क्रांति कुमार का दावा: सवर्णवाद ने SC-ST आरक्षण में कुछ जातियों पर ओवर रिप्रेजेंटेशन का आरोप लगाकर ब्राह्मण-बनिया-खत्री-कायस्थ-क्षत्रिय ओवर रिप्रेजेंटेशन के मुद्दे को छिपाया

क्रांति कुमार का दावा: सवर्णवाद ने SC-ST आरक्षण में कुछ जातियों पर ओवर रिप्रेजेंटेशन का आरोप लगाकर ब्राह्मण-बनिया-खत्री-कायस्थ-क्षत्रिय ओवर रिप्रेजेंटेशन के मुद्दे को छिपाया

नई दिल्ली: सामाजिक न्याय के मुद्दों पर एक नया विवाद खड़ा करते हुए क्रांति कुमार ने सोशल मीडिया प्लेटफार्म 'X' पर एक पोस्ट जारी की है, जिसमें उन्होंने ब्राह्मण, बनिया, खत्री, कायस्थ और क्षत्रिय जातियों की सरकारी नौकरियों में ओवर रिप्रेजेंटेशन पर सवाल उठाए हैं। 

क्रांति कुमार ने लिखा, "ब्राह्मण, बनिया, खत्री, कायस्थ और क्षत्रिय जातियाँ सरकारी नौकरियों में ओवर रिप्रेजेंटेड हैं। न्यायपालिका, मीडिया, फ़िल्म इंडस्ट्री, कॉरपोरेट, बैंकिंग और शिक्षा के क्षेत्रों में इनका ओवर रिप्रेजेंटेशन एक राष्ट्रीय मुद्दा था। लेकिन सवर्णवाद ने चालाकी से SC-ST आरक्षण में कुछ SC-ST जातियों पर ओवर रिप्रेजेंटेशन का आरोप लगा दिया।"

उनका कहना है कि SC आरक्षण में चमार, महार और पासी जातियों और ST आरक्षण में मीणा जाति पर बिना प्रमाण और रिसर्च के हिस्सेदारी हड़पने का आरोप लगाया गया है। क्रांति कुमार ने सवाल उठाया है कि क्या चमार, महार, पासी और मीणा जातियाँ वास्तव में आरक्षण का ज्यादा लाभ ले रही हैं?

उन्होंने बिहार में हुई जाति जनगणना का हवाला देते हुए कहा कि वहां चमार और पासी जातियों की आबादी ज्यादा होने के बावजूद वे सरकारी नौकरियों में पीछे हैं, जबकि धोबी जाति सरकारी नौकरियों में सबसे ज्यादा है। क्रांति कुमार ने यह भी कहा कि अगर जाति जनगणना नहीं होती, तो इसी तरह का आरोप धोबी जाति का आरक्षण चमार और पासी जातियों द्वारा खा लेने का लगाया जाता।

उनके अनुसार, चमार, पासी, महार और मीणा जातियाँ बहुजन आंदोलन में अग्रणी भूमिका निभाती हैं और राजनीतिक रूप से भी मजबूत हैं। उन्होंने यह भी बताया कि सवर्णवाद इन जातियों से नफरत करता है क्योंकि ये जातियाँ सामाजिक और राजनीतिक क्षेत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।

क्रांति कुमार ने सवर्णवाद द्वारा इन जातियों को बदनाम करने की कोशिश की आलोचना की और कहा कि वाल्मीकि भाईयों को उनका हक मिलना चाहिए, लेकिन इसके लिए पहले स्टडी और रिसर्च होनी चाहिए। अगर उनकी हिस्सेदारी कम है, तो पार्लियामेंट के माध्यम से आरक्षण में वर्गीकरण होना चाहिए, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट को वर्गीकरण करने का अधिकार नहीं है।

यह पोस्ट सोशल मीडिया पर चर्चा का विषय बन गई है और विभिन्न सामाजिक और राजनीतिक वर्गों में इस पर प्रतिक्रिया आ रही है।

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