झारखंड चुनाव: चम्पाई सोरेन का JMM से इस्तीफा, क्या बीजेपी को सत्ता में लाएगा? हेमंत सोरेन को कितना होगा नुकसान?



झारखंड में 2024 के अंत में होने वाले विधानसभा चुनावों से पहले राजनीतिक गतिविधियां तेज़ हो चुकी हैं। इस दौरान सबसे ज्यादा चर्चा में हैं चम्पाई सोरेन, जिन्हें 'कोल्हान टाइगर' के नाम से जाना जाता है। लंबे समय से झारखंड की राजनीति में एक प्रमुख व्यक्ति रहे चम्पाई सोरेन ने हाल ही में झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) को छोड़कर भारतीय जनता पार्टी (BJP) में शामिल होने का बड़ा फैसला लिया है। यह कदम झारखंड की राजनीतिक स्थिति को पूरी तरह से बदल सकता है, क्योंकि सोरेन का झारखंड की आदिवासी राजनीति में विशेष प्रभाव है। आदिवासी अधिकारों के लिए उनके समर्पण और राज्य आंदोलन में उनकी अहम भूमिका ने उन्हें इस क्षेत्र में एक प्रमुख नेता के रूप में स्थापित किया है।

 चम्पाई सोरेन का JMM से BJP में शामिल होना

चम्पाई सोरेन के इस बड़े फैसले ने न केवल झामुमो को झटका दिया है, बल्कि भाजपा के लिए एक सुनहरा अवसर भी प्रदान किया है। 28 अगस्त 2024 को चम्पाई सोरेन ने सरायकेला विधानसभा सीट से सात बार विधायक रहने के बाद झामुमो से इस्तीफा दे दिया। अपने इस्तीफे में, उन्होंने पार्टी के नेतृत्व और दिशा को लेकर अपनी निराशा जाहिर की। उन्होंने झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की कार्यशैली और पार्टी की मौजूदा स्थिति को लेकर असंतोष व्यक्त किया।

झारखंड में झामुमो एक प्रमुख आदिवासी दल रहा है, लेकिन हाल के समय में पार्टी के भीतर आंतरिक कलह और हेमंत सोरेन के नेतृत्व को लेकर उठते सवालों ने इसे कमजोर कर दिया है। चम्पाई सोरेन के मुताबिक, पार्टी आदिवासी अधिकारों के प्रति अपनी प्रतिबद्धता से भटक गई है, और सत्ता को मजबूत करने पर ज्यादा ध्यान केंद्रित कर रही है। यह बदलाव पार्टी के कई नेताओं और कार्यकर्ताओं को असंतुष्ट कर रहा है, और चम्पाई सोरेन का इस्तीफा इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है।

हेमंत सोरेन के नेतृत्व पर उठते सवाल

मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन का कार्यकाल शुरू से ही विवादों से घिरा रहा है। भ्रष्टाचार के आरोपों और प्रवर्तन निदेशालय (ED) द्वारा गिरफ्तारी ने उनके शासन की छवि को धूमिल किया है। सरकार पर आदिवासी आबादी के हितों की अनदेखी करने और अपने चुनावी वादों को पूरा करने में विफल रहने का आरोप है। चम्पाई सोरेन ने भी इन्हीं मुद्दों को अपने इस्तीफे के कारणों में से एक बताया।

हेमंत सोरेन के नेतृत्व में झामुमो, जो आदिवासी अधिकारों की वकालत के लिए जाना जाता था, अब सत्ता की राजनीति में फंस गया है। उनके खिलाफ बढ़ती असंतोष की आवाजें पार्टी के आंतरिक लोकतंत्र और आदिवासी समुदायों के नेतृत्व के प्रति उनकी प्रतिबद्धता पर सवाल उठा रही हैं। इन मुद्दों के चलते झारखंड विधानसभा चुनाव 2024 में झामुमो के लिए आदिवासी वोटरों का समर्थन बनाए रखना एक बड़ी चुनौती बन सकता है।

भाजपा के लिए चम्पाई सोरेन का साथ होना कितना अहम?

