आशुतोष प्रतिहस्त की कहानी न केवल प्रेरणादायक है, बल्कि यह साबित करती है कि किसी भी कठिनाई के बावजूद, दृढ़ संकल्प और मेहनत से व्यक्ति बड़ी सफलता हासिल कर सकता है।
आशुतोष का जन्म बिहार के सीतामढ़ी जिले के एक छोटे से गाँव हरदिया में हुआ। वे एक संयुक्त परिवार से थे, जहां उनके तीनों चाचा सरकारी नौकरी में थे। उनके पिता ने कभी नौकरी नहीं की क्योंकि उनके पास पहले से पर्याप्त संसाधन थे। बचपन में आशुतोष का जीवन काफी साधारण था। वे गाँव के सबसे शरारती बच्चों में से एक थे, हमेशा खेलने और लड़ाई करने में व्यस्त रहते थे। उनके माता-पिता की चिंता बढ़ती जा रही थी, क्योंकि उन्हें डर था कि उनका बेटा पढ़ाई में असफल हो सकता है।
हालात तब बदले जब आशुतोष की माँ को डिप्रेशन हुआ और डॉक्टरों ने सुझाव दिया कि उन्हें दिल्ली जाना होगा। वर्ष 2005 में, उनका परिवार दिल्ली आ गया। यहां उनके पिता ने 5000 रुपये की नौकरी शुरू की और लंबे समय तक काम करते थे, ताकि घर का खर्च चल सके। आशुतोष को भी इस नए माहौल में ढलने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। स्कूल की पढ़ाई के लिए उन्हें गुवाहाटी के केंद्रीय विद्यालय भेजा गया, जहां भाषा की समस्या के कारण वे अलग-थलग महसूस करते थे। यह उनके जीवन का एक बड़ा मोड़ साबित हुआ, क्योंकि यहीं पर उन्होंने पहली बार जीवन की कठिनाइयों का सामना किया।
गुवाहाटी से लौटने के बाद, आशुतोष ने महसूस किया कि पढ़ाई ही एकमात्र रास्ता है जिससे वे अपने जीवन में सुधार ला सकते हैं। उन्होंने अपनी माँ से पूछा, "अमीर कैसे बनते हैं?" उनकी माँ ने जवाब दिया, "अच्छी पढ़ाई, सरकारी नौकरी और मेहनत से।" इस बात ने उनके मन में एक गहरी छाप छोड़ी। सातवीं कक्षा में जब उन्होंने अच्छे अंक प्राप्त किए, तो उन्हें पहली बार लोगों का सम्मान मिला। इससे प्रेरित होकर, उन्होंने कड़ी मेहनत करना शुरू किया और 12-12 घंटे पढ़ाई करने लगे।
हालांकि जीवन हमेशा आसान नहीं था। जब वे 10वीं कक्षा में थे, उनके पिता की नौकरी छूट गई और घर की आर्थिक स्थिति गंभीर हो गई। ऐसे दिन भी आए जब होली और दिवाली पर मिठाई खरीदने के लिए पैसे नहीं थे और घर में राशन की कमी थी। इस दौरान, आशुतोष ने गिटार सिखाने का काम शुरू किया और ट्यूशन पढ़ाकर घर का खर्च चलाने में मदद की।
12वीं में 92% अंक प्राप्त करने के बाद, लोगों ने उन्हें यूपीएससी की तैयारी करने की सलाह दी। उन्होंने भी इस दिशा में कदम बढ़ाया, लेकिन कॉलेज में दोस्तों और माहौल के कारण उनका ध्यान भटक गया। धीरे-धीरे उनका यूपीएससी का सपना धुंधला पड़ने लगा।
आर्थिक स्थिति को सुधारने के लिए आशुतोष ने एक कॉल सेंटर में 6000 रुपये की नौकरी की, जो उन्होंने मजबूरी में शुरू की थी। हालांकि, इस नौकरी ने उन्हें जीवन का एक महत्वपूर्ण सबक सिखाया। इसी दौरान, उनकी मुलाकात एक स्टार्टअप के संस्थापक से हुई, जिन्होंने उनकी आवाज़ से प्रभावित होकर उन्हें एक बेहतर नौकरी का प्रस्ताव दिया।
इस नौकरी में, आशुतोष ने सीखा कि कैसे लोग युवा उम्र में ही करोड़ों रुपये कमा रहे हैं। उन्होंने किताबें पढ़नी शुरू कीं और खुद को आत्मविकास के रास्ते पर डाला। धीरे-धीरे उन्होंने अपने कॉलेज में एक संगठन, 'इवोल्यूशन', की स्थापना की, जहां उन्होंने सैकड़ों छात्रों को पब्लिक स्पीकिंग और नेतृत्व कौशल सिखाए।
आज आशुतोष प्रतिहस्त एक सफल उद्यमी हैं, जिन्होंने केवल 11 महीनों में 7 करोड़ रुपये का व्यापार किया और उनकी कंपनी की मौजूदा वैल्यूएशन 100 करोड़ रुपये से अधिक है। उनकी कहानी हमें यह सिखाती है कि संघर्ष के बाद ही सफलता की राह खुलती है, बशर्ते हम अपने लक्ष्य के प्रति दृढ़ रहें और मेहनत करते रहें।