तिरुपति बालाजी मंदिर में चार ब्राह्मण परिवारों को पुजारी बनने का पैतृक अधिकार, बिना परीक्षा या योग्यता के वंशानुगत 100% आरक्षण: क्रांति कुमार

हाल ही में सोशल मीडिया पर क्रांति कुमार द्वारा की गई एक पोस्ट ने तिरुपति बालाजी मंदिर के पुजारी चयन प्रक्रिया को लेकर बहस छेड़ दी है। पोस्ट में क्रांति कुमार ने दावा किया कि भारत के सबसे अमीर मंदिरों में से एक, तिरुपति बालाजी मंदिर, पर चार ब्राह्मण परिवारों को पुजारी बनने का पैतृक अधिकार है। ये परिवार गोलापल्ली, पेद्दीनती, तिरुपथममा, और पैदीपल्ली हैं, जिनके सदस्यों को बिना किसी परीक्षा या योग्यता के वंशानुगत पुजारी बनने का 100% आरक्षण प्राप्त है।

 वंशानुगत पुजारियों पर लगा था प्रतिबंध

क्रांति कुमार ने आगे बताया कि 2018 में आंध्र प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री एन. चंद्रबाबू नायडू ने इस परंपरा को बदलने का प्रयास किया था। उन्होंने वंशानुगत पुजारियों पर पाबंदी लगाई थी, जिसके तहत मंदिरों में पुजारी नियुक्ति के लिए योग्यता आधारित परीक्षा की व्यवस्था होनी थी। हालांकि, आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट ने धार्मिक परंपराओं का हवाला देते हुए नायडू सरकार के इस निर्णय को पलट दिया।

 

 तिरुपति मंदिर की संपत्ति और वर्तमान स्थिति

तिरुपति बालाजी मंदिर की संपत्ति का अनुमान लगभग 2,50,000 करोड़ रुपये है, जिसमें विशाल भूमि, सोना, चांदी और बैंक डिपॉजिट शामिल हैं। मंदिर के वर्तमान मुख्य पुजारी वेणुगोपाला दीक्षितुलु, गोलापल्ली परिवार से हैं, और उन्हें इस पद पर नियुक्ति उनके परिवार के पैतृक अधिकार के आधार पर मिली है, न कि किसी योग्यता परीक्षा के माध्यम से। 

 जातीय आधार पर पुजारी नियुक्ति पर सवाल

क्रांति कुमार ने अपने पोस्ट में सवाल उठाया कि पुजारी बनने का अधिकार केवल चार ब्राह्मण परिवारों तक ही क्यों सीमित है। उन्होंने सुझाव दिया कि यह अधिकार सभी हिंदू जातियों को मिलना चाहिए और पुजारी बनने के लिए एक योग्यता परीक्षा आयोजित की जानी चाहिए। उनका कहना है कि जो भी व्यक्ति काबिल हो, उसे मंदिरों में पुजारी बनने का अवसर मिलना चाहिए, ताकि धार्मिक व्यवस्था अधिक न्यायपूर्ण और समावेशी हो सके।

 सामाजिक और धार्मिक बहस

यह पोस्ट वायरल होने के बाद से सोशल मीडिया पर व्यापक चर्चा का विषय बन गई है। कुछ लोग क्रांति कुमार के विचारों का समर्थन कर रहे हैं, जबकि अन्य लोग इसे धार्मिक परंपराओं के खिलाफ मान रहे हैं। पुजारी बनने के लिए योग्यता आधारित प्रक्रिया की मांग के साथ-साथ मंदिरों में जाति-आधारित आरक्षण पर भी बहस छिड़ी हुई है।

तिरुपति बालाजी मंदिर और उसकी पुजारी चयन प्रक्रिया का मुद्दा भारतीय धार्मिक और सामाजिक ढांचे का महत्वपूर्ण हिस्सा बन गया है। यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या भविष्य में इस मुद्दे पर कोई कानूनी या सामाजिक बदलाव होता है, या परंपराएं जस की तस बनी रहती हैं।

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