चम्पाई सोरेन का भाजपा में शामिल होना, पार्टी के लिए एक बड़ी जीत है। झारखंड में भाजपा का विस्तार करना, खासकर आदिवासी इलाकों में, पार्टी की प्रमुख रणनीति रही है। चम्पाई सोरेन की आदिवासी समुदायों के बीच लोकप्रियता और उनके गहरे स्थानीय संबंध भाजपा को उन इलाकों में प्रवेश दिला सकते हैं, जहां अब तक झामुमो का दबदबा रहा है।

कोल्हान और दक्षिण छोटानागपुर जैसे क्षेत्रों में चम्पाई सोरेन का व्यापक प्रभाव है। इन क्षेत्रों में आदिवासी मतदाता चुनावी परिणामों को निर्णायक रूप से प्रभावित कर सकते हैं। चम्पाई सोरेन के भाजपा में जाने से झामुमो के पारंपरिक वोट बैंक में सेंध लग सकती है, जिससे भाजपा को आदिवासी समुदायों से समर्थन प्राप्त हो सकता है।

 बांग्लादेशी घुसपैठ पर भाजपा और चम्पाई का साझा मुद्दा

चम्पाई सोरेन के भाजपा में शामिल होने से पार्टी को एक और फायदा मिलेगा, वह है बांग्लादेशी घुसपैठ का मुद्दा। चम्पाई सोरेन ने खुलकर इस मुद्दे पर भाजपा के साथ अपने विचार साझा किए हैं। उनका मानना है कि बांग्लादेशी घुसपैठ से झारखंड के आदिवासी समुदाय का अस्तित्व खतरे में है। यह बयान भाजपा के लंबे समय से चले आ रहे घुसपैठ विरोधी एजेंडे को और मजबूती देता है। भाजपा के नेता भी लगातार इस मुद्दे को उठाते रहे हैं, और चम्पाई सोरेन का समर्थन इसे और धार देगा।

चम्पाई सोरेन का झामुमो से बाहर होना और भाजपा का साथ देना झारखंड की राजनीति में बड़ा बदलाव

झामुमो से चम्पाई सोरेन का बाहर होना हेमंत सोरेन के नेतृत्व में पार्टी के भीतर बढ़ते असंतोष को दर्शाता है। उनके इस फैसले से झारखंड की राजनीतिक दिशा में महत्वपूर्ण बदलाव आने की संभावना है। चम्पाई सोरेन के इस्तीफे ने न केवल झामुमो के आदिवासी नेतृत्व पर सवाल खड़े किए हैं, बल्कि भाजपा को एक मजबूत सहयोगी भी प्रदान किया है, जो आदिवासी समुदायों के समर्थन से पार्टी की स्थिति को मजबूत कर सकता है।

झारखंड विधानसभा चुनाव 2024 के समीकरण अब पूरी तरह से बदलते दिख रहे हैं। भाजपा, चम्पाई सोरेन के साथ मिलकर झामुमो के गढ़ में सेंध लगाने की कोशिश में जुटी है। वहीं, झामुमो को अपने अस्तित्व और आदिवासी समर्थन को बनाए रखने के लिए कड़ी मेहनत करनी होगी। जैसे-जैसे चुनाव नज़दीक आते जा रहे हैं, झारखंड की राजनीतिक सरगर्मियां बढ़ती जा रही हैं, और चम्पाई सोरेन का यह कदम राज्य की राजनीति में निर्णायक साबित हो सकता है।

झारखंड में 2024 का विधानसभा चुनाव, चम्पाई सोरेन के भाजपा में शामिल होने और झामुमो के कमजोर पड़ते नेतृत्व के कारण बहुत ही महत्वपूर्ण होने वाला है। जहां भाजपा आदिवासी मतदाताओं के समर्थन के जरिए सत्ता में आने की कोशिश करेगी, वहीं झामुमो को अपनी खोई हुई साख और समर्थन को वापस पाने की चुनौती का सामना करना पड़ेगा। झारखंड की चुनावी राजनीति में इस घटनाक्रम का असर कितना गहरा होगा, यह तो चुनाव परिणाम ही बताएंगे, लेकिन फिलहाल चम्पाई सोरेन का फैसला राज्य की राजनीति को एक नए मोड़ पर लेकर जा चुका है।

Rangin Duniya

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