हाल ही में सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल हुआ है जिसमें एक अर्धनग्न लड़की को कुछ लोग पीटते हुए परेड करा रहे हैं। वीडियो को संजू सिंह नामक एक यूजर ने साझा करते हुए दावा किया कि "कपड़ों से पहचानो दंगाई, महिलाओं का शोषण करने वाले कौन हैं।" इस वीडियो ने तुरंत लोगों का ध्यान आकर्षित किया और कई सवाल खड़े किए।
वीडियो की सच्चाई जानने के लिए विभिन्न तथ्यों की पड़ताल की गई। सबसे पहले, इस वायरल वीडियो के कीफ्रेम को गूगल रिवर्स इमेज सर्च के माध्यम से जांचा गया, जिसके बाद 24 अक्टूबर 2024 को "दी क्विंट" की एक रिपोर्ट से संबंधित खबर सामने आई। इस रिपोर्ट के मुताबिक, यह घटना 31 अगस्त 2019 को मध्य प्रदेश के अलीराजपुर जिले की है, न कि कोई ताज़ा मामला जैसा कि वीडियो पोस्ट के माध्यम से दिखाने की कोशिश की गई थी।
घटना का वास्तविक संदर्भ
खबरों के अनुसार, इस घटना में एक 19 वर्षीय आदिवासी लड़की को उसके समुदाय के लोगों द्वारा पीटा गया और अर्धनग्न अवस्था में परेड कराया गया था। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि लड़की ने दूसरी जाति के एक लड़के से प्रेम किया था, जो उसके समुदाय के सदस्यों को मंजूर नहीं था। पीड़ित लड़की भिलाला समुदाय से थी और उसका प्रेमी भील समुदाय का था। इस प्रेम संबंध को लेकर परिवार और समुदाय के लोगों में नाराजगी थी, जिसके चलते उन्होंने लड़की को इस तरह से 'दंडित' करने की कोशिश की।
कपड़ो से पहचानो दंगाई महिलाओं का शोषण करने वाले कौन है।। pic.twitter.com/IWxHvzcWJq
— Sanju Singh 🇮🇳 (@sanju_singh24) September 23, 2024
राष्ट्रीय महिला आयोग का हस्तक्षेप
इस घटना के प्रकाश में आने के बाद, राष्ट्रीय महिला आयोग ने इस पर स्वत: संज्ञान लिया और मध्य प्रदेश पुलिस प्रमुख को नोटिस जारी कर मामले की जांच की मांग की। आउटलुक की रिपोर्ट के अनुसार, पुलिस ने मामले में तीन लोगों को हिरासत में लिया था और अन्य आरोपियों की तलाश की जा रही थी।
संजू सिंह का दावा और वायरल वीडियो की वास्तविकता
अब सवाल यह उठता है कि संजू सिंह ने चार साल पुराने इस वीडियो को वर्तमान संदर्भ में शेयर कर क्या साबित करना चाहा? यह वीडियो एक घिनौने अपराध की घटनाओं में से एक है, लेकिन इसे गलत संदर्भ में प्रस्तुत करना भी कानून का उल्लंघन माना जा सकता है। सोशल मीडिया पर इस प्रकार के पुराने और संवेदनशील मामलों को फैलाना सामाजिक शांति को भंग करने के इरादे के रूप में देखा जा सकता है।
निष्कर्ष
पड़ताल से यह साफ है कि वायरल हो रहा वीडियो चार साल पुरानी घटना से संबंधित है, जो मध्य प्रदेश के अलीराजपुर जिले में घटित हुई थी। ऐसे मामलों में तथ्य की जांच करना और बिना प्रमाण के अफवाहों से बचना अत्यंत महत्वपूर्ण है, ताकि गलत जानकारी फैलने से रोकी जा सके।
इस लेख के माध्यम से यह स्पष्ट होता है कि सोशल मीडिया पर शेयर की जाने वाली सामग्री की सत्यता को जांचना बेहद जरूरी है, ताकि गलत सूचनाओं के प्रसार से बचा जा सके और समाज में गलतफहमी पैदा न हो।