हाल ही में लेखक और सामाजिक कार्यकर्ता क्रांति कुमार ने एक लेख के माध्यम से तिरुपति बालाजी देवस्थान पर जातिगत भेदभाव और एक जाति विशेष के नियंत्रण का मुद्दा उठाया है। उनके इस लेख ने सोशल मीडिया पर काफी चर्चा पैदा कर दी है, जिसमें उन्होंने आरोप लगाया है कि तिरुपति बालाजी मंदिर के प्रशासन और संचालन पर ब्राह्मण पुजारियों का आधिपत्य है।
क्रांति कुमार ने अपने लेख में लिखा, “इस मंदिर पर हिन्दुओं का नहीं, बल्कि एक जाति विशेष का नियंत्रण है। तिरुपति बालाजी देवस्थान पर 200 ब्राह्मण पुजारियों का आधिपत्य है, और यह केवल अधिकार, प्रतिनिधित्व और समता का सवाल नहीं है, बल्कि एक बड़ी सामाजिक समस्या का प्रतिबिंब है।”
इस मंदिर पर हिन्दुओं का नही, एक जाति का नियंत्रण है. ब्राह्मण जाति के 200 पुजारियों का तिरुपति बालाजी देवस्थान पर आधिपत्य है.
— Kranti Kumar (@KraantiKumar) September 22, 2024
अधिकार, प्रतिनिधित्व और समता की बात मैं उठाता रहूंगा.
तिरुपति बालाजी देवस्थान को संचालित करने वाले सभी विभागों पर एक ही जाति का कमांड एंड कंट्रोल है.… pic.twitter.com/FazY62vEdh
उन्होंने कहा कि मंदिर के सभी प्रमुख विभागों का "कमांड एंड कंट्रोल" एक ही जाति के हाथों में है। उनके अनुसार, मंदिर के दरवाजे सुबह खोलने से लेकर रात को बंद करने तक की जिम्मेदारी ब्राह्मण पुजारियों के एक विशेष वर्ग के पास है। इसके अलावा, गर्भगृह में कौन प्रवेश कर सकता है, यह निर्णय भी वही पुजारी लेते हैं।
कुमार ने यह भी आरोप लगाया कि मंदिर के रसोईघर में लड्डू और प्रसाद बनाने वाले सभी रसोइए भी ब्राह्मण जाति से ही होते हैं और अन्य जातियों के लोगों को इन पदों पर नियुक्त नहीं किया जाता। यह भेदभाव, उनके अनुसार, सदियों से चली आ रही परंपरा का हिस्सा है।
उनके इस आरोप ने उस वक्त और भी विवाद उत्पन्न कर दिया जब उन्होंने मंदिर के बजट पर सवाल उठाए। उन्होंने कहा, “तिरुपति बालाजी मंदिर का बजट 5124 करोड़ रुपये का है, फिर भी 320 रुपये प्रति किलो का सस्ता और मिलावटी घी क्यों खरीदा जा रहा था? जांच केवल कंपनी तक सीमित नहीं होनी चाहिए, बल्कि मंदिर के नियंत्रण में शामिल लोगों की भी होनी चाहिए।”
अंत में, क्रांति कुमार ने मांग की कि तिरुपति बालाजी देवस्थान में हिंदू समाज की सभी जातियों के लोगों को पुजारी और रसोइए के रूप में नियुक्त किया जाना चाहिए। उनका यह लेख जातिगत भेदभाव और धार्मिक संस्थानों में समता की आवश्यकता पर एक गंभीर चर्चा छेड़ता है। अब यह देखना होगा कि तिरुपति मंदिर के प्रशासन और अन्य संबंधित संस्थाएं इस मुद्दे पर क्या कदम उठाती हैं।
संपादकीय नोट: इस लेख में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं और इसका उद्देश्य सार्वजनिक मुद्दों पर जागरूकता बढ़ाना है।