सोशल मीडिया पर सक्रिय क्रांति कुमार ने हाल ही में X (पूर्व में ट्विटर) पर एक पोस्ट के माध्यम से मीडिया की भूमिका पर कड़ी आलोचना की है। उन्होंने लिखा कि, "इस लड़के से ज्यादा दोषी मीडिया है, जिसने बिना सच्चाई जाने और बिना किसी जांच-पड़ताल के हिमांशु मिश्रा द्वारा कही गई सारी बातों को सच मान लिया।"
क्रांति कुमार का यह बयान उस वक्त आया जब मीडिया में हिमांशु मिश्रा की कहानी वायरल हो गई थी, जिसमें उसने दावा किया था कि उसने 96 लाख रुपये ऑनलाइन गेम में गंवा दिए हैं। यह दावा सुनते ही मीडिया ने उसे एक प्रमुख मुद्दा बना दिया, और यहां तक कि प्रसिद्ध पॉडकास्ट होस्ट शालिनी कपूर तिवारी ने भी उसे अपने शो में इंटरव्यू के लिए बुला लिया।
जाति के आधार पर लाइमलाइट?
क्रांति कुमार ने यह भी आरोप लगाया कि हिमांशु मिश्रा को मीडिया में उसकी जाति के कारण अतिरिक्त लाइमलाइट दी गई। उन्होंने लिखा, "अगर यह हिमांशु मिश्रा ना होकर हिमांशु मांझी होता, तो शायद न उसे किसी पॉडकास्ट में बुलाया जाता और न ही उसकी खबर इतनी प्रमुखता से चलाई जाती।"
उनका इशारा साफ था कि मिश्रा का सरनेम होने के कारण उसे खासतौर पर महत्व दिया गया, जो समाज में जातिगत भेदभाव की ओर इशारा करता है। यह मामला इस बात पर ध्यान खींचता है कि कैसे समाज में जाति के आधार पर भेदभाव और अवसरों में असमानता अब भी गहराई तक जमी हुई है।
मीडिया की गलती और हिमांशु मिश्रा की सच्चाई
पोस्ट में क्रांति कुमार ने यह भी बताया कि बाद में मुख्यधारा की मीडिया को अपनी गलती का एहसास हुआ और उन्होंने हिमांशु मिश्रा की सच्चाई को उजागर किया। मिश्रा द्वारा किए गए दावों की जांच की गई और यह पाया गया कि उसकी हर एक बात झूठी निकली। न सिर्फ उसने 96 लाख रुपये नहीं गंवाए, बल्कि उस पर कानपुर में झूठी कहानी सुनाकर पैसे ठगने का भी आरोप है।
यह घटना हमें यह सोचने पर मजबूर करती है कि मीडिया को किस हद तक जिम्मेदारी से काम करना चाहिए। बिना सच्चाई की जांच किए किसी व्यक्ति को मंच देना और उसकी बातों को बिना किसी सबूत के सच मान लेना, समाज में गलत धारणाओं को जन्म दे सकता है। क्रांति कुमार के इस बयान ने न केवल मीडिया के रवैये पर सवाल उठाए हैं, बल्कि जातिगत भेदभाव के मुद्दे को भी एक बार फिर से चर्चा में ला दिया है।