वाराणसी, 12 सितंबर 2024: स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद, एक प्रमुख सनातन धर्म गुरु, ने एक सवाल का उत्तर देते हुए हिंदू धर्म में विदेशी व्यक्तियों की वापसी और वर्ण व्यवस्था पर अपने विचार साझा किए। श्री शिवांश कुमार, मुंगेर (बिहार) से एक सवाल करते हुए जानना चाहते थे कि अगर कोई विदेशी व्यक्ति हिंदू धर्म में वापसी करना चाहता है, तो उसे कौन सा वर्ण प्राप्त होगा।
स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने प्रश्न का उत्तर देते हुए कहा कि वर्ण व्यवस्था हिंदू धर्म का एक प्रमुख हिस्सा है, जिसमें चार वर्ण (ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र) और चार आश्रम (ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ और संन्यास) का उल्लेख है। उन्होंने कहा कि जो लोग इस व्यवस्था को नहीं मानते, वे हिंदू धर्म में वापस आने के बाद भी सीधे किसी वर्ण में प्रवेश नहीं कर सकते। वर्ण व्यवस्था में स्थान प्राप्त करने के लिए व्यक्ति को उसी वर्ण के माता-पिता से उत्पन्न होना आवश्यक है।
उन्होंने स्पष्ट किया कि हिंदू धर्म में किसी को 'बनाने' की कोई विधि नहीं है, जबकि अन्य धर्मों में ऐसे अनुष्ठान होते हैं। स्वामीजी का मानना है कि कोई भी व्यक्ति मूल रूप से हिंदू ही होता है और अगर वह किसी कारणवश अन्य धर्मों को अपना चुका है, तो उसे पुनः अपने धर्म में लौटने पर स्वागत किया जाता है। इसे 'घर वापसी' कहा जाता है।
वर्ण के सवाल पर स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने यह भी बताया कि धर्म दो प्रकार के होते हैं—सामान्य धर्म और विशेष धर्म। वर्णाश्रम व्यवस्था विशेष धर्म के अंतर्गत आती है, जिसका पालन विशेष लोग करते हैं, जिनका जन्म किसी विशिष्ट वर्ण में हुआ हो। लेकिन जो व्यक्ति हिंदू धर्म में वापसी करता है, वह सामान्य धर्म का पालन करते हुए सनातनी हिंदू बन सकता है और भागवत धर्म का पालन करते हुए अपने जीवन को संवार सकता है।
उन्होंने जोर देते हुए कहा कि ऐसे व्यक्ति को भक्त माना जाना चाहिए और उसका भगवद् शरणागति में आना ही उसके लिए सर्वोत्तम होगा।
स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद का यह बयान वर्तमान में चल रहे धर्म, वर्ण और धार्मिक आस्था से जुड़े सवालों पर एक स्पष्ट और विचारशील दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है, जो हिंदू धर्म के मूल्यों और सिद्धांतों को समर्पित है।