बढ़ने से रोक रहा था और अंततः इस युद्ध में अपनी जान गंवा दी। हसन खान मेव मुस्लिम समुदाय का एक शासक था।
आज, लगभग 500 वर्षों बाद, इस समुदाय की चर्चा की जा रही है। यह समुदाय, जिसे मेवात क्षेत्र का मुस्लिम राजपूत समुदाय कहा जाता है, धार्मिक रूप से इस्लाम को मानता है लेकिन इसके रीति-रिवाज और सांस्कृतिक पहचान राजपुताना की हैं। हरियाणा के नूंह जिले में हाल में हुए सांप्रदायिक हिंसा के कारण यह समुदाय ध्यान में आया है। इन लोगों को मेव राजपूत भी कहा जाता है, और उनके लिए धर्म से ज्यादा महत्वपूर्ण उनकी परंपराएं और रीति-रिवाज हैं। उनका इतिहास भारत के उत्तर-पश्चिमी हिस्से, जिसमें हरियाणा का नूंह और राजस्थान के अलवर व भरतपुर जिले शामिल हैं, से जुड़ा हुआ है।
मुस्लिम राजपूत के रूप में पहचाने जाने वाले मेवाती लोग मेवाती भाषा बोलते हैं। इस समुदाय के पूर्वज गोरवाल खंजादा, तोमर, राठौर, और चौहान राजपूत थे, जिन्होंने अलग-अलग समय पर देश के विभिन्न क्षेत्रों पर शासन किया।
धर्म परिवर्तन का एक सिद्धांत बताता है कि 12वीं से 17वीं शताब्दी के बीच मुगलों के दबाव में जिन क्षत्रिय और राजपूत समुदायों ने इस्लाम को अपनाया, वे पूरी तरह से मुस्लिम नहीं बन सके। वे अपनी पुरानी परंपराओं और संस्कृति को बनाए रखते रहे। यही कारण है कि करीब 50 साल पहले तक इस इलाके के मुस्लिम-राजपूत समुदाय में कई रश्में और रीति-रिवाज हिंदू परंपराओं के समान थे। हिंदुस्तान टाइम्स ने 2016 में इस समुदाय के इतिहास पर एक विस्तृत स्टोरी प्रकाशित की थी, जिसका शीर्षक था "आपको मेवात के मेव मुस्लिमों के बारे में क्या जानना चाहिए।" इस रिपोर्ट में इस समुदाय की विशिष्टताओं पर प्रकाश डाला गया है।
Article source: Click Here