वरिष्ठ पत्रकार अशोक वानखेड ने एक गंभीर टिप्पणी करते हुए कहा कि कई बार केंद्रीय नेतृत्व द्वारा लिए गए फैसलों से नीचे के स्तर पर अधिकारियों में अनुचित साहस बढ़ जाता है। उन्होंने हाल ही में राजस्थान में हुई एक घटना का उदाहरण देते हुए कहा कि सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों की अनदेखी कैसे की गई और यह कैसे एक बड़े प्रशासनिक संकट का प्रतीक बन सकता है।
सर्वोच्च न्यायालय ने हाल ही में 30 तारीख तक सभी बुलडोजर कार्रवाइयों पर प्रतिबंध लगाया था। न्यायालय ने स्पष्ट किया था कि किसी भी निजी संपत्ति पर बुलडोजर चलाने से पहले कानूनी प्रक्रिया का पालन करना अनिवार्य है। हालांकि, फुटपाथों या रेलवे स्टेशनों पर अतिक्रमण हटाने की अनुमति दी गई थी। लेकिन निजी संपत्ति गिराने की कार्रवाई बिना कानूनी प्रक्रिया के अवैध मानी गई थी।
अशोक वानखेड ने राजस्थान के राजसमंद जिले की एक घटना का जिक्र किया, जहां नाथद्वारा नगर में संदीप, अशोक और गोविंदराज सना का एक नया मकान बुलडोजर से रातों-रात गिरा दिया गया। इन तीनों ने हाल ही में दो लाख रुपए का कर्ज लेकर अपना नया घर बनाया था, लेकिन स्थानीय प्रशासन ने बिना उचित सुनवाई के इसे गिरा दिया।
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— Deep Aggarwal (@DeepAggarwalinc) September 25, 2024
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सुप्रीम कोर्ट ने किसी के भी घर पर #बुलडोजर चलाने पर रोक लगाई हुई हैं, रोक के… pic.twitter.com/dtkTkvo1tO
परिवार ने अदालत में सुनवाई के लिए 18 तारीख की तारीख तय की थी, लेकिन 17 तारीख की रात को ही उनके घर को तोड़ दिया गया। परिवार का दावा है कि जब उन्होंने अधिकारियों से सर्वोच्च न्यायालय के आदेश का हवाला देकर कार्रवाई रोकने की अपील की, तब भी किसी ने उनकी बात नहीं सुनी।
इस घटना के बाद स्थानीय राजनीति में उबाल आ गया, और कई राजनीतिक दलों ने इसका विरोध किया। कांग्रेस के नेताओं ने मौके पर पहुंचकर जनता के साथ सहानुभूति जताई और कार्रवाई का विरोध किया। वहीं, नगर पालिका के अध्यक्ष मनीष राठी ने कहा कि उन्हें भी इस घटना की जानकारी नहीं थी और इसकी जांच की जा रही है।
अशोक वानखेड का मानना है कि इस तरह की घटनाएं तब होती हैं जब केंद्रीय नेतृत्व द्वारा दिए गए संदेशों से निचले स्तर के अधिकारी अपनी हदें पार करने लगते हैं। उन्होंने यह भी कहा कि सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों की ऐसी अवहेलना से आम जनता को सीधा नुकसान पहुंचता है।
इस पूरे मामले ने प्रशासनिक और न्यायिक प्रणाली के बीच संतुलन की गंभीरता को उजागर किया है। जहां सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट रूप से बुलडोजर कार्रवाइयों पर प्रतिबंध लगाया था, वहीं स्थानीय अधिकारियों द्वारा इसकी अनदेखी से यह सवाल उठता है कि न्यायिक आदेशों का सम्मान क्यों नहीं किया गया। अशोक वानखेड का कहना है कि यह मुद्दा केवल एक मकान का नहीं है, बल्कि कानून और न्याय व्यवस्था का है, जिसे निचले स्तर के अधिकारी नज़रअंदाज़ कर रहे हैं।
आखिर में, यह मामला एक बार फिर सर्वोच्च न्यायालय के सामने आएगा और तब ही स्थिति स्पष्ट होगी कि इस तरह की अवैध कार्रवाइयों के खिलाफ क्या कदम उठाए जाएंगे